Book Title: Acharanga Sutra Part 05
Author(s): Manekmuni
Publisher: Mohanlal Jain Shwetambar Gyanbhandar

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Page 291
________________ [ २७२ ] याणि वा खाणुयाणि वा कडयाणि वा पगडाणि वा दरीणि वा पदुग्गाणि वा समाणि वा २ अन्नयरंसि तह० नो उ० ॥ से भिक्खू० से जं० पुण थंडिलं जाणिजा माणुसरंधणाणि वा महिसकरणाणि वा वसहक० अस्सक० कुक्कुड़क० मक्कडक० हयक० लावयक० वट्टयक० तित्तिरक० कत्रोयक० कविजलकरणाणि वा अन्नयरंसि वा तह० नो उ० ॥ से भि० से जं० जाणे० वेहाणसट्ठाणेसु वा गिद्धपट्टठा० वा तरुपडट्ठाणेसु वा० मेरुपडणठा० विसभक्खणयठा० अगणिपडट्टा अन्नयरंसि वा तह० नो उ० ॥ से भि० से जं० आरोमाणि वा उज्जाणाणि वा वणाणि वा वणसंडाणि वा देवकुलाणि वा सभाणि वा पवाणि वा अन्न० तह० नो उ० ॥ से भिक्खू० से अं पुण जा० अट्टालयाणि वा चरियाणि वा दाराणि वा गोपुराणि वा अन्नयरंसि वा तह० थं० नो उ० ॥ से भि० से जं० जाणे० तिगाणि वा चउक्काणि वा चच्चराणि वा चउम्मुहाणि वा अन्नयरंसि वा तह० तो उ० ॥ से भि० से जं० जाणे० इंगालदाहेसु खारदाहेसु वा मडयदाहेसु वा मडयधूभियासु वा मडयचेइएस वा अन्नयरंसि वा तह० थं० नी उ० ॥ से जं जाणे० नइयायतणेसु वा पंकाययणेसु वा ओघाययणेसु वा सेयणवहंसि वा अन्नयरंसि वा तह थं० नो उ० ॥ से भि० से जं जाणे० नवियासु वा मट्टियखाणिआसु नवियासु गोप्पहेलियासु वा गवाणीसु वा खाणीसु वा अन्नयरंसि वा तह० थं० नो उ० ॥ से जं जा० डागवञ्चसि वा सागव० मूलग० हत्थंकरवञ्चंसि वा अन्नयरंसि वा तह० नो उ० वो० ॥ से भि० से जं असणवणंसि

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