Book Title: Acharanga Sutra Part 05
Author(s): Manekmuni
Publisher: Mohanlal Jain Shwetambar Gyanbhandar
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________________ [352 इक्कारस तिति दोदो दोदो उद्देसएहिं नायव्वा / सत्तयअट्टयनवमा इक्कसरा हुंति अज्झयणा // 346 / / તથા મહાપરિજ્ઞા નામનું અધ્યયન વિચછેદ જવાથી તેની નિર્યુક્તિનું વિવરણ ટીકાકારે ન કરવાથી નીચે મુકી છેपाहण्णे महसदो परिमाणे चेव होइ नायव्यो। पाहण्णे परिमाणे य छविहो होइ निक्खेवो // 1 // दवे खेत्ते काले भावंमि य होंति या पहाणा उ। . तेसि महासदो खलु पाहण्णेणं तु निप्फन्नो // 2 // दव्वे खेत्ते काले भावंमि य जे भवे महंता उ। तेसु महासदो खलु पमाणओ होंति निप्फनो // 3 // दवे खेत्ते काले भावपरिण्णा य होइ बोद्धव्वा / जाणणओववक्खणओ य दुविहा पुणेक्का // 4 // भावपरिण्णा दुविहा मूलगुणे चेव उत्तरगुणे य / मूलगुणे पंचविहदु विहा पुण उत्तरगुणेसु // 5 // पाहण्णेण उ पगयं परिणाएय तहय दुविहाए / परिण्णाणेसु पहाणे महापरिण्णा तओ होइ // 6 // देवीण मणुईणं तिरिक्खजोणीगयाण इत्थीणं। तिविहेण परिश्चाओ महापरिणाए निज्जुत्ती // 7 // -* आयारागसूत्र समास थयु. * d.

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