Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Shyamacharya, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 731
________________ २१४ मूलसड़ो - तं ति Jain Education International पण्णवणासुत्तपरिसिट्ठाई सकयस्थो सुत्तंकाइ मूलसड़ो ४० तः ५३, ५६ [२], त्ति ५७ [२], ५८ [२], ६०, ६३ तः ६७, ७१ तः ७४, ७५ [४], ७९ तः ८३, ८४ [४], ८५ [५], ८७ तः ९०, ९१ [४], ९३, ९५, ९६, ९८, १००, १०२ तः १०८, ११०, ११५, ११६, ११८, ११९, १२२, १२३, १२५, १२८, १२९, १३१, १३२, १३५ तः १३८, १४० [२], १४१ [२], १४२ [२], १४४ [२], १४६ [२], १४७ [२], ४९९ [२], ५५८, ८८२ तः ८८६, ९४६, ९५७, १०८९तः १०९१, १०९४ तः १०९९, ११०१,११०३, ११०४, ११०६ तः ११२२, १५७० तः १५.७२ इति २ गा. ६, ५४[१] गा. ५०, ५४ [२] गा. ५४, ११० गा. १२१ तः १२५ गा. १२७ गा. १२९-१३०, २११ गा. १७८, ४८८, ५०७, ५५३, ६०८, ६७२ [६, ९], ८४१ तः ८४३, ८४५, ८४६, ८५४ तः ८५६, ९८७ [१५], ९९०[४], १०३२[१], १०४१ [६], १०६१, १२४८,१२४९, १२५१, १२६० तः १२६२ [१], १२६४ [२] तः १२६६ ० तिभागेण ० त्तिभागो त्थंभाण ० तिथभगा forभुगा त्थिहु तिथहू ● स्थीओ • त्थोवा For Private & Personal Use Only सक्कयत्थो सुतंकाइ [१], १२६७, १२६८ [१], १२७० [२] तः १२७३, १२७५, १२७९, १२८१, १२८२, १२८४, १२८५, १२८९, १३००, १३०२, १३०५, १३१०, १३१२, १३२२, १३३०, १३३७, १३५८, १३५९, १३६५ तः १३६७, १३६९, १३८६, १४०८ [३], १४४१, १४७९, १५३९ [४], १५४४ [२३], १५५२, १५८४ [9], १७०१ [४], १७०२ [१६], १७२८, २१७६, पृ. २१० टि. ४, पृ. ३१२ टि. १, पृ. ३५३ टि. २ त्रिभागेन २११गा. १६६ त्रिभागः २११ गा. १६३ स्तम्भानाम् ८८३ वनस्पतिविशेषः ५४ [१] गा. ४७ पृ. २१ टि. ८ 32 १३२० तः - १३२६ तः १३३५ तः " ५४ [१] गा. ४७ पृ. २८३ टि. १ स्त्रियः स्तोकाः २१३ तः २१६, २१८ तः २२३ [१-८], २२४, २२५, २२७ तः २७१, २७३ तः २७८, २८०, २८२, २८४, २८६, २८८, २९०, २९२तः ३२७, ३३० तः ३३२, ३३४, ६९१, "3 'www.jainelibrary.org

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