Book Title: Aagam Sambandhi Saahitya 01 Aagamiy Sooktaavalyaadi
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Param Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (भाग भागम् नमो नमो निम्मलदसणस्स गम्य मा पूज्य आनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर-गुरुभ्यो नम: म् का आगम_संबंधी_साहित्य आगमीय-सूक्तावलि-आदिः आजमा आजम मूल संशोधक :- पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्यश्री आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराजसाहेब अभिनव-संकलनकर्ता :- आगम दिवाकर मुनिश्री दीपरत्नसागरजी (M.Com., M.Ed., Ph.D., श्रुतमहर्षि] पूज्य शासनप्रभावक आचार्य श्री हर्षसागरसूरिजी म० की प्रेरणा से श्री परम आनंद श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ, पालडी, अमदावाद Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ईस प्रोजेक्ट के संपूर्ण-अनुदान-दाता womanepance सच्चारित्र चूडामणि स्वर्गस्थ पूज्यपाद श्री परम आनंद श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ गच्छाधिपति आचार्यदेव श्री देवेन्द्रसागर की वीतराग सोसायटी, प्रभूदास ठक्कर कोलेज रोड, पालडी, अमदावाद सूरीश्वरजी महाराज साहेब करीब पचास साल पहेले परम पूज्य स्वर्गस्थ गच्छाधिपति आचार्य देव श्रीमद् देवेन्द्रसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब द्वारा संस्थापित इस संघमें श्री शीतलनाथ भगवंत का जिनालय भी है, जिन के प्रतिष्ठाचार्य भी पूज्य देवेन्द्रसागरसूरीश्वरजी म. ही है । इस संघमें पूज्य साधू-भगवंत एवं साध्वी-महाराज के लिए उपाश्रय भी है, जहां हर-साल चातुर्मास करवा के श्रावक-श्राविकाओ को धर्म-आराधन से लाभान्वित करवाया जाता है । इस संघर्म आयंबिलभवन, उबाला हुआ पानी, ज्ञान-भण्डार एवं पाठशाला की भी बहोत अच्छी सुविधा प्रदान हो रही है | ऐसे सम्यग-मार्गी संघ की सद्भावना और प्रभावक आचार्य पूज्य श्री हर्षसागरसूरिजी म. की प्रेरणा से इस शास्त्र के लिए अनुदान प्राप्त हुआ है | Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ म आज आजम आज आजम SIMINE नमो नमो निम्मलदंसणस्स आगम_संबंधी_साहित्य मूल संशोधक BISTR आजम STIT SPLOTER 37077 腿 अभिनव संकलनकर्ता STROTH आगम BIDDE आगर आवास आजम पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्य आगम दिवाकर मुनिश्री दीपत्नसागरजी श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराज आगम (M.Com., M.Ed., Ph.D., श्रुतमहर्षि] भागम आजम प्रत प्राप्ति और पेज सेटिंग कर्ता : के चेरमन श्री प्रवीणभाई शाह, अमेरिका मुद्रक : नवप्रभात प्रिन्टींग प्रेस अमदाबाद Mo 9825598855 / 9825306275 Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ &STISTA & BONER $377TH & 9am 1 TOTER BUSH आजम ॐ आगम आजम आगम आजम सन्म STING BRIMER 5000 आजम राज आजम वासरण आजम आजम आ आजम आजम आम आगम आगम आजम अनुराणम 2213111 lauri S1GT पलाम SUCHTE आज आगम आगम आगम वाचना शताब्दी वर्ष 841929 OTHE आगर BIOTH आम आ झालर सम् लाल आिणम् म जिम GLIGEN आगम आगम म आगम 271ST आपण 34676 3AUSTR Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीयसूक्तावल्यादि नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य श्रीआनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरुभ्यो नम: आगमीय-सूक्तावलि-आदिः [आगम-संबंधी-साहित्य] [आद्य संपादक: - पूज्य आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागर सूरीश्वरजी म. सा. 1 (किञ्चित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह) पुन: संकलनकर्ता, मुनि दीपरत्नसागर (M.Com. M.Ed., Ph.D., श्रुतमहर्षि) 01/02/2017, बुधवार, २०७३ महा शुक्ल ५ 'आगम-संबंधी-साहित्य' श्रेणि भाग-१ पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) श्रीआगमोद्वारसंग्रहे भागः ८ णमोऽत्थु णं समणस्स भगवभो महावीरस्स श्रीआगमीयसक्तावल्यादि (आगामीयसूक्तावलि १ सुभाषित २ संग्रहश्लोक ३ लोकोतयः ४ प्रकाशिका-सूर्यपुरीया श्रीजैनपुस्तकपचारकसंस्था इदं पुस्तकं सूर्यपुरे श्रीसरस्वतीमुद्रणालये बालुभाइ हीरालालद्वारा मुद्रयित्या प्रकाशितम् प्रतयः २५०] विक्रमसंवत् २००५, वीरसंवत् २४७५, इ. स. १९४९ [वेतनम् रु. २-४-० ... मूल संपादकेन मुद्रापित: मुखपृष्ठः ।। Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सामाचारी-संरक्षक, ज्ञानधनी, आगम-संशोधक, तीव्र-मेधावी, समाधिमृत्यु-प्राप्त, बहुमुखीप्रतिभाधारक पज्यपाद आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब • जिन्होने शुद्ध-श्रद्धा, सम्यक्-श्रुत आराधना, यथाख्यातचारित्र के प्रति गति और अंत समय देह-ममत्व के त्याग के द्वारा कायोत्सर्ग नामक अभ्यंतरतप कि मिशाल कायम कि है ऐसे बहुश्रुत आचार्य श्री सागरानंदसूरीश्वरजी महाराज का परिचय कराना मेरे लिए नामुमकिन है, फ़िर भी गुरुभक्ति बुद्धि से : श्रद्धांजली स्वरुप एक मामुली सी झलक पैस करने का यह प्रयास मात्र है। चारित्र-ग्रहण के बाद अल्प कालमे जो अपने गुरुदेव की छत्रछाया से दूर हो गये, तो भी गुरुदेव के स्वर्ग-गमन को सिर्फ कर्मो का प्रभाव मानकर | अपने संयम के लक्ष्य प्रति स्थिर रहते हए अकेले ज्ञान-मार्ग कि साधना के पथ पर चले | पढाई के लिए ही कितने महिनो तक रोज एकासणा तप के साथ | • बारह किल्लोमिटर पैदल विहार भी किया | लेकिन अपने मंझिल पे डटे रहे, और परिणाम स्वरुप संस्कृत एवं प्राकृत भाषा का, प्राचीन लिपिओ का, व्याकरणन्याय-साहित्य आदि का सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त किया | जैन आगमशास्त्रो के समुद्र को भी पार कर गए| .एक अकेला आदमी भी क्या नहीं कर शकता? इस प्रश्न का उत्तर हमें इस महापुरुष के जीवन और कवन से मिल गया, जब वे चल पड़े देवगिणी क्षमाश्रमण के स्थापित पथ पर. बिना किसी सहाय लिए हए सिर्फ अकेले ही "जैन-आगम-शास्त्रो" को दीर्घजीवी बनाने के लिए अनेक हस्तप्रतो से शुद्ध-पाठ तैयार किये | दो वैकल्पिक आगम, कल्पसूत्र और नियुक्तिओ को जोड़कर ४५ आगम-शास्त्रो को संशोधित कर के संपादित किया | फिर पालीताणामें आगम • मंदिर बनवाकर आरस-पत्थर के ऊपर ये सभी आगम-साहित्य को कंडारा, सूरतमें तामपत्र पर भी अंकित करवाए और "आगम मंजूषा" नाम से मुद्रण भी करवा के बड़ी बड़ी पेटीमें रखवा के गाँव गाँव भेज दिए | वर्तमानकालमे सर्व प्रथमबार ऐसा कार्य हआ | .सिर्फ मल आगम के कार्य से ही उन के कदम रुके नही थे, उन्होंने आगमो की वृत्ति, चूर्णि, नियुक्ति, अव चूरी, संस्कृत- छाया आदि का भी संशोधन-सम्पादन किया | उपयोगी विषयो के लिए उन्होंने एक लाख श्लोक प्रमाण संस्कृत-प्राकृत नए ग्रंथो की रचना भी की | कितने ही ग्रंथो की प्रस्तावना भी लिखी | ये सम्यक्-श्रुत मुद्रित करवाने के लिए आगमोदय समिति, देवचंद लालभाई इत्यादि विभिन्न संस्था की स्थापना भी की | . ज्ञानमार्ग के अलावा सम्मेतशिखर, अंतरीक्षजी, केशरियाजी आदि तीर्थरक्षा कर के सम्यक-दर्शन-आराधना का परिचय भी दिया | राजाओं को प्रतिबोध: | कर के और वाचनाओ द्वारा अपनी प्रवचन-प्रभावकता भी उजागर करवाई | बालदिक्षा, देवद्रव्य-संरक्षण, तिथि-प्रश्न इत्यादि विषयोमे सत्य-पक्षमें अंत तक दृढ़ रहे | जैनशासन के लिए जब जरुरत पड़ी तब अदालती कारवाईओ का सामना भी बड़ी निडरता से किया था | • सागरानंदजी के नाम से मशहूर हो चुके पूज्य आनंदसागरसूरीश्वरजीने अपने परिवार स्वरुप ७०० साधू-साध्वीजी भी शासन को भेट किये । ...ये थे हमारे गुरुदेव "सागरजी"... .........मुनि दीपरत्नसागर... Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयमैकलक्षी, उपधान-तप- प्रेरक, चारित्र मार्ग-रागी, प्रवचनपटु, सुपरिवार-युक्त पूज्य गच्छाधिपतिआचार्यदेव श्री देवेन्द्रसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब ••• परमपूज्य आचार्यश्री आनंदसागरसूरीश्वरजी के पाट-परंपरामे हुए तिसरे गच्छाधिपति थे पूज्य आचार्य श्री देवेन्द्रसागरसूरीश्वरजी, जो एक पून्यवान् आत्मा थे, दीक्षा ग्रहण के बाद अल्पकालमे ही एक शिष्य के गुरु बन गये । फ़िर क्या ! शिष्यो कि संख्या बढती चली, बढ़ते हुए पुन्य के साथ-साथ वे आखि 'गच्छाधिपति' पद पे आरूढ़ हो गए। इस महात्मा का पुन्य सिर्फ शिष्यों तक सिमित नही था, वे जहा कहीं भी 'उपधान-तप की प्रेरणा करते थे, तुरंत ही वहां ‘उपधान' हो जाते थे | प्रवचनपटुता एवं पर्षदापुन्य के कारण उन के उपदेश प्राप्त बहोत आत्माओने संयम मार्ग का स्वीकार किया | खुद भी संयमैकलक्षी होने के कारण चारित्रमार्ग के रागी तो थे ही, साथसाथ ज्ञानमार्ग का स्पर्श भी उन का निरंतर रहेता था । आप कभी भी दुपहर को चले जाइए, वे खुद अकेले या