Book Title: Aagam Sambandhi Saahitya 01 Aagamiy Sooktaavalyaadi
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Param Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
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[भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि
आगमीय सूक्तावलि [बृहत्कल्पसूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य)
श्री आगमीयसूक्तावली
बृहत्कल्पस्य सूक्कानि
॥४६॥
१५२ काले उ अणुण्णाए जावि हु लग्गिज तेहि दोसेहि। | १५९ दोसा हु अणुवसंते न मुज्झई तस्स सामाइयं ॥ (१५९-१-१५)
मुखोऽवुवादितो लग्गति उ विषजयपरेणं ॥ (११७-१-१४) १६० नाणस्स होर भागी थिरयरओ दंसणे चरित्ते य । १५३ कालसरीरावेक्वं जगरसभावं जिणा वियाणित्ता। | धन्ना आवकहाए गुरुकुलवासं न मुंचंति ॥ (१७२-१-१५) तह तह दिसति धम्म खिजति कर्म जहा अखिलं ॥ १६१ भी(गी)यावासो र्य धम्मे, अणाययणवजणा।
(१२८-१-८) निग्गहो य कसायाणं, एयं धीराण सासणं ॥ (१७२-२-३) १५४ भाचार्य उपाध्यायो वा तस्य स्वगणे सूत्रार्थविषये |१६२ जइमं साहुसंसगि म वि मोक्खसि विमोक्खसि । विस्मृते गच्छान्तरे संक्रमणं।
(१२८-२-१) उज्जतो व तवे निच्चं तओऽवाहो न होहिसि ॥ १५५ पहिलेहि विभतुभट्टण निक्खिचभादाण विणय सज्झाए। | १६३ सच्छंदवत्तिया जेहिं, सरगुणेहि जढा जढा । अप्पणो से
आलोग ठवण भत्तट्टभासपडलसेजराईसु ॥ गच्छसी- | परेसिं च, निच्च सुविहिया हिया ॥ जेसिं चायं गणे वासो, दनस्थानानि ॥
(१४०-२-१०)। सजाणाणुमओ मो। दुहा याऽऽराहियं सेहि, निचिकप्प१५६ जो जेण जंमि ठाणमि ठावियो दसणे व चरणे या। सुहं सुहं ॥ नवधम्मस्स हि पागण, धम्मे न रमती मती ।
सो तं चुभं तो तंमि चेव काउं भवे निरिणो ॥ (१४४-१-८) वहए सोऽवि संजुत्तो, गोरिवाऽविधुरं धुरं ॥ एगागि१५५७ सब्वेवि मरणधम्मा संसारी तेण कासि मा सोगं। | स्स हि चित्ताइ, विचित्ताई खणे खणे । उप्पज्जति वयंते जं चऽप्पणोऽवि होहिति किं तत्थ भयं परगयंमि?॥ | य, वसेवं सजंणे अणे ॥
(१४७-१-१३)/१६४ वसिजा बंभचेरसि भुज्जमाणी उकादि उ । तहावि तं BAI १५८ अबिओसियंमि लहुगा मिक्ल बियारे य वसहि गामे य। न पूइंति, थेरा अयसभीरुणो । तिव्यामिग्गहसंजुत्ता,
गणसंकमणे भण्णति इहंपि तत्थेव वशाहि ॥ (१५४-१-८)। थाणमोणासणे रया । जहा सुझंति जयओ, पगाणेग
॥४६॥
"आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1]
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