________________
आचा
॥२८१॥
ASSAGAR
जे जीव पूर्वे वर्णवेला शब्दादिक गुणोमां वर्तेः तेज संसार मूळ कषाय आदि स्थान विगेरेमा वर्ते छे, अने तेज वीजा मूत्रनी अपेक्षावडे व्यत्यय करवाथी पूर्व माफक योजq; कारणके सूत्रनुं अनंतगम अने पर्यायपणुं छे.
सूत्रम् वळी आ पण जोQ. जे गुण तेज मळ स्थान छे, अने जे मूळ तेज गुण.स्थान पण तेज छे अने जे स्थान तेज गुण अने मूळ पण तेज छे.
आ प्रमाणे बीजा विकल्पोमां पण योजq अने विषयना निर्देश (बताववा) मां विषयी पण वतावी दीधो छे. जे गुणमां वर्ते | ॥२८१॥ ६ छे. तेज मूळस्थानमां वर्ते छे. ते प्रमाणे बधे जाणवू. अही0 सर्बज्ञन कहेलं होवाथी सूत्रनुं अनंत अर्थपणुं जाणवू ते आ प्रमाणे छे. है अहीआं कषाय विगेरे मूळ बताच्यु. अने क्रोध विगेरे चार कपायो छे. वली अनंता-बंधी विगेरे चार भेदे क्रोध छे. अने ।
अने अनंतानुवंधीनां असंख्येय लोकाकाश प्रदेश प्रमाण बंधना अध्यवसायनां स्थान जाणवां तथा तेओना पर्यायो पण अनंता छे. ४ तेथी प्रत्येकने स्थान गुणना निरुपणवडे सूत्रनुं अनंत अर्थपणुं थाय छे. छमस्थ (केवळ ज्ञानविनाना) जीवोने बधा आयुष्यमों पण ५
ते मेळवीन शकाय तेथी अनंत पणाने लीवे समजाववाने पण अशक्य छे. पण एम अहीं आ दिशावडे थोडामां दिगदर्शनरूपे वताव्यु छे. अने कुशाग्र (तिक्षण) बुद्धिवालाए गुण स्थानोर्नु परस्पर कार्य कारण भाव विगेरेनी संयोजना करवी.
तेथी आ प्रमाणे जे गुण तेज मूळस्थान, अने जे मूळस्थान तेज गुण एम कहां, तेथी शुं समजवू ते कहे छे "इतिसे गुणठी" विगेरे अहीआं इति शब्द हेतुना अर्थमां छे. एटले जे शब्दादि गुणथी परीत. (व्याप्त) आत्मा छे ते कषायना मूळ स्थानमा वर्ते Kछे. अने वधाए पाणीओ गुणना प्रयोजनवाला छे. तथा गुणना रागी छे. तेथी गुणोनी प्राप्तिमा अथवा प्राप्त थइने नाश थतां
ॐAE