Book Title: Achar Pradip
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
View full book text
________________
आ०प्र०
अथ प्रस्तावायातश्चारित्राचारो वित्रियते-तत्र चारित्र-साधोः सर्वविरतिरूपं श्राद्धस्य तु देशविरतिरूपं,यदाहुः-"सर्वाचारित्राचा ॥५४॥
स्मना यतीन्द्राणामेतच्चारित्रमीरितम् । यतिधर्मानुरक्तानां, देशतः स्यादगारिणाम् ॥१।।चारित्रं च भवद्वयेऽपि सर्वोत्कृएफलं, यतः-“नो दुष्कर्मप्रयासो न कुयुवतिसुतस्वामिदुर्वाक्यदुःखं, राजादौ न प्रणामोऽशनवसनधनस्थानचिन्ता न चैव । ज्ञानाशिौकपूजा प्रशमसुखरतिः प्रेत्य मोक्षाद्यवाप्तिः, श्रामण्येऽमी गुणाः स्युस्तदिह सुमतयस्तत्र यत्नं कुरुध्वम् । ॥१॥ चारित्रं हि निर्वाणस्यानन्यसाधारणमवन्ध्यं बीजं, यदागम:-" जम्हा दंसणनाणा संपुन्नफलं न दिति पत्ते। चारित्तजुआ दिति उ वसिस्सए तेण चारितं ॥१॥” तदाराधननिष्णातानां च महर्षीणामनन्तभवार्जिततीव्रतीव्रतरकस्नकर्मक्षयादिफलं कियदुच्यते ?, यतस्तेषां बहुमानमात्रमप्यमात्रफलं, सिद्धवैद्यजीववानरस्येव, तत्कथानकं पुनरित्थंअत्थित्य पुमत्थपरमत्थसाहणसमत्थसमत्थजणपंतिमई कतिमई नाम नयरी, तत्थ पसत्यजणाणवि बहुनिउणत्तणेण माणणिजो निरवज्जविज्जविजासमिद्धिपसिद्धो सिद्धो नाम महाविज्जो। इत्तो गाहा-तमि पुणोऽणंतभवंतरचिरतररचिअपरिचयवसेण । जायमहामोहो इव निवसइ निच्च महालोहो ॥१॥ घोरंधयारनियरो निरंतरो जह य नरयवासेसु । दुक्खं च । नारएम अ ही लोहो तह य जीवाणं ॥२॥ तस्स य लोहाउ हयं निउणतं दुण्णयाउ वित्तं वा, धूमा चित्तं तिमिरा नितं कवडाउ मित्तं व ॥३॥ तओ सो लोभाभिभूओ मूआभिभूओ इव न गणेइ सयणजणं, न चिंतेइ निमित्तपरिअणं, नावि
क्खेइ दीण-दरिद-दुक्खिअलोग,न वितकेइ पुण्णपावविवाग, न य संगरेइ नीइसत्याणि,न य गिण्हेइ हत्थेऽवि धम्मसत्थाणि, चारित्राRन य आणेइ सुविणेऽवि संतोसवित्तिं, न य गणेइ जणाववायकुकित्ति, किं बहुणा, रिंगिणीओसहविसेसवल्लीविसेसग- चार.
लोईहरडईगिरिकण्णीइंदवारुणीगोरखुरपुंआडधत्तूरधुंसगतगरएरंडअक्तरुथोपिप्पलबिल्लउंबरकिंसुगमूलगमहूगकविट्टकविकच्छूरा
॥५४॥
Jain Education initional
For Private & Personal Use Only
wwww.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208