शिष्यपरिवार के साथ कोई भी ग्रन्थ के अध्ययन-अध्यापनमें रत दिखाई देंगे | ••• ये तो हमने उनके जीवन के दो-तीन पहेलु दिखाए । एक और भी अनुसरणीय बात उन के जीवनमें देखने को मिली थी- 'आराधना-प्रेम' कैसी भी शारीरिक स्थिति हो, मगर उन्होंने दोनों शाश्वती ओलीजी, [पोष}दशमी, शुक्ल पंचमी, त्रिकाल देववंदन, पर्व या पर्वतिथि के देववंदन आदि आराधना कभी नहीं छोड़ी | आखरी सालोमें जब उन को एहसास हो गया की अब 'अंतिम आराधना' का अवसर नजदीक है, तब उन के मुहमें एक ही रटण बारबार चालु हो गया" अरिहंतनुं शरण, सिद्धनुं शरण, साधुनुं शरण, केवली भगवंते भाखेला धर्मनुं शरण " इसी चार शरणो के रटण के साथ ही वे समाधि-मृत्यु-रूप सम्यक् निद्रा को प्राप्त हुए थे। ऐसे महान् सूरिवर को भावबरी वंदना | ••• मुनि दीपरत्नसागर ... अनुदान दाता संस्था:- “श्री परम आनंद श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन संघ " वीतराग सोसायटी, प्रभूदास ठककर कोलेज रोड, पालडी, अमदावाद करीब ५० साल पहेले परम पूज्य स्व. गच्छाधिपति आचार्यदेव श्रीमद् देवेन्द्रसागरसूरीश्वरजी महाराजसाहेब द्वारा संस्थापित इस संघ में श्री शीतलनाथ भगवंत का जिनालय भी है, जिन के प्रतिष्ठाचार्य भी पूज्य देवेंद्रसागरसूरीजी म०सा० ही है । इस संघमें पूज्य साधू भगवंत | एवं साध्वीजीओ का उपाश्रय भी है जहा हर साल चातुर्मास करवाके श्रावक-श्राविकाओ को धर्म-आराधन से लाभान्वित करवाया जाता है | इस संघमें आयंबिलभवन, उबाला हुआ पानी, ज्ञान-भण्डार एवं पाठशाला की भी बहोत अच्छी सुविधा प्रदान हो रही है । ऐसे सम्यग्-मार्गी संघ की सद्भावना और प्रभावक आचार्य पूज्य श्री हर्षसागरसूरिजी म० की प्रेरणा से इस शास्त्र के लिए अनुदान प्राप्त हुआ है | Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'सागर - समुदाय एकता-संरक्षक, तीर्थ उद्धार कार्य-प्रवृत्त, गुणानुरागी' इस “आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणि भाग १ से ४ के संपूर्ण अनुदान के प्रेरणादाता पूज्य शासनप्रभावक आचार्य श्री हर्षसागरसूरिजी महाराज साहेब पूज्यपाद स्व. गच्छाधिपति देवेन्द्रसागर सूरीश्वरजी के विनयी शिष्य एवं दो गच्छाधिपतिओ के मुख्य सहायक के रुपमे 'सागर समुदाय के सुचारु संचालक पूज्य हर्षसागरसूरिजी, जिन की प्रेरणा से ये "आगम संबंधी साहित्य" के मुद्रण के लिए संपूर्ण द्रव्यराशि प्राप्त हुई, उनका अत्यल्प परिचय यहां करेंगे । समुदाय• एकता के लिए सदैव प्रयत्नशील रहते हुए ये महात्मा समुदाय के साधु-साध्वीजी की आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए भी प्रवृत्त रहेते है, प्राचीन अर्वाचीन तीर्थो के जीर्णोद्धार एवं विकाश के लिए भी उत्साहित रहेते है, ज्ञान क्षेत्र अछूता न रहे इसीलिए अनुमोदना, अनुदान एवं समय मिलने पर शास्त्र-वांचनमें भी रुचि रखते है | समुदाय के जरूरतमंद साध्वीजी भगवंतो के आवास का विषय हो या साध्वीजी के विहारमें मजदूर का वेतन चुकाना हो, ऐसे छोटे-छोटे कार्यों के प्रति भी का लक्ष्य रहेता है | दर्शन-शुद्धि के लिए जब उन्होंने समग्र भारतवर्ष के १०० साल तक के पुराने जिनालयो में १८ अभिषेक की प्रेरणा की, उस वक्त लगभग सभी अभिषेक-सामग्री की द्रव्य-शुद्धि का ख़याल रखते हुए अपनी मेधावी बुद्धि का परिचय दिया था, साथमे अनुकंपा भाव से पुजारी या विधि करानेवाले को • यत्किंचित् बहुमान प्रगट करते हुए कुछ धन राशि प्रदान करवाई | ऐसे बहुगुण-संपन्न महात्मा पूज्य आचार्यश्री हर्षसागर सूरिजी को हम भावभरी वंदना करते हुए इस श्रुतकार्य का प्रारंभ करने जा रहे है | मुनि दीपरत्नसागर [कात्रेज]पूना, शंखेश्वर, कपडवंज, प्रभासपाटण आदि स्थानोमे आगममंदिर के प्रेरक, कर्मग्रंथ अभ्यासु, निस्पृह महात्मा पूज्यपाद गच्छाधिपति आचार्य श्री दौलतसागर सूरीश्वरजी महाराज साहेब (एवं) अजातशत्रु, स्वाध्याय- रसिक, प्रशांतमूर्ती और अपने गुरु के प्रीतिपात्र परम पूज्य आचार्य श्री नंदीवर्धनसागर - सूरिजी महाराज साहेब इस पवित्र श्रुत-कार्यमे दोनो सूरिवरो का स्मरण करते हुए कोटि कोटि वंदना के साथ *** ..