Book Title: Aagam Sambandhi Saahitya 01 Aagamiy Sooktaavalyaadi
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Param Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
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[भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि
आगमीय सूक्तावलि [बृहत्कल्पसूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य)
श्री
आगमीयसूक्तावली
॥४०॥
तु रायो । मा पुष्पभूयस्स भये विणासो, सीलस्स थोवाण | बीएहि विष्पमुको उपस्सओ एरिसो होइ ॥ (१५७-१-५) बृहत्कल्पस्य ण देति गंतुं ॥ (१४६-१-२)/७१ जह सुत्ते भणियं तहेवजह तं वियालणा नस्थि
IN सूक्कानि |६५ गुत्से गुत्तदुवारे कुलपुत्ते इत्थिमज्झनिहेसे।
किं कालियाणुओगो दिलो दिट्रिप्पहाणेहिं ॥ (१५९-२-१०) भीतपरिसमहविए अजासिज्जायरे भणिए ॥ (१४६-१-६)/ ७२ उस्सग्गसुयं किंची किंची अवयाइयं भवे सुत्तं ।। मो६६ अपुष्वपुंसे अवि देहमाणी वारेसि धूतादि जहेव भज्ज।। तदुभयसुत्तं किंची सुत्तस्स गमा मुणेयव्या ॥ (१५९-२-१४)
तहाऽवराहेसु मर्मपि पेकले जीवो पमादी किमुजोऽवलाणं ॥ |७३ कत्थर देसरगहणं कत्थवि भण्णति मिरवसेसाई । | ६७ पायं सकळोगहणाऽलसे य, युद्धी परस्थेसु उजागरू- उकमकमजुत्ताई कारणवसओ मिउत्ताई ॥ (१६०-२-११) का । तमाउरो परसति णेहकत्ता, दोसं उदासीणजणो ७४ उस्सग्गेण निसिहाई आई दव्याई संथरे मुणिणो।
(१४७-१-१) कारणजाते जाते सचाणिवि ताणि कप्पंति ॥ (१६१-१-२) ६८ कुलं विणासह सर्व पयाता, नदीव कूलं कुलटा उ मारी॥ | ७५ णवि किंचि अणुण्णायं पढिसिद्ध धाधि जिणवरिंदेहिं ।
(१४९-२-३) एसा तेसिं आणा कज्जे सच्चेण होयध्वं (१६२-३-३) भा६९ न चित्तकम्मरस विखेसमंधो संजाणते णावि मियंककति। ७६ दोसा जेण निरुज्झंति, जेण खिज्जंति पुवकम्माई। गः किं पीढसप्पी कह दूतकम्मं, अंधो कहिं कत्था देसियत् ॥ सो सो मोक्खोवाओ, रोगावस्थासु समर्ण व ॥ (१६२-१-८) का बुद्धी बलंहीणवला वयंति किं सत्सजुत्तस्स करेग बुद्धी। ७७ अगीयस्सन कप्पति तिविहं जयणं तु सो न जाणाइ । किसे कही णेष सुता कयाई, वसुंधरेयं जह वीरऽभोज्जा ॥ अणुण्णवणाऐं जयर्ण सपक्सपरपक्खजयणं च ॥ (१६२-१-१५)
(१५०-१-४)|७८ ण सको सुत्तत्थो णिउणो खलु अपडियोहिमो णाडं। . ७० चलया कोट्ठागारा हेवाभूमी य होद रमणिज्जा ।
॥४०॥
"आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1]
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