Book Title: Achar Pradip
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 134
________________ आ०प्र० al णित सहसा अदंसणीहा कुमारहरिसेण सदि, तत्तो सो रागपुत्तो फालचुकानरुव्व लक्खचुकवणुधरय दायचुकजूभारव्य चारित्राचा. रसवइचुक्कसूआरव अइविच्छायमुहो तोसे गवेसणत्थं इओ तओ जाव परिम्भमेइ ता हक्कियो महारक्खसेणव घोरहुकारपरेण ॥ ५९॥ विज्जुम्मत्ताभिहाणविजाहरेण, भणिओ अ-रे रे ! भूचर !खेचरसेहरेण मीहेण व मए अहिलसिअं इमं मयच्छि मयधुत्तब्ध RP तुम अहिलसेसि, ता न हवेसि इआणि, इच्चाइ पयंपिरं तं खेअरं पइ पडिजपा अपडिहयसाहसो समुल्लसंतवीरिककरसो सो वीरावयंसो-हंहो विजाहर ! मा होहि विजाहरतगचिरो, जम्हा पुहवीसमुन्नवाणि सञ्चरयणाणि पुब्धि सबसाहारणाणि चेव हवंति, जो पुण समत्थो सो ताणि परिभुजेइ, जओ वीरभुजा वसुंधरा. एवं तस्स बाहरंतस्स सम्बस्समित्र हरंनस्स रहणणत्थं धाविओ अइकुविओ कालजीहाकरालकरवालको उत्तालवेआलुव्व सो विज्जाहरो, तओ तिविक्कमविक्कमपारो कुमारोऽवि आकडिअ उदग्गं नियखग्गं तस्स संमुहीहूओ मल्लस्सेव पडिमल्लो, जाओ अ दुण्डंपि अन्नोऽनघायवंचणनिउणाणं र महाविक्कमधणाणं देवाणवि चमक्कारसाहणो खग्गाखग्गि खण अइदारुगो रणो। इओ अ तस्स कुमारमित्तस्सवि दुज्जयत्त णेण अइरोसावेसवसा परवसस्स विजाहरस्स तब्बहत्थं चेव धावंतस्स विडत्थाओ हत्थाओ खग्गं कत्थवि अइदूरे पडिअं Mसडिअपत्तं व महापभंजणाभिभूआओ तरुसाहाओ॥ यतः-" तावच्चन्द्रबलं ततो ग्रहबलं ताराबलं भूबलं, तावसिध्यति वाञ्छितार्थमखिलं तावज्जनः सज्जनः। विद्यागा विद्याधरेण रुदमन्त्रतन्त्रमहिमा तावत्कृतं पौरुष, यावत्पुण्यमिदं नृगां विजयते पुण्यक्षये क्षीयत ॥१॥" युद्धे अरुण___ तओ कुमारेण छिन्नकरो कुंजरोध निदिसो विसहरोव सुहेण चेन सो अक्कमिओ, गमिओ अ भूमीए पाडि-देिवस्य जयः ऊण पमुव अइदीणतणं, अहो पुर्वि मुचिण्णस्स पुण्णस्स महामंतस्सेव असरिससहावो कोऽपि पहावो जं सो खयरिंदो सिह- ॥ ५९॥ For Private & Personal use only NHMISSIBHISH. Jain Education inte rnal Nam.jainelibrary.org

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