मुनि दीपरत्नसागर Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रम १ २ 3 ४ श्री आगमीयसूक्तावल्यादि विषयानुक्रमः विषय आगमीय सूक्तावलि • आगमीय सुभाषित • आगमीय संग्रहश्लोक आगमीय लोकोक्ति • 'आगम-संबंधी- साहित्य' - श्रेणि ~10~ पृष्ठांक: १३ ६२ ६३ ६६ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [श्री आगमीयसूक्तावल्यादि] इस प्रकाशन की विकास-गाथा * यह प्रत " श्री आगमीयसूक्तावल्यादि" के नामसे सन १९ ४९ (विक्रम संवत २००५) में श्री 'सूर्यपूरीया जैनपुस्तकप्रचारक संस्था' नामक संस्था द्वारा प्रकाशित हुई, इस के संपादक-महोदय थे पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्यश्री आनंदसागरसूरीश्वरजी (सागरानंदसूरिजी) महाराज साहेब | * इस प्रतमे पूज्यपाद् आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराजसाहेबने चार विषयो का संग्रह किया है । (१) आगमीय सूक्तावलि, (२) आगमीय सुभाषित, (३) आगमीय संग्रहश्लोक, (४) तथा आगमीय लोकोक्ति | इन चार विषयोमे 'आगमीय सूक्तावलि' का वर्णन विस्तार से प्राप्त है, 'आगमीय लोकोक्ति' में भी कुछ-कुछ विस्तार तो दिखाइ देत है, मगर आगमीय सुभाषित और आगमीय संग्रहश्लोक ये दो विषयमे बहोत कम माहिती दिखाई दे रही है । जैसा वडीलो के पास से सुना था, उस हिसाब से तो पूज्यपाद आगमोद्धारकरी संकलित माहिती कुछ ज्यादा ही थी, परंतु इस प्रत को छपने से पहले उस संकलनमे से कितना कुछ नष्ट हो गया था | हो शकता है ये बात सच हो)। * पूज्यपाद आगमोद्धारकश्रीने इसमे 'विशेषावश्यकभाष्य'का भी समावेश किया है। * हमारा ये प्रयास क्यों? + आगम की सेवा करने के हमें तो बहोत अवसर मिले, अब तक मेरे प्रकाशित किये हुए पुस्तको के १,००,००० से ज्यादा पृष्ठ हो चुके है, किन्तु लोगो की पूज्यश्री सागरानंदसूरीश्वरजी के प्रति श्रद्धा तथा प्रत स्वरुप प्राचीन प्रथा का आदर देखकर हमने इसी प्रत को स्केन करवाई, उसके बाद एक स्पेशियल फोरमेट बनवाया, जिस के बीचमे पूज्यश्री संपादित प्रत ज्यों की त्यों रख दी. ऊपर शीर्षस्थानमे प्रत संबंधी उपयोगी माहिती लिख दी है, ताँकि पढ़नेवाले को प्रत्येक पेज पर कौनसा विषय आदि चल रहा है उसका सरलतासे ज्ञान हो शके | * पूज्यपाद आगमोद्धारकरी ने ऐसे ५२ विषयो को वर्गीकृत किया था, आज भी उनमे से कई प्रते मिलती है, जिसमे ये विभाजन-क्रमांक देखने को मिलते है, उनमे से थोडे विषयो का काम हुआ भी है, जो मुद्रित स्थितिमे भी प्राप्त है। + शासनप्रभावक पूज्य आचार्यश्री हर्षसागरसूरिजी म० की प्रेरणासे और श्री परम आनंद श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ, पालडी, अमदावाद की संपूर्ण द्रव्य सहाय से ये 'आगम-संबंधी-साहित्य' भाग-१ का मुद्रण हुआ है, हम उन के प्रति हमारा आभार व्यक्त करते है | .... मुनि दीपरत्नसागर. ~11 Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) 18 वे बोल - भा धर्नु नाम भीआगमीयस्तावश्यादि . तेनी अंदर परमतारक आगमोद्धारक आचार्यदेव श्रीआनन्दसागरसूरीश्वरजी महाराजभीए आगमोमाथी तारखेला तेप्पन (५३) विषयोमांधी (१) आगमीयसुक्तावलि (पत्र. ४९ सुधी.), (२) आगमीयसुभाषित (पत्र. ४१ थी ५० सुधी), (३) आगमीयसंग्रहलोको (पत्र, ५० थी ५१ सुधी) अने () भागमीयलोकोक्ति (पत्र. ५२ थी अंत्य पत्र सुधी)-एम चार विषयो आपवामां आव्या हे. मा सर्व वस्तुने समजवाने माटे जे पत्र अंक अने पंक्ति अंक आपवामा आवेल छे ते आगमोदय समिति अने देवचंद लालभाइना छपायेला आगमोना . छेद ग्रंथोना ज विभाग अंक, पत्र अंक अने पंक्ति अंक जे आपेला ते तेओधीना भंडार श्रीजेनानंद पुस्तकालयनी हाथपोथी उपरथी आपयामा आबेला छे. आ ग्रंथ पत्र ५१ सुधी जैन विजयानंद प्रिन्टिंग प्रेसमा अने वाकीना पत्रो सरस्वती प्रिन्टिंग प्रेसमा छपायेला छे. आ ग्रंथनु आटलुं मूल्य वर्तमानकालने आभारी छे. आ ग्रंथना प्रूफोर्नु कार्य मुनि श्रीकंचनविजयजी तथा मुनि श्रीक्षेमंकरसागरजीए कयु २. उपरांत, ते कार्यमा ज्यारे ज्यारे शंका पडी त्यारे त्यारे आगमोद्धारक आचार्यदेवधीना पट्टधर, दीर्घदीक्षित, विद्याव्यासंगी अने निरभिमानी भाचार्य महाराजश्री माणेक्यसागरसूरीश्वरजी महाराजने पूछीने तेनुं निवारण करवामां आव्यु छे. वळी तेओश्रीए प्रूफ उपर पण इष्टिपात कों छे. तेधी तेओश्रीओना अमे ऋणी डीए, आ. ग्रंथy प्रकाशन श्रीजैन पुस्तक प्रचारक संस्था तरफथी श्रीआगमोद्धारसंग्रह भाग ८ तरीके यहार पाडवामां आव्यु छे. सजन पुरुषो आ मुक्तावलि आदिनो उपयोग करशे अने आ प्रयत्नने सफळ करशे. वि. सं. २००५ । लि. प्रकाशक. अक्षयतृतीया. ~12~ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [नन्दीसूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) श्री श्रीआगमोद्धारसंग्रहे भागः ८ णमोऽत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स श्रीनन्दे सूक्तानि आगमीयसूक्तावली श्रीआगमीयसक्तावलिः ॥