Book Title: Achar Pradip
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 130
________________ आ० प्र० ___ इत्य य कव्वाई-सहावओ सो भयकंपिरोऽधि, अकंपिरो जसणसाविजाभो। दुग्गोवसम्गेऽविहु तारिसंमि अच्छेश्य किपि चारित्राचा महंतमेअं ॥१॥ लज्जाइ सज्जा जसअस्थिगोवा, धगत्यिगो वा अभेमाणिगो वा ! सुक्करंसोह कुगति कि, इमं अब ॥५७॥ तिरिअस्स तस्स ॥२॥ भायेण जीवा अहवा दढतं, जलेण मुंजुन्ध उबागया जे। साह ते दुस्साहमवीह ते हु, जीमो हि जं चिंतइ तं करेइ ॥३॥ भणियं च-" ता तुंगो मेरुगिरी मयरहरो नाम होइ दुत्तारो। ता पिया कजाई जा न धोरा पवजन्ति ॥४॥ तेण पुण पश्चाणणेण आगणेण परमसभक्खणनिटुक्ख गेण तक्खणेग चेव खण्डावण्डि काउण भक्खि मोवि मो सुहम्झागेगरसावेसवसे ग मणसा अदुक्खिओ असमाहिमरणेऽवि समाहिमरण मो भव गवईसु अगाभिहाणंमि महाभवणमि बहुसहस्सवासाऊ सुरवरो जाओ। कमेग तओ चुभो जत्थ जाओ तं भणामि, तंजहा-नाणाविहनिम्मलमणिRa किरणनिकुरुंबनिन्नासिअंधयारप्पयारसारदिबविमाणावयाररमगिजमणिमन्दिरं मगिमन्दिरं नाम नयर,ज थ पसत्याचवनअन सामनमणिमएस भवणेमुपविसन्तोओगामीगमुद्धजुबईओ कत्थवि निम्मलफ.लहकु ट्रेमभूमीए नि वेटअइविसि रागपउमरागरयणगणेमसिणघुसिणब्भमेण कथवि विमलवेरुलियमणिमत्थे पसत्थकत्थूरिआभमण कत्थवि नीलोदलनोलईदनीलमणिनिवहे इनिअ. तरुणतणसमूहविब्भमेण कत्थवि अइपीयरयणपतीए हरिआलनिवहकिकामेण क थवि पसत्थवेरुलिअमणिबद्धभूमीए अभंतरभागविणिवे सिसि भवरकंतिकंतमहंतमणिसमूहे सारघणसारभरभंतीए कत्थवि वारिविन्भमकारिहारिवारिसरयणनिअरे निम्मलनीरभंतीए कथवि उवरि विणिम्मिकित्तिमरूपपारावयमोरईससारससुबमारिआइपडिबिनु महल्लको उहल्ल पसे ग जीवंतततज्जीव वानरनिगहगबुद्धीए कत्थ वे उवरिसोहानिमितठाविलंबतअहोपडिवितमहंतमु तावलिरपगालिकणगापलिपलबचम्बणाइरसुविवि- AM हआहरणाहरणबुद्धिए कत्थवि निभपिडिठिअइथिजणहत्य ठिअविहतिअधिविहवरकमल उप्पल गुप्फमालाइएसु मगित्यंभाइसु ॥२७॥ Jain Education Inte rnal For Private & Personal Use Only Melow.jainelibrary.org

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