Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
थे
षष्टमांगाताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध 48
सत्थमई वासारए, उप्पत्तियाए वेणईयाए कम्मइयाए, परिणामियाए,चउब्विहाए बुद्धिए उववेए, सेणियरस रण्णो वह सुक जेसुय, कुटंबेसुय, मतेसुय गुज्झेसुय, रहस्सेसुय, णिच्छएसुय आपुच्छणिजे, पडिपुच्छणिज्जे, मेढीपमाणं आहारे, अलंबणभूए, पमाण, भूए, आहारभूए, चक्खभूए, सब्बकजे मुय, सबभूमियासु, लड पञ्चए विइण्णवियारे,
रजधुरचिंततयावि होत्था, सेणियस्तरपणो-रजंच रटुंच, कोसंच कोट्ठागारंच, बलंच, उपहा-उपयोग में शीघ्र याद करना, मार्ग गरेपणा-न्याय मार्ग का उपाय करना, भाव का भेद जान से न्याय अन्याय का निर्णय करना, अर्थ युक्ति से द्रव्योपार्जन करना. तथा शास्त्र व शस्त्र कला में पण्डित था. उत्सातिक-विना देखी विना सुनी बुद्धि तत्काल उतान हावे, २ विनायका-गुरुआदि के विनय से बुद्धि की प्राप्ति होवे, ३ कर्मणी-कार्य करने से बुद्धि की प्राप्ति होवे व४ परिणामिक-अवस्था अनुसार बुद्धि होवे; ऐसी चार प्रकार की बुद्धि सहित था. वह अभय कुमार श्रेणिक राजा को अपने बहुन कार्यों में, कुटुम्ब के कार्यों में,मंत्रि के स्थान,मलाइ में,गा कार्यों में,रहस्यवाले कार्यों में निश्चय की वार्ता में एक वार व अनेकवार पूछने योग्य था. सब को आधारभून, रस्सी जैस अबलम्बनभूत, प्रत्यक्ष प्रमाणभूत,याहारभूत, चक्षुभून, सब कार्य व सब स्थानों में प्रतिष्ठा प्राप्त करनेवाला, कार्य में विस्तीर्ण विचारवाला और राज्य की धुरा धारन करनेवाला-अर्थात् राज्य चलानेवाला था. वह सयमेव अणिक राजा का राज्य, राष्ट्र, को
उलिम (मेघकुमार) का प्रथम अध्ययन
हर
4
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org