Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ आचारांग सूत्र-प्रथम श्रु तस्कन्ध का स्पर्श करते हुए' मैंने यह सुना है। इससे यह सूचित होता है कि सुधमास्वामी ने यह वाणी भगवान् महावीर से साक्षात् उनके बहुत निकट रहकर सुनी है। संज्ञा का अर्थ है, चेतना / इसके दो प्रकार हैं, ज्ञान-चेतना और अनुभव-चेतना / अनुभव-चेतना (संवेदन) प्रत्येक प्राणी में रहती है / ज्ञान-चेतना-विशेष-बोध, किसी में कम विकसित होती है, किसी में अधिक / अनुभव-चेतना (संज्ञा) के सोलह एवं ज्ञान-चेतना के पाँच भेद हैं।' चेतन का वर्तमान अस्तित्व तो सभी स्वीकार करते हैं, किन्तु अतीत (पूर्व-जन्म) और भविष्य (पुनर्जन्म) के अस्तित्व में सब विश्वास नहीं करते। जो चेतन की त्रैकालिक सत्ता में विश्वास रखते हैं वे प्रात्मवादी होते हैं / यद्यपि बहुत से प्रात्मवादियों में भी अपने पूर्वजन्म की स्मृति नहीं होती, कि 'मैं यहाँ संसार में किस दिशा या अनुदिशा से आया हूँ। मैं पूर्वजन्म में कौन था ?' उन्हें भविष्य का यह ज्ञान भी नहीं होता कि 'यहाँ से आयुष्य पूर्ण कर मैं कहाँ जाऊंगा! क्या होऊंगा?' पूर्वजन्म एवं पुनर्जन्म सम्बन्धी ज्ञान-चेतना की चर्चा इस सूत्र में की गई है / नियुक्तिकार प्राचार्य भद्रबाहु ने 'दिशा शब्द का विस्तार से विवेचन करते हुए बताया है- 'जिधर सूर्य उदय होता है उसे पूर्वदिशा कहते हैं। पूर्व आदि चार दिशाएँ, ईशान, आग्नेय, नैऋत्य एवं वायव्यकोण: ये चार अन दिशाएँ, तथा इनके अन्तराल में पाठ विदिशाएँ, ऊर्व तथा अधोदिशा--इस प्रकार 18 द्रव्य दिशाएँ हैं। मनष्य, तिर्यंच, स्थावरकाय और वनस्पति की 4-4 दिशायें तथा देव एवं नारक इस प्रकार 18 भावदिशाएँ होती हैं। मनुष्य को चार दिशाएँ सम्मूच्छिम, कर्मभूमिज, अकर्मभूमिज, अन्तरद्वीपज / तिर्यंच की चार दिशाएँ-द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय / स्थावरकाय की चार दिशाएँ-पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय और वायुकाय / वनस्पति की चार दिशाएँ अग्रबीज, मूलबीज, स्कन्धबीज और पर्वबीज / 2. से ज्जं पुण जाणेज्जा सहसम्मुइयाए परवागरणेणं अण्णसि वा अंतिए सोच्चा, तं जहा-पुरस्थिमातो वा दिसातो आगतो अहमंसि एवं दविखणाओ वा पच्चस्थिमाओ वा उत्तराओ वा उड्ढाओ वा अहाओ वा अन्नतरोओ दिसाओ वा अणुदिसाओ वा आगतो अहमंसि / एवमेसि जंणातं भवति-अस्थि मे आया उववाइए जो इमाओ दिसाओ वा अणुदिसाओ वा अगुसंचरति, सव्वाओ दिसाओ सव्वाओ अणुदिसाओ जो आगओ अणुसंचरइ सो हं। 3. से आयावादी लोगावादी कम्मावादी किरियावादी। 1. अनुभव संज्ञा-पाहार, भय, मैथुन, परिग्रह, सुख, दुःख, मोह, "विचिकित्सा, "क्रोध, १°मान, ११माया, १२लोभ, १३शोक, 1 "लोक, १५धर्म एवं १५ोघसंज्ञा / —प्राचा० शीलांकवृत्ति पत्रांक 11 ज्ञान संज्ञा-मति, श्रत, अवधि, मनःपर्यव एवं 'केवलज्ञान-संज्ञा ।-नियूक्ति 38 2. नियुक्ति गाथा 47 से 54 तक। 3. 'सह सम्मुतियाए' सह सम्मइयाए' सहसम्मइए'–पाठान्तर है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org