Book Title: Aagam Sambandhi Saahitya 01 Aagamiy Sooktaavalyaadi
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Param Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad

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Page 24
________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [पिंडनियुक्ति+उत्तराध्ययनसूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) श्री ISI आगमीयसूक्तावली ॥१२॥ श्री आ। गा पिण्डयुक्त्युत्तराध्यय नयोः सूक्तानि FE। पूयाहिज्जे लोए दाणपडाग हरा दितो॥ १३१२ भवपि थूलभहो तिक्खे चंकम्मिमो न उण छिन्नो। पाएण देह लोगो उवगारिमु परिचिएसु झुसिए वा । | अग्गिसिहाए चुत्थो चाउम्मासे न उण दहो ॥ (१०४) जो पुण अद्धांखिन्नं अतिहिं पूड तं दाणं ॥ (१३१)/३ माणुस्सं धम्मसुई सद्धा तब संजमंमि विरिअंच। ८ दीहरसीलं परिषालिऊण विसपमु वच्छ! मा रमम। | एए भावंगा खलु दुल्लभगा हुंति संसारे ॥ (१४४) को गोपमि बुट्टा उहि तरिऊण वाहाहिं ? ॥ १३७ | ४ माणुस्स खित्त जाई कुल रुपाऽऽरोग्ग आउयं युद्धी । ९ छउमस्थो मुथनाणी उवउसो उज्जुओ पयसे । सवणुग्गह सदा संजमो अलोगंमि दुलहाई॥ (१४५) भावन्नो पणवीसं सुयनाणपमाणो मुखो॥ (१४७)|५चुलग पासग धम्ने जूए रयणे असुमिण चके य । १० ओहो मुओबउत्तो मयनाणी जावि गिह अस। | चम्म जुगे परमाणू दस विहृता मणुभलमे ॥ (१४५) तं केवलीवि भंजा अपमाण सयं भवे बहरागा आलस्स मोहऽयन्ना थंभा कोहा पमाय किविणचा। १९ मुत्तस्स अप्पमाणे चरणाभावो तो य मोक्खस्स। । भय सोगा अज्ञाणा वक्खेव कुऊहला रमणा ॥ मोक्स्सऽविय अभावे दिक्खपवित्ती निरत्था उ ॥ (१४८) एएहिं कारणेहि लढूण सुदुल्लहंपि माणुस्सं । न लहइ सुई हिमकर संसारुसारिणिं जीवो ॥ (१५१) अथ उत्तराध्ययनसूक्तानि ७ मिच्छादिट्टी जीयो उबटुं पययणं न सहहह । १ क्वचित् सौच्या शैल्या कचिदधिकृतप्राकृतभुया, कथि | सहहद असम्भावं उयाटुं या अणुबा? ॥ चार्थापरया कचिदपि समारोपविधिना । कचिच्चाध्या- सम्महिट्ठी जीवो उदाह्र पथयणं तु सद्दहर। हारात् कचिदविकलप्रक्रमबलादियं व्याख्या ज्ञेया कचि- | सहहद असम्भा अणभोगा गुरुनिमोगा वा ॥ दपि तथाऽऽनायवशतः ॥ (७१)|९ खित्तं वत्थु हिरणं च, पसवो दास पोरुसं । ॥१२॥ "आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~240

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