Book Title: Achar Pradip
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 144
________________ आ० प्र० चारित्राचा- पिच्छति,जन-पिच्छंति दुजणा। महई विहु सा रिद्धी,रमजा इव किंफला ॥१॥उक्तमपि-"दानोपभोगवन्ध्या या,सुहृद्भिर्या ॥ ६४॥ न भुज्यते । पुंसां हि यदि सा लक्ष्मीरलक्ष्मीः कतमा भवेत् ? ॥१॥” कमेण सो पत्तो अ मणिमंदिरपुरप्पच्चासन्नंमि अभिरामंमि आरामंमि, आवासि च तत्थ पसत्थाडंबरेण निअखयरसिन्नं अहिणववासि खयरनयरंव जं पडिहाइ, इओ अकेणवि चरपुरिसेण अइउल्लसिरहरिसेण अरुणदेवकुमारागमणनिवेअणेण वद्धाविओ पुत्तविरहदुहिओ अरुणदेवजणओ, R विणिग्गओ अ वद्धावगस्स इच्छिअपीइदाणपुवं अखब्वसव्वाडंवरेण तक्खणा चेव सोऽवि तस्स संमुहं । यतः--"आचारः कुलमाख्याति, वपुराख्याति भोजनम् । सम्भ्रमः स्नेहमाख्याति, देशमाख्याति भाषितम् ॥१॥" तओ दिखे विसिद्वतरतारिसाडंबरंमि तंमि कुमारंमि जलनिहिस्सेव संपुण्णससहरंमि जो जणयस्य विम्हयहरिसपगरिसो जाओ तस्स चेवप्पमाणोवमाणवण्णणे तिहुअणमवि सुण्णं पडिहाइ, कुमारस्स मिलणे पुण किं भणिमो ?, तओ महया विच्छड्डेणं नयरंमि पवेसिऊण निअरज विविहमहुस्सवपुव्वं सव्वंपि दाऊण निचिंतहियो मणिसेहरराया सम्मं जिणधम्मं करेइ,इत्थ गाहाओ-"भारक्ख मेऽवि पुत्ते, जो निमारं ठवित्तु निचिंतो । सम्मं धम्म न कुणइ, तम्हा मूढो हि को अन्नो ? ॥१॥जो जुव्वणमवि पत्तो Pal पुत्तो चिंतं पिऊण न हरेइ । न य कारवेइ धम्म पमुख्य किं तेण जाएण ? ॥२॥ तत्तो सो अरुणदेवाभिहाणो सव्वरजचिंता-दिशावकाश सावहाणो अहिणवनरवई अहिणवद्दिणवईद धरणिमंडलंय दुस्सहनिअमहामहेण अकमंतो लीलामित्तेण चेव संसाहिअवसुहा- अरुणदेवखंडतिगो अहिणववासुदेवुछ अहंपुट्विआपुब्वसवनरिंदविजाहरिदविंदससंभमपणमिरसिरसेहरपसरंतपउरपरागसुरभिकयपय वृत्तं ॥ पउमजुगो पागसासणोच्च अखंडसासणो उदग्गसमग्गभोगंगसज मुंजेइ निअरज, इत्थ गाहाओ-तिरिअत्तणेऽवि पुद्धिं सामा. ॥६४॥ इअसहिअमिकसिपि कय । देसावगासिअवयं, अहो फलं तस्स अइविउलं ॥१॥ जिणसासणंमि मणिआगरंमि मणिणो हु एहसार १११११रमार Jain Education Interna For Private & Personal use only jainelibrary.org

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