Book Title: Achar Pradip
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 132
________________ आ०प्र० चारित्राचा ESENHAIYASANNYMEYHAYARIES कमला, न पुण मणागपि कइआवि चदला, जा सयं निग्मलत्तण लिपि सहयाणं निम्मलीकरणेण य माणुसीरूवेव गदा, न पुण कइआवि विणिमिअजडसङ्गा, जा कलारन्तकालसरतणे.ण यग्गाए गामितणे.ण य भूमण्डलावयारिणीच रहिणी, न पुण कइआवि दोसोदयकारिणी दुदृग्गहरुङ्गधारिणी वा तीसे कुच्छिकन्दगए मन्दकन्दगए कप्पमोव्व मो वानरजीवो तो चुओ अवयरिओ, तइआ तीए मणिमालाए सुरिणमि तं चैव अरणभवणं अइमहन्तं निअमुहमि पविसन्तं दिलु, जमि सो चेव वानरजीवो देवत्तणं अणु अपुब्बो, तेण महामुविणे.ण तब्भणाणुर यसाइसयतेअरिसत्तणपरममहिम्वत्तणअचम्भूअसमिद्धि-5 समिद्धत्तणसमग्गजणआधारभृअत्तणप्पभिसव्वगुणसंपुरपुत्तसम्पत्तिपिमुणेण मण्वंछिअ थलाहसाहगेण महासउणेण व अ.हरिसिअमणा परमरोमञ्चरोमंकुन्दन्तुरिअदेहंगणा महाकदिवाणिच्च पसाथमहत्थसन्दभंतं मुहसुहेण वहमाणा पइदिण गम्भपग्वुिडीए किसत्तणं पावमाणावि अप्पक्खरमहा थगन्थजुत्तिव्य विसेसओ संसोहमाणा गब्माणुभावेण पयडमण्डलग्गह थग्गहणतद्दारभन्नरनिअवयणपलोअणनयरब्भन्तरनिअाणापवत्तणसवर जचिन्ताकरणसबलरिउवललीलामित्त वित्तासणसव्वप्पयारधम्मबिहियाराहणपमुहविविहदोहलेहिं रायप्पसार ओतकालं चैव सहलेहिं परमाणंदमयतणाणुहवमाणा करण सापुण्णेमु दिवसे सु उच्चा . णगएमु गहेसु मुहुत्तवेलाए पमूआसा सुहेण सव्वजणाणंदणं नंदणं नंदणरयणखाणिव्य दिव्वरयणं,नरवईवे पुतजम्मवद्धावगी. गाए चेडीए मउडवजनिअसबङ्गाभरणादि अरणआजम्मतच्डीचे डी कम्मपरिवज.णसमग्गचारगसोहणमाणुग्माणपवडणसधववहसंमज्जणचंदणरससेचणपुष्फप्पगरभरणअप्पडिरूब धूवउवखेवणगगीआउज नट्टतोरणपडागा इमंडणमणवलिअदविणसमपणदंडदाणिग्गहणाइग्मणनिसेहणनायरजणाणीअवद्धावणध सहरससहस्सरणीकरणपुद पच्छापचप्पणप्पमुहप्पयारप्पमुइअप- मुनेरौषध कीलिअसव्व जणवयं दस दिवसाणि अणवस्यं अहिणवं पुत्तजम्ममहूसवं कारदेइ, तओ सनिअनाइसयणपरिअणाण ण्हाण ५८॥ सराफरफरार वानरभवे For Private & Personal Use Only Jain Education Internal 140ww.jainelibrary.org

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