Book Title: Achar Pradip
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 146
________________ आ० प्र० चारित्राचा. ॥ ६५ ॥ Jain Education Inter सहस्रस 1585262659 माहिं पबंधपाढगेहिं नवनवपबंधं पढ़तेहिं विरुदपाढगेहिं विरुदावलिं भणतेहिं पए पर थकणेहिं किज्जमाणेहिं सव्वत्यवि जहिच्छदाणेहिं दिजमाणेहिं पमज्जणचंदणरसच्छडापुप्फपगरपडागातोरणारणा विहिअसोहेसु तिगचउकचच्चरच उमुहमहापह हे चव्विसमणसंघेण समं समहिमं भमाडंति, एवं संचरंतो सो जस्स जस्स मंदिरस्स पुरओ वच्चइ तस्स तस्स निवासिणो जणा सव्वाडंबरेण समिद्धवद्धावणाणयणसवित्थ र जिणपू आजहसत्ति समग्गसंघ सम्माणणमग्गगज णमणमग्गिअदाणपाणा महूसवं कुव्वंति, एवं जिणसासणस्स महापभावणाए मिच्छद्दिट्टीणवि वोहिवीअसमज्जणाए निमित्तभूअत्तणं पत्ताए रहजताए करमाणी अरुणदेवो नाम नरदेवो पच्चासनं जिणरहं आगयं नाऊण जिणनमंसणत्थं पसत्थवद्वावणाइसमग्गसामग्गिपुव्वं सम्मुहमागओ, नमंसिअं च जाव तेण जिणर्विवं वद्धावणकरणाइविहीए ताव तत्थ गणाहिवसिरिसिरिप्पहरिसमी अइजराजज्जरविग्गहं एगं मुणिवसहं निहालयंतो सो भूकंतो अवकिअमहाभूअग्गहकंतो इव अउच्छमुच्छाए नडिओ धसत्ति धरणी अलंमि पडिओ, ताहे हाहाकारमुहरमुहेहिं मंतीसरपमुहेहिं गोसीस चंदणरससे चणवि विहताल विटपरिवीजनाइउवयारेहिं उवयरिओ, तओ तक्खणा चेव उवलद्धचेअण्णो संजायजाइसरणो सो सुत्तपडिबुद्ध सबलोअप्पमोअप गरिसेग सह सहसा समुट्ठिओ, तं वुतरं मुणिवरं परमभत्तिपुब्वं पुर्वि पणमिता पच्छा गच्छाहिवं पणओ, ताहे साहूहिं साहिखेवं भणिअं - भो भूपाल ! कलिकालस्सेव का एसा तुह विवरीआ ठिई ?, तेणवि सविनयं पडिभणिअं - भयवं ! इमेण मुनिसत्तमेण दिना मे एसा सावि समिद्धी, एस मे धम्मायरिओ परमोवयारी तेण पुचिं पणओ, यतः- “दुष्प्रतिकारौ मातापितरौ स्वामी गुरुश्च लोकेऽस्मिन् । तत्र गुरुरिहामुत्र च सुदुष्करवर प्रतीकारः ॥ १ ॥" तओं सविम्हयं किमेअंति गुरूहिं भजिए सो भणेइ सव्र्व्वपि निपुवभववइअरं संवित्थरं तत्तो समग्गोऽवि संघ अइविहियरो अइहरिसभरनिव्भरो अ संजाओ, तओ गुरूहिं सो For Private & Personal Use Only. 99999 देशावकाश अरुणदेववृत्तं ॥ ॥ ६५ ॥ www.jainelibrary.org

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