Book Title: Acharang Sutram Shrutskandh 02
Author(s): Kulchandrasuri
Publisher: Porwad Jain Aradhana Bhavan Sangh

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Page 12
________________ भिक्खू वा. जाव समाणे से जं पुण जाणिज्जा-पिहुयं वा जाव चाउलपलबं वा असहं भज्जियं दुक्खुत्तो वा तिक्खुत्तो वा भज्जियं फासुयं एसणिज्जं जाव पडिगाहिज्जा ।। सूत्र-३ ।। स भिक्षुर्वा यावत् सन् स यत्पुनर्जानीयात् - पृथुकं नवस्य शालिव्रीह्यादेरग्निना ये लाजाः क्रियन्ते तान् वा बहुरजो तुषादिकं यस्मिंस्तद् वा भुग्नं वा चूर्णं गोधूमादेः वा तन्दुलं वा तन्दुला एव चूर्णीकृतास्तत्कणिका वा तन्दुलप्रलम्बं वा सकृत् संभग्नम् आमर्दितं किञिदग्निना किञ्चिदपरशस्त्रेण अप्रासुकं मन्यमानो यावत्र प्रतिगृह्णीयात् । स भिक्षुर्वा यावत् सन् य यत्पुनर्जानीयात्पृथुकं यावत् तन्दुलप्रलम्बं वाऽसकृद भग्नं द्विकृत्वो वा त्रिकृत्वो वा भग्नं प्रासुकमेषणीयमिति मन्यमानो यावत् प्रतिगृह्णीयात् ।।३।। साम्प्रतं गृहपतिकुलप्रवेशविधिमाह - से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावाकुलं जाव पविसिउकामे नो अन्नउस्थिएण वा गारथिएण वापरिहारिओवा अपरिहारिएणंसद्धिंगाहावकुलं पिंटवायपडियाए पविसिज्ज वा निक्खमिज्ज वा। सेभिक्खूवा. जाव बहिया वियारभूमिं वा विहारभूमि वा निक्खममाणे वा पविसमाणे वा नो अन्नउत्थिएण वा गारथिएण वा परिहारिओ वा अपरिहारिएण सद्धिं बहिया वियारभूमिं वा विहारभूमि वा निक्खमिज्ज वा पविसिज्ज वा। सेभिक्खू वा. जाव गामाणुगामं हज्जमाणे नो अन्नउत्थिएण वा जाव गामाणुगामंदूहज्जिज्जा ।। सूत्र-४।। ___ सभिक्षुर्वा भिक्षुणी वा गृहपतिकुलं यावत् प्रवेष्टुकामो नाऽन्यतीर्थिकेन वा गृहस्थेन वा सह परिहारिकः पिण्डदोषपरिहरणादयुक्तविहारी वाऽपरिहारिकेण पार्श्वस्थादिना सार्धं गृहपतिकुलं पिण्डपातप्रतिज्ञया प्रविशेद वा निष्क्रामेद्वा । स भिक्षुर्बहिर्विचारभूमिं संज्ञाव्युत्सर्गभूमि विहारभूमि स्वाध्यायभूमि वा निष्क्रामन् वा प्रविशन वा नाऽन्यतीर्थिकेन वा गृहस्थेन वा सह परिहारिको वा अपरिहारिकेण साधू बहिर्विचारभूमिं विहारभूमि वा निष्क्रामेद्वा प्रविशेद्वा । स भिक्षुर्वा ग्रामानुग्रामं द्रवनगच्छन् नाऽन्यतीर्थिकेन वा यावद् ग्रामानुग्रामं द्रवेत-गच्छेत् ।।४।। साम्प्रतं तद्दानप्रतिषेधार्थमाह - सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा जाव पबिडे समाणे नोअन्नउत्थियस्स वा गारस्थियस्स वा परिहारिओ वा अपरिहारियस्स असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा दिज्जा वा अणुपदज्जा वा ।। सूत्र-५ ।। __ स भिक्षुर्वा भिक्षुणी वा यावत् प्रविष्ट: सन् नान्यतीर्थिकाय वा गृहस्थाय वा परिहारिको वाऽपरिहारिकाय वाऽशनं वा पानं वा खादिमं वा स्वादिमं वा दद्यादानुप्रदद्याद् वा ।।५।। आचारागसूत्रम्

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