Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Shyamacharya, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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२४६
पण्णवणासुत्तपरिसिट्ठाई मूलसद्दो . सक्कयत्यो सुत्तंकाइ । मूलसद्दो सक्कयत्थो सुत्तंकाइ ०पडुप्पण्णं प्रत्युत्पन्नम् ९११ [२], पणट्रसंधि प्रणष्टसन्धिम् ५४ [] ९२१ [१], ९२४
गा. ८५ • पडुप्पण्णो
प्रत्युत्पन्नः ९२१ [१] पणतालीसं पञ्चचत्वारिंशत् २११,५९४ पडुप्पन्नवयणे
प्रत्युत्पन्नवचनम् ८९६ पणतालीसाए पञ्चचत्वारिंशति १७६, पडोयारेहि प्रत्यवतारैः १९६३
पृ. ३५ टि. १ पडोलकंदे पटोलकन्दः पृ. १८ टि. ८ पणतीसतिभागा पञ्चत्रिंशद्भागाः १७०२ पडोलं पटोलम् ५४ [८] गा. ९४
[६, ८, १८-२१, ४५]] पडोला पटोला ४२ गा. २०, ४५ पणतीसतिभागे पञ्चत्रिंशद्भागान् १७११
गा. २८ पढम.
प्रथम २१७३ [२] पणपण्णं पञ्चपञ्चाशत् ३४४[१,३], पढमताए प्रथमतया ५४ [९] गा.
४०८[१, ३], ४१४[१,
३], ४१६[१,३], १२६४ • पढमवग्गमूलस्स प्रथमवर्गमूलस्म ९१२
[२]. १२७० [२], [२], ९२०
पणयालीसं पञ्चचत्वारिंशत् पृ. १६५ .पढमवग्गमूलं प्रथमवर्गमूलम् ९११ [२],
टि. ४ ९२१ [१]
+पणरस पञ्चदशम् ७९० गा. १८८, पढमसमय प्रथमसमय ११२, ११५,
पृ. २०२ टि. २-३ ११६, ११८, ११९,
पणवण्णिय पणपन्निक, पणपर्णिक, १२२, १२३, १२५,
प्रार्णपर्णिक-वानव्यन्तर१२८, १२९, १३१,
देवजाति १८८ १३२
+पणवन्निय पणपन्निकः- वानव्यन्तरपढमं प्रथमम् १७८ [१.२],
देवजातिः १९४ गा.१५१ ६४७ गा. १८३,२१७५,
पणवीसं पञ्चविंशतिः १६९ पृ. ४५ पं. २६
प्रणिधाय १२१५ [१],
पणिहाए पढमा
७८१ प्रथमा पढमे प्रथमे २०४६, २१७२
पृ. २९० टि. १ प्रथमः ७९० गा. १८५
पणिहाय
, १२१५[२.३] १८७, १५९१, १५९९
पणुतालीसाए पञ्चचत्वारिंशति ९३ [१], पृ. २४८ पं. २५,
पणुवीसइमो पञ्चविंशतितमः ७९० गा. पृ. २७९ पं. १५, पृ. ३६७ पं. २४, पृ. ४००
पञ्चविंशतिः ४२९ [१, ३], पं. १२
४३० [१, ३], १५२९ पणए पनकः ५१, ५४ [१]
[५-६], १९९१, १९९२ गा. ४७, ५५ [३] पणुवीसाए पञ्चविंशतौ १८४४,१८४५
गा, १०८ पणुवीसाए पञ्चविंशतेः पञ्चविंशत्या वा पणगजीवस्स पनकजीवस्य २१७५
७१६, ७१७ पणगमत्तिया. पनकमृत्तिकाः
० पणुवीसाए , १७१५, १७१७
पढमो
MAHESARI
पणुवीसं
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