Book Title: Achar Pradip
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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धम्मविहि सव्वे । चितामणिव्व तत्थवि वयधम्मविही उ परमफलो ॥२॥ अहवा इमस्स किमिमं वयस्स तुच्छं फलं इमाओ जं। जिणरिद्धि भोगफलमवि, लहिही लहु चेव एस पुरो॥३॥ अन्नया तंमि नयरंमि महिद्धिअसड़संघेण नरेसाएसग्गहणपुव्वं रहजतामहूसवो मंडिओ, पिंडिओ अ तस्सुवरि सबहुमाणऽणेगगामनगरेहितो चउन्चिहोऽवि समणसंघनिवहो, निम्माविओ अ जच्चकंचणमणिगणेहिं सचओवि जडिओ चारुचंदणदारुघडिओ उडअखंडमणिकणगमयमहादंडपइडिआहि पवणाणुकूललहलहंतमहंतपंचवण्णसुकुमाल दुगूल जयप्पडागाहिं अणेगाहिं संसोहमाणो महप्पमाणो सव्वंगसुभगयरो एगो रहवरो, पउणीकया य बसहंकवसहाणुकारिणो सव्वंगसंगयसाइसयलक्खणलवखसयधारिणो तिहुअणजणमणोलीलाविहारिणो रणरणतरयणमय किंकणीगण जलहलंतसुवण्णसंकलाइसारअलंकारअलंकिआ दोसलेसेणवि अकलंकिआ जमलजायव्व दोऽवि समाणरूवा वसहरूबा, हकारिओ अ सबहुमाणं अभंगसुभगसव्वंगोवंगो अभंगुरगरिद्वविसिट्टधम्मरंगो पगईए अइदंसणिज्जो सव्वेसिं माणणिज्जो पहिराविअपवर चीवरकिरीडकुंडलकेऊरकडगहारद्धहारमुद्दिआइसबलालंकारो अहिअसस्सिरीअयाए सुरखइसारहिन्द भूमीए कयावयारो मणिजडिअकणगमयप्पाजणकरो एगो सारहियप्पवरो, तो तत्थ पसत्थे संदणंमि सवित्थरण्हवणूसवाइपुव्वं सव्वंगदिव्वाभरणभूसि सारसुरहिकुसुममालाइएहिं पूइ अप्पडिविवं एगं भगवओ दिव्यमणिमयबिंबं पवरपासाएव्व सुसावया म हूसवेण ठावंति, तओ तं सव्वजणाणंदणं महीअलअवयरिअतरणिसंदणं व मणिकंचणविचित्तं पवित्तछत्तत्तयचारुचामरमालाअणेगसीकरिजयप्पडागप्पमहमहाडंबरेण तंति १ ताल २ लाल ३ चम्मावणद्ध ४ मुहआउज्ज५ स्वपंचसद्देहिं बाइज्जमाणेहिं सरगय १ पदगय २ तालगय ३ अवहाणगय ४ रूवचउविहमहुरगीएहि गिज्जमाणेहि अणेगनडनट्टियागणेहिं देवदेवगणागणेहिपिव परिणच्चमाणेहिं भघटेहिं जयजयसई पउंजमाणेहिं माहणजणेहिं वेअपयाई उच्चर
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