Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Shyamacharya, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 755
________________ सक्कयत्थो सुत्तंकाइ पद्मा-वनस्पतिः ५४ [१] गा. ५० पद्मोत्तरा-शर्कराविशेषः १२३८ २३८ पण्णवणासुत्तपरिसिट्ठाई मूलसद्दो सक्यत्थो सुत्तंकाइ । मूलसद्दो १४६३, १५१९ [२], पउमा १६५४, १६५७, १९८०, २०१७ पउमुत्तरा नोइंदियउवउत्ता नोइन्द्रियोपयुक्ताः ३२५ नोइंदियउवउत्ताणं नोइन्द्रियोपयुक्तानाम् , पउमे नोपज्जत्तगनोअप- नोपर्याप्तकनोअपर्याप्तकाः पउले जत्तगा २६६ नोपजत्तनोअप- नोपर्याप्तनोअपर्याप्तानाम् ,, पउसा जत्ताण ०पए नोपरित्तनोअपरित्ता नोपरीत्तनोअपरित्ताः २६५ पएस नोपरित्तनो- नोपरीत्तनोअपरित्तानाम् ,, पएस. अपरित्ताण पएसनोसण्णीनो नोसंज्ञिनोअसंज्ञिनाम् २६८ असण्णीण पएसट्ठयाए नोसंजतनोअसंजत-नोसंयतनोअसंयतनो नोसंजतासंजता संयतासंयताः २६१ नोसंजयनोअसंजय- नोसंयतनोअसंयत नोसंजतासंजताणं नोसंयतासंथतानाम् ,, नोसुहुमनोबादराग नोसूक्ष्मनोबादराणाम् २६७ पमम् वनस्पतिविशेषः ५४ [१] गा. ५२ म्लेच्छजातिविशेषः ९८ पदे ११० गा. १२५ प्रदेश ५११ ,, २११, ५०७, ५४० , ५११ तः ५१३, ९७८ [१], १२४४ प्रदेशार्थतया २७३,३३०, ३३१, ४५२, ४५५[१], ४७३ [१], ४८३ [१], ४९५[१],५०९तः५११, ५१३, ५१५, ५१९, ५२५ [१], ५३९ [१], ५४२ [१], ५४८ [१], ५५० [१], ५५१ [१], ५५४ [२], ७७७, ८०३, ८०४, ९७९, ९८५[७], ९८७ [२], १२४७ तः १२४९, १५६५ प्रदेशार्थतया ५२९ [१], ५३० [१], ५४१ [१] प्रदेशाभ्यधिकः ५२७[३] , ५३९ [१], ५४८ [१] प पइट्ठिता पइट्ठिय पइट्ठिया पइण्णगं पएसट्टयाते पउम० पद्म " प्रतिष्ठिताः २११ गा. १५९ प्रतिष्ठित ९७१ गा. २०१ प्रतिष्ठिताः २११ गा.१६० प्रकीर्णकम्-प्रकीर्णकानि ११० गा. १२६ १९६ ,,- पद्मनामाभिधद्वीपसमुद्रार्थे पृ. २४८ । टि. १ पद्मम् ५५ [३] गा. १०८ पद्म ५४ [८] गा. ९० पद्मिनीकन्दः ५४ [८] गा. ८८ पद्मलता ४४ गा. २७ पद्मम् पएसब्भतिए पएसमब्भतिए +पउम-० पउमपउम [कंदे]- पएसमब्भहिते पएसहीणे पएसं पएसा प्रदेशहीनः ५०६, ५२७ [३], ५४८[१] प्रदेशम् १६१६ [१-२] प्रदेशाः ५२८, ५३४, ५४९ पउमलता पउमं ८५३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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