Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.५५ जंबूद्वीपद्वारसंख्यादि निरूपणम् ४३ किन्नररुरुशरभचमरकुञ्जरवनलतापमलताभक्तिचित्रम्, ईहामृगादिचित्रविच्छिच्या चिचरचनया चित्रितम्, 'खंभुग्गयवइरवेइया परिगयाभिरामे' स्तम्भोगतवज्रवे. दिका परिगताभिरामम्, विजाहरजमलजुयलजंतजुत्ते इव' विद्याधरयमलयुगलयन्त्र युक्तमिव 'अच्चिसहस्समालिणीए' अचिःसहस्रमालिनीकम् 'रूवगसहस्सकलिए' रूपकसहस्रकलितम् 'भिसमाणे भिब्भिसमाणे' दीप्यमानं देदीप्यमानम्, 'चक्खुलोयणले से' चक्षुर्लोकनलेसम् ‘सुहफासे' सुखस्पर्शम् ‘सस्सिरीयरूवे' सश्रीकरूपम् -मकर के-पक्षी के, व्याल-सर्पराज के-किन्नर के, रुरु-मृग के, सरभ -अष्टापद के, चमरी गाय के, कुंजर-हाथी के, वनलताओं के, और पद्मलताओं के चित्र बने हुए है 'खंभुग्गयवइरवेझ्या परिगयाभिरामे' यह द्वार वज्रवेदिकाओं से जो कि इसके खंभो पर बनी हुई है बहुत ही अधिक आकर्षक है। 'विज्जाहर जमलजुयलजंतजुत्ते इव अच्चिसहस्स मालिणीए' विद्याधरों के समश्रेणिकयुगल-जोडे यंत्र मे लगे हुए प्रतीत होते हैं अर्थात् वे ऐसे प्रतीत होते हैं कि ये स्वाभाविक नहीं है किन्तु विशिष्ट विद्याशक्तिवाले किसी पुरुषने अपनी दिव्य शक्ति के पुरुष के प्रपञ्च से बनाए है और प्रभासमुदायसे युक्त है। 'रूवगसहस्सकलिए' यह हजारों रूपों से युक्त है 'भिसमाणे' अपनी प्रभा से चमकता रहता है और 'भिब्भिसमाणे' बहुत ही अधिक रूप में तेजस्वी प्रतीत होता है, 'चक्खुलोयणलेसे' देखने पर यह ऐसा प्रतीत होता है कि मानो आंखों में ही समाया जा रहा है। 'सुहफासे' इसका स्पर्श अधिक सुखजनक है 'सस्सिरीयरूवे' इसकारूप अधिक सुहावना और लुभा. તુરગઘેડાના નર-મનુષ્યના મઘરના પક્ષીના સપના કિન્નરના રૂરૂ નામના મૃગના સરભ અષ્ટાપદના, ચમરી ગાયના કુંજર હાથીના. વનલતાઓના અને પદ્મसामान चित्रो नेता छे. 'खंभुग्गयवइरवेइया परिगयाभिरामे' मा २ १x. વેદિકાઓથી કે જે તેના થાંભલાઓ પર બનેલ છે. અને ઘણજ અધિક प्रभाथी पित साणे छ. 'विज्जाहरजमलजुयलजंतजुत्ते इव अच्चिसहस्स मालिणी विद्याधना सम श्रेणियापर युगलो-सा यत्रमा समाउसापा જણાય છે. અર્થાએ એવા જણાય છે કે તેઓ સ્વાભાવિક નથી. પરંતુ વિશેષ પ્રકારની વિદ્યાશક્તિવાળા કેઈ પુરૂષે પિતાની વિદ્યાના પ્રભાવથી બનાવેલા છે. भने ते प्रमासमुदायथी युटत छ. 'रूवगसहस्सकलिए' ते १२॥ ३पोथी युति छ. 'भिसमाणे पोतानी प्रमतीथी यमता २ छे. 'भिब्भिसमाणे' पधारे प्रभामा तेवी य छे. 'चकखुलोयणलेसे' नेपाथी सेवा arelu छ Mणे मनामा सभा तय छे. 'सुहफासे' तेना २५ पधारे सुप
જીવાભિગમસૂત્ર