Book Title: Adhyatma Panch Sangrah
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust
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चारित्र- स्थिरता भाव की प्राप्ति का नाम चारित्र है। राजा को ज्ञान के द्वारा जो ऋद्धि प्राप्त होती है, उसे बनाये रखने में चारित्र के अनुसार कार्य करना होता है जिसे अन्य कोई कर नहीं सकता है। परमात्मा राजा को देखने-जानने में जिस अतीन्द्रिय आनन्द की प्राप्ति होती है, उसकी स्थिरता चारित्र से ही उपलब्ध होती है। यदि चारित्र न होता, तो राजा को अपनी राजधानी का सुख विलास नहीं मिलता। अतएव चारित्र राज्यपद की सफलता का कारण है। यह चारित्रमन्त्री सभी गुणों को सफल करता है। सफलता मिलने पर ही गुण-प्रजा का विलास समझा जाता है। अतः राज्यपद को टिकाए रखने वाला चारित्र बड़ा मन्त्री है।
___सम्यक्त्व- सम्यक्त्व सेनापति या फौजदार है।आत्मा के असंख्य प्रदेशों की गुणप्रजा का पालन सन्यच करता है। जो प्रजा के प्रतिकूल है, वह उसका प्रवेश नहीं होने देता है। अज्ञान ज्ञान के प्रतिकूल है। अज्ञान के कारण ही संसारी जीव अन्धे हो कर संसार में मारे-मारे फिर रहे हैं। जीव अपने स्वरूप को नहीं पहचानते हैं, इसलिये निजतत्व से भिन्न पर को हेय नहीं जानते हैं। ऐसे अज्ञान का अंश मात्र भी प्रवेश सम्यक्त्व नहीं होने देता है। मोह के कारण संसारी जीव अनन्त ज्ञान के धनी को भी भूल गया है । इस मोह को भी यह सम्यक्त्व अपने यहाँ नहीं आने देता है। सम्यक्त्व का ऐसा प्रताय है कि वह भावकर्म (राग-द्वेष आदि) तथा नोकर्म का प्रवेश नहीं होने देता है । वह परमात्मा की राजधानी को जैसी की तैसी रखता है। परमात्मा राजा के जितने भी गुण हैं, वे इस सम्यक्त्व के होने से शुद्ध हैं। इस कारण राजा ने सम्यक्त्व को ऐसा कार्य सौंपा है। सम्यक्त्व परमात्मा राजा की आज्ञा का ऐसा पालन करता है कि हर्ष, शोक आदि पर भावों के वश में हो कर जीव जो अपने स्वरूप का अनुभव नहीं कर सकते हैं, उनको निर्भय कर अपने स्वभाव से प्रतिकूल रहने वालों को पास में नहीं आने देता है। इस प्रकार सम्यक्त्व सेनापति परमात्मा का सब कुछ तथा संरक्षक है। परिणाम कोतवाल तो नगर में चोर रूपी पराये (पर) परिणामों का प्रवेश नहीं होने देता है। राग-रंग आदि पर परिणाम आत्म-निधि की चोरी करने में चतर हैं। अतः परिणाम कोतवाल उनसे रक्षा करता है।