१॥ नन्दिसूक्तानि र १ जयति भुवनैकभानुः सर्वत्राधिहतकेवलालोकः। |६ जयइ सुआणं पभवो तित्थयराणं अपच्छिमो जयह । सं| नित्योदितः स्थिरस्तापवर्जितो वर्धमान जिन:॥ (१पत्रे) जया गुरू लोगाणं जया महप्पा महावीरो॥ (१५) न|२ जयति जगदेकमालमपहतनिःशेषदुरितधनतिमिरम्। सुनिश्चितं नः परतंत्रयुक्तिषु स्फुरति याः काश्चन सूक्तिसम्पदः। रविविम्बमिव यथास्थितवस्तुविकाशं जिनेशवचः ॥ (१) तवैव ताः पूर्वमहार्णवोत्थिता, जगत्प्रमाणं जिन ! वाक्य३ भूतस्य भाविनो वा भावस्य हि कारणं तु यल्लोके। विशुषः॥ । तदव्यं तत्त्वज्ञः सचेतनाचेतनं कथितम् ॥ (२) |८ भई सबजगुज्जोयगस्स भई जिणस्स वीरस्स। ४ जयइ जगजीवजोणीबियाणओ जगगुरू जगाणंदो। भई सुरासुरनमंसियस्स भई धुयरयस्स ॥ जगणाहो जगबंधू जया जगपियामहो भयवं ॥ (२) |९ जैनेश्वरे हि पचसि, प्रमासंवाद इयते। ५ दुर्गतिप्रस्तान जन्तून् , यस्माद्धारयते ततः। प्रमाणवाधा त्वन्येषामतो द्रश जिनेश्वरः॥ धत्ते चैतान शुने स्थाने, तस्माद्धर्म इति स्मृतः ॥ (१५) १० नाणी तबंमि निरओ चारित्ती भावणाएँ जोगोत्ति॥ (३४) “आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~13~ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [नन्दीसूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) श्रीनन्देः सूक्ततानि आगमीयसूक्तावली ॥२ ॥ | ११ कुच्छियाणुयोगों पयइविसुखस्स होइ जीवस्स। | १९ पञ्चाश्रवाद्विरमणं पञ्चेन्द्रियनिग्रहः कपायजयः। पएसिमो नियाणं वुहाण न य सुंदरं एयं ॥ दण्डवयविरतिश्चेति संयमः सप्तदशमेदः ॥ १२ रुवंपि संकिलेसोऽभिस्संगो पीइमाइलिंगो उ । २० अनशनमूनोदरता वृत्ते सक्षेपणं रसत्यागः । परमसुहपश्चणीओ एयंपि असोहणं चेव ॥ कायक्लेश: संलीनतेति बाह्यं तपः प्रोक्तम् ॥ (४३) | १३ विसभो य भंगुरो खलु गुणरहिओ तह य तहतहारूवो। २१ प्रायश्चित्तध्याने यावृत्त्य विनयावधोत्सर्गः। ___ संपत्तिनिष्फलो केवलं तु मूलं अणत्थाणं ॥ स्वाध्याय इति तपः पदप्रकारमाभ्यन्तरं भवति ॥ (४३) बा| १४ जम्मजरामरणाई विचित्तरूबो फलं तु संसारो। |२२ भई सीलपडागूसियस तवनियमनुरयजुत्तस्स। हजणनिब्वेषकरो एसोऽबि तहाविहो चेव ॥ (३४) संघरहस्स भगवओ सज्झायसुनंदिघोसस्स ॥ सं| १५ अशोकवृक्ष : सुरपुष्पवृष्टिर्दिव्यो ध्वनिश्चामरमासनं च। २३ कम्मरयजलोह विणिग्गयस्स मुयरयणदीहनालस्स। भामण्डलं दुन्दुमिरातपत्रं सत्यातिहार्याणि जिनेश्वरा- | पंचमहब्वयथिरकनियस्त गुणकेसरालस्स ॥ णाम् ॥ (४१) | २४ सावगजण महुअरिपरिघुडस्स जिणसूरतेयषुद्धस्स । १६ पिंडस्स जा विसोही समिईऔ भावणा तवो दुविहो। संघपउमस्त भई समणगणसहस्सपत्तस्स ॥ पडिमा भमिग्गहावि य उत्तरगुणमो बियाणाहि ॥ (४२) |२५ संपत्तदसणाई पयदियाई जाजणा सुणेई य। १७ गुणभवणगहणसुयरयणभरिय देसणविसुद्धरस्थागा। ___सामायारिं परमं जो खलु तं सावगं चिंति ॥ (४४) संघनगर ! भई ते अखंडचारित्तपागारा॥ (४२) | २६ यः समः सर्वभूतेषु, असेषु स्थावरेषु च। १८ संजमतवतुंबारयस्स नमो सम्मत्तपारियल्लस्स। तपश्चरति शुद्वात्मा, श्रमणोऽसी प्रकीर्तितः॥ अप्पटिचकस्स जो होउ सया संघचकरस ॥ (५३) २७ तवसंजममयलंछण अकिरियराहुमुहदुदरिस नियं। "आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~14~ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [नन्दीसूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) ला जय संघचंद ! निम्मलसम्मत्तविसुद्धजोहागा!॥ (४५) ३६ निचुइचहसासणयं जयर सया सम्वभावदेसणयं। श्रीनन्देः आगमीय- २८ परतिधियगहपहनासगस्त तवतेय दित्त सस्स। कुसमयमयनासणयं जिणिंदवरवीरसासणयं ॥ (४८) मुक्तानि नाणुजोयस्स जप, भई दमसंघसूरस्स। |३७ न य कत्था निम्नाओ न य पुच्छर परिभवस्स दोसेणं । सूक्तावली आ २९ भई घिदवेलापरिगयस्त समायजोगमगरस्त । यस्थिव्य वायपुषणो फुड गामिल्लयविअहो । (६४) अक्खोहस्स भगवओ संघसमुदस्स दस्त । | ३८ पिंडविसोही समिई५ भावण१२ पडिमा१२ व इंदियमा ३० सम्मईसणवरवहर बढसढगाढावगाढपेढस्स। निरोहो५। पहिलेहण२५ गुत्तीभो३ अभिग्गहा चेव दा धम्मवररयणमं डेअचामीयरमेहलागस्स ॥ करणं तु ॥ (५०, २१०) ३१ नियमूसियकणयसिलायलुजलजलसचिसकूडस्स । |३९ नत्तेगसहावते आभिणियोहाइकिंकओ भेदो। नंदणवण मणहरसुरमिसीलगंधुद्धमायस्ल ॥ नेयविसेसाओ चे न सबबिसयं जओ चरिमं ॥ म ३२ जीवदयासुंदरकंदरुद्दरियमुश्विरमईदइन्नस्स । 1४० अह पडिवत्तिबिसेसा गंमि अणेगमेयभावाओ । हेउसयधाउपगलंतरयणदित्तोसहिगुहस्स ॥ आवरणविमेओवि हु सभावभेयं विणा न भवे ॥ |३३ संघरवरजलपगलियउज्झरपविरायमाणहारस्स । ४१ तमिम य सइ सब्वेसि खीणावरणस्स पावई भायो । सावगजणपउररवंतमोरनच्चंतकुहरस्स ॥ तद्धमत्ताउ च्चिय जुत्तिविरोहा स चाणिट्टो ॥ ३४ विणवनयपवरमुणिवरफुरंत बिज्ज लंतसिहरस्स। | ४२ अरहावि असवन्नू आभिणियोहाइभावओ नियमा। विविहगुणकप्परुषवगफलभरकुसुमाउलयणस्स ॥ ___ केवलभावाओ चे सवण्णू नणु विरुद्धमिणं ॥ (६७), ३५ नाणवररयणदिप्पंतकंतबेकलियविमलचूलस्स। |४३ तम्हा अबग्गहाओ आरम्भ इहेगमेव नाणति । बंदामि बिजयपणी संघमहामंदरगिरिस्स ॥ (४६) । जुनं छउमस्थस्सासगलं इयरं च केवलिणो ॥ (१८) AAAAE (४५) “आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~150 Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [नन्दी+अनुयोगद्वारसूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) आगमीयसूक्तावली ॥४॥ ४ न य पडिवत्तिविसेसा एगमि य णेगमेयभावेवि । माणसमित्तो छउमविसयभावाइसाहम्मा ॥ (७१)| | श्रीनन्द्यजंते तहा विसिट्टे न जाइए बिलंघेड। (६९) अथानुयोगद्वारसूक्तानि नुयोगद्वारा४५ नत्तेगसहावत्तं ओहेण बिसेसओ पुण असिद्ध । १ यस्याः प्रसादमतुलं संप्राप्य भवन्ति भव्यजननिवहाः। एगंततस्सहावत्तणओ कह हाणिवुडीओ? ॥ अनुयोगबेदिनस्तां प्रयतः श्रुतदेवतां वन्दे ॥ (१)| आवश्यकानां ४६ जं अविचलियसहावे तत्ते एगंततस्सहावनं । २ सम्यकसुरेन्द्रकृतसंस्तुतिपादपत्रमुद्दामकामकरिराजकठोर- सूक्तानि ___नय तं तहोवलद्धा उकरिसावगरिसविसेसा ॥ सिंहम् । सद्धर्मदेशकवरं वरदं नतोऽस्मि, वीरं विशुद्धतरद्वा|४७ तम्हा परिधूराओ निमित्त मेयाओ समयसिद्धाओ। बोधनिधि सुधीरम् ॥ उबवत्तिसंगओ च्चिय आभिणियोहाइओ मेओ। ३ अनुयोगभृतां पादान बन्दे श्रीगौतमादिसूरीणाम् । सं| ४८ घाइक्खओ निमित्तं केवलनाणस्स बनिओ समय । | निष्कारणवन्धूनां विशेषतो धर्मदातृणाम् ॥ | मणपज्जवनाणस्स उ तहाविहो अप्पमाउत्ति ॥ ४ अग्भुअतरमिह पत्तो अन्नं कि अस्थि जीवलोगंमि। है|४९ ओहीनाणस्स तहा अणिदिएरॉपि जो खओवसमो। जंजिणवयणे अत्था तिकालजुत्ता मुणिजति?॥ (१३६) महसुयनाणाणं पुण लक्खण मेयादिओ मेओ॥ (६८) अथावश्यकसूक्तानि । ५० जं सामिकालकारणविसयपरोक्खत्तणेहिं तुल्लाई। |१तित्थयरे भगवंते, अणुत्तरपरकमे अमियनाणी। तभावे सेसाणिय देणाईए सुयाई॥ (७०) | तिपणे सिद्धगहगए, सिद्धिपहपदेसए वंदे ॥ ५१ दो वारे विजयाइसु गयरस सिनऽसचुए अहव ताई।। २ पड़दाहपिपासानामपहारं करोति यत् । भइरेग नरभषियं नाणाजीवाण सव्यशा॥ (७०)| तद्धर्मसाधनं तथ्य, तीर्थमित्युच्यते बुधः ॥ ५२ कालविवजयसामित्तलाभसाहम्मोऽवही सच्चो। | ३ बंदामि महामार्ग महामुणि महायसं महावीरं । (५९ ॥४॥ “आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~16~ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [आवश्यकसूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) आवश्यकस्य सूक्तानि श्रीआगमीयसूक्तावली ॥५ ॥ अमरनररायमहि तित्थपरमिमरस तित्थस्स ॥ . (६०)। १२ अह वहर सो भयवं दियलोयचुभो अणोचमसिरीओ। ४ त्वद्वाक्यतोऽपि केपाश्चिदबोध इति मेऽद्भतम् । देवगणसंपरिखुडो नंदाइ सुमंगला सहिओ ॥ भानोमरीचयः कस्य, नाम नालोकहेतवः ॥ | १३ असिअसिरओ सुनयणो बिंबुट्ठो धवलदंतपंतीओ। ५न चागतमुलूकस्य, प्रकृत्या क्लिएचेतसः। ___ वरपउमगभगोरो फुल्लुप्पलगंधनीसासो ॥ स्वच्छा अपि तमस्त्वेन, भासन्ते भास्वत: कराः॥ (६८) | १४ जाइस्सरो अभयवं अप्परिवडिएहि तिहि उ नाणेहिं । ६ संसारसागराओ उब्वुडो मा पुणो नियुडिजा। ____ कंतीहि य बुद्धिहि य अभहिओ तेहि मणुएहि ॥ (१२६) चरणगुण विष्पहीणो बुडा सुबहुंचि जाणतो ॥ .. (७०) १५ अमूढलक्खा तित्थयरा (१५३) ७ उवसामं उवणीआ गुणमहया जिणचरित्तसरिसंपि। १६ दुम्भासिएण इकेण मरीई दुक्खसायरं पत्तो। पडिवायंति कसाया कि पुण लेसे सरागत्ये? ॥ ___ भमिओ कोडाकोडिं सागरसरिनामधेजाणं ।। ८ जद उबसंतकसाओ लहर अणंतं पुणोऽथि पडियायं । १७ तम्मूलं संसारो नीआगोतं च काति तिवईमि । ण हु मे वीससियब्बं थेवे य(ऽघि) कसायसेसंमि ॥ ____ अपडिकतो बंमे कविलो अंतद्धिओ कहए ॥ (३७१) ९ अणथोवं वणथोवं अग्गीथोवं कसायथोवं च । १८ जस्स प इच्छाकारो मिच्छाकारोय परिचिया दोऽवि । णहु मे वीससियध्वं थेपि हुतं बहुं हो ॥ (८३)| तइओ य तहकारो न दुलभा सोग्गई तस्स .. १० कस्स न होही बेसी अनभुवगमओ अनिरुचगारी अ। १९ एगग्गस्स पसंतस्स न हाँति इरियाश्या गुणा होति । ___अप्पच्छंदमईओ पट्टिअओ गंतुकामो अ॥ गंतब्यमवस्सं कारणमि आवस्सिया हो ॥ २६५ : ११ विणोणएहिं कयपंजलीहि उंदमणुमत्तमाणेहिं । २०-णिहाविगहापरिवजिएहि गुत्तेहिं पंजलिउडेहिं। आराहिमो गुरुजणो सुर्य बहुविहं लहुं देव ॥ (१००)। भत्तिबहुमाणं पुव्वं उपउत्तेहिं सुणेययं ॥ RRRRRRRNEWA.AANE “आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~17~ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [आवश्यकसूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) अवश्य सूक्तानि आगमीयसूक्तावला २१ अभिकखतेहिं सुहालियाई षषणाई अत्थसाराई। चरणकरण पहओ निव्वाणपहो जिणिंदेहिं ॥ (३८६) विम्हियमुहेहिं हरिसागपाहिं हरिसं जणंतेहिं॥ ३० सिद्धिवसहिमुवगया निव्वाणसुहं च ते अणुप्पत्ता। २२ गुरुपरिओसगएणं गुरुभत्तीए तहेव विणएणं । सासयमव्याचाहं पत्ता अयरामरं ठाणं ॥ (३८६) इच्छियसुत्तस्थाणं खिष्पं पारं समुवयंति ॥ (२६९) ३१ पार्वति जहा पारं सम्म निजामया समुहस्त । २३ माणुस्स खेत्त जाई कुलरूवाऽऽरोग्गमाउयं बुद्धी। भबजलहिस्स जिणिंदा तहेव जम्हा अओ अरिहा ॥ (३८६) सवणोग्गहसखा संजमो य लोगंमि दुलहाई॥ ३२ मिच्छत्तकालियावायविरहिए सम्मत्तगजभपवाए । २४ इदियलखी निवत्तणा य पजत्ति निरुवहय गोमं । एगसमरण पत्ता सिद्धिवसहिपट्टणं पोया । धायारोग्ग सडा गाहगज्यभोग भट्ठोय ॥ (अन्यदीया.) |३३ निजामगरयणाणं अमूढमाणमाकण्णधाराणं ।' २५ चोल्लग पासग धणे जूए रयणे य सुमिण चको य। दामि विणयपणओ तिबिहेण तिदंडविरयाणं ॥ चम्मजुगे परमाणू दस दिटुंता मणुपलं मे॥ (३४१) | ३४ पालंति जहा गावो गोवा अहिसावयाइदुग्गेहि । २६ जा तमिह सत्यवाहं नमः जणो तं पुरं तु गंतुमणो ॥ | परतणपाणिआणि अ घणाणि पावंति तहथेष । परमुबगारित्तणो निविरघत्थं च भत्तीप ॥ ३५ जीवनिकाया गायो जं ते पालंति ते महागोचा। २७ अरिहो उ नमुकारस्त भावो खीणरागमयमोहो। मरणाइभया उजिणा निब्याणवणं च पावंति ॥ मुक्खस्थीपि जिणो तहेच जम्हा अओ अरिहा ॥ ३८५ | ३६ तो उवगारित्तणो नमोऽरिहा भविभजीषलोगस्स । २८ संसाराअडवीए मिच्छत्तऽमाणमोहिअपहाए। सब्यस्सेह जिणिंदा लोगुत्तमभावओ तह य॥ जेहिं कय देसिभत्तं ते अरिहंते पणिवयामि ॥ ३७ रागहोसकसाए य, इंदिआणि अपंचवि । २९ सम्मईसणदिट्टो नाणेण य सुट्टतेहि उचलतो। । परीसहे उबसग्गे, नामयंता नमोऽरिहा ॥ ॥६॥ “आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~18~ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय सूक्तावली [ भाग-1] श्री आगमीय सूक्तावलि आदि आगमीय सूक्तावलि [आवश्यकसूक्तानि ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः आगमीय सूक्तावलि आदि (आगम-संबंधी - साहित्य) श्री आ ॥ ७ ॥ ग भा ३८ नेह लोके सुखं किञ्चिण्डादितस्यांहसा भृशम् । 1 मितं च जीवितं नृणां तेन धर्मे मतिं कुरु ॥ (३९९) ३९ इंदियविसयकसाए, परीसहे वेयणा उवसग्गे । एए अरिणो हंता अरिहंता तेण बुच्चति ॥ ४० अट्ठबिपि य कम्मं अरिभूअं होइ सम्वजीवाणं ॥ तं कम्ममरिं हंता अरिहंता तेण युच्चति ॥ ४१ अरिहंत वंदणनमंसणारं अरिहंति पूअसकारं । सिद्धिगमणं च अरिहा अरहंता तेण बुच्चति ॥ ४२ देवासुरमणुपसुं अरिहा पूजा सुरुत्तमा जम्हा । अरिणो हंता रयं हंता अरिहंता तेण बुच्चंति ॥ ४३ अरहंतनमुकारो, जीवं मोएर भवसहस्साओ । भावेण कीरमाणो, होइ पुणो बोहिलाभाए ॥ ४४ अरिहंतनमुकारो, धन्नाण भवक्त्रयं कुणंताणं । हिअयं अणुम्मुअंतो विसुतियावारओ होइ ॥ - ४५ अरहंतनमुकारो एवं खलु वण्णिओ महत्युति । जो मरणंमि उवग्गे, अभिक्खणं कीरए बहुसो ॥ ४५ अरिहंतनमुकारो, सव्वपापप्पणासणी । (४०७) (४४९) मंगलाणं च सब्बेसिं, पढमं हवा मंगलं ॥ ४७ उपभोगदिसारा कम्मपसंगपरिघोलणविसाला । साहुकारफलवई कम्मसमुत्था हवर बुद्धी ॥ (४१६) ४८ अणुमाण उदित साहिया वयविवागपरिणामा । हिअनिस्सेअसफलवई, बुद्धी परिणामिआ नाम ॥ (४२७) ४९ निव्वाणसाहर जोए, जम्हा साहंति साहुणो । समा य सव्वभूपसु, तम्हा ते भावसाहुणो ॥ ५० विसयसुहनियत्ताणं विसुद्धचारितनिअमजुत्ताणं । तच्चगुणसाहयाणं सदायकिच्चुजयाण नमो ॥ ५१ असहाइ सहायतं करंतिमे संजमं करितस्स । पण कारणेणं नमामिऽहं सम्यसाहूणं ॥ (४०६) ५२ जीवो अणाइनिहणो तम्भावणभाविओ य संसारे । aिri सो भाविज्जर, मेलणदोसाणुभावेणं ॥ ५३ सव्वाओबि गईओ अविरहिया नाणदंसणधरेहिं । ता मा कासि पमायं नाणेण चरित्तरहिरणं ॥ ५४ जम्हा दंसणनाणा संपुण्णफलं न दिंति पतेयं । चारितजुयादिति उ विसिस्सए तेण चारितं ॥ (५३२) ( ५३३) "आगम-संबंधी- साहित्य श्रेणी [भाग-1] ~ 19~ (४५०) (५२१) आ ग मो WWWho F दा प्र गः आवश्यकस्य सूक्तानि || 6 || Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [आवश्यकसूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) श्री आवश्यकस्य सूक्तानि आगमीयसूक्तावली ॥८॥ ५५ उज्जममाणस्स गुणा जह हुँति ससत्तिो तपसुपसुं। । तम्हा उ वयंति विऊ विणउत्ति विलीमसंसारा ॥ (५४५) एमेव जहासत्ती संजममाणे कहं न गुणा!॥ | ६४ तरियब्बा य पइषिणया मरियव्यं वा समरे समत्थपणं । ५६ अणिगृहंतो विरियं न विराहेइ चरणं तयसुरसुं। असरिसजणउलाया न हु सहियब्वा कुलपस्यपणं । (५५७) जा संजमेऽवि विरियं न निगूहिज्जा न हाविज्जा ॥ (५३४)| ६५ जीव ! तुमे संसारं हिंडतेणं निरयतिरियगईसुं कहमवि ५७ सुत्तत्थबालबुह य असहुदब्बाइआवईओ या। माणुसत्ते सम्मत्तणाणचरिताणि लहाणि, जेसिं पसाएण निस्साणपयं का संथरमाणावि सीयंति ॥ (५३८)। सवलोयमाणणिजो पूयणि जो य, ता मा गच्वं काहिसि ५८ जे जस्थ जया जइया बहुस्सुया चरणकरणपभट्ठा ।। जहाअहं बहुस्सुओ उत्तिमचरित्तो वत्ति ॥ (५६१) जंते समायरंती आलंयण मंदसड्डाणं ॥ ६६ थोवाहारो थोवमणिओ य जो होइ थोवनिहो य । ५९ किरकम्मं च पसंसा सुहसीलजणम्मि कम्मबंधाय । थोबोयहि उवगरणो तस्स हुदेवावि पणमंति ॥ जे जे पमायटाणा ते ते उववृहिया इंति ॥ (५३९)| ६७ सिद्धे नमंसिऊणं संसारत्था य जे महाविज्जा । ६० पसंते आसणत्थे य, उबसंते उपट्टिए। वोच्छामि दंडकिरियं सम्वविस निवारणि विजं ॥ अणुनवित्तु मेहावी, किडकम्म पउंजए ॥ (५४१)/६८ सर्व पाणइचायं पश्यपखाई मि अलियवयणं च । ६१ विणओययार माणस्स भंजणा पूयणा गरुजणस्स। सबमदत्तादाणं अम्बंम परिग्गहं स्वाहा ॥ (५६८) तित्थयराण य आणा सुअधम्माराहणाऽकिरिया ॥ ६९ पुवा वरसंजुत्तं बेरग्गकर सतंतमविरुद्धं । ६२ विणओ सासणे मूलं, विणीओ संजओ भवे । पोराणमद्धमागहमासानिययं हवा सुत्तं ॥ (६२८) विणयाउ विप्पमुकस्स, कओ धम्मो ? को तबो? ॥ ७० असम्यकत्वपरीषह-सर्चपापस्थानेभ्यो विरतः प्रक६३ जम्हा विणयह कम्मं अट्टविहं चाउरंतमुक्खाए । एतपोऽनुष्ठायी निःसंशश्वाहं तथापि धर्माधर्मात्मदेव “आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~20~ Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय मुक्ताव ॥९॥ [ भाग-1] श्री आगमीय सूक्तावलि आदि आगमीय सूक्तावलि [आवश्यकसूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः आगमीय सूक्तावलि आदि (आगम-संबंधी - साहित्य) भा EVE नारकादिभावाने अतो मृषा समस्तमेतदिति अस म्यक्त्वपरीपहः, तत्रैवमालोचयेत्-धर्माधम पुण्यपापलक्षणी यदि कर्मरूपी पुनलात्मकौ ततस्तयोः कार्यदर्श नानुमानसमधिगम्यत्वम्, अथ क्षमाक्रोधादिकी धर्माधर्मे ततः स्वानुभवत्वादात्मपरिणामरूपत्वात् प्रत्यक्षविरोधः, देवास्त्वत्यन्तसुखास तत्वान्मनुष्यलोके कार्याभावात् दुण्डमानुभावाच्च न दर्शनगोचरमायान्ति, नारकास्तु तमिवेदनार्त्ताः पूर्वकृतकर्मोदयनिगडबन्धनवशीकृतत्वादस्वतन्त्राः कथमायान्तीति एवमालोचयतोऽसम्यक्त्वपरीपहजयो भवति ॥ ७१ जहा जयंता (त) कट्ठाई, उहाई न चिरं जले। घट्टियार इति, तम्हा सहह घट्टणं ॥ ७२ सुचिरंधि कुडाई होहिंति अणुपमजमाणा । करमद्दिदारुयाएं गयंकुसागारटाई ॥ ७३ अष्ठपर्वमात्रो द्वीन्द्रियायात्मेति । ७४ एमेच वलसमग्गो न कुणा मायाइ सम्ममुस्सग्गं । मायावडिये कम्मे पावर उस्सग्गकेसं च ॥ (६५८) (७२१) (७३०) (७९७) ७५ मायाए उस्सगं सं च तवं अकुष्य सहुणो । को अम्नो अणुहोही सकम्मसेसं अणिजरियं ? ॥ ७६ निक्कू सविसेसं वयाणुरुवं बलाणुरुवं च । खाणुव्य उद्धदेहो काउस्सगं तु ठाइजा ॥ ( ७९.७-७९९) ७७ अनं इमं सरीरं अनो जीति एवकयबुद्धी । दुक्ख परि किलेसकर छिंद ममन्तं सरीराओ ॥ ७८ जावइया फिर दुफ्खा संसारे जे मए समणुभूया । इतो दुध्दिरुहतरा नरपसु अणोषमा दुक्खा ॥ ( ८०१ ) ७९ पच्चखामि कए आसवदाराहं हुंति पिहिया । आसवुच्छेणं तहाच्छेणं होई ॥ ८० तण्हायोच्छेदेण य अउलोबसमो भवे मणुस्साणं । अलोचसमेण पुणो पञ्चक्खाणं हवइ सुद्धं ॥ ८१ तत्तो चरिधम्मो कम्मविवेगो त अपुष्यं तु । ततो केवलनाणं तओ अ मुक्खो सयामुक्खो ॥ ( ८५१) अथ विशेषावश्यकसूक्तानि १ नामाइतियं दव्यट्टियस्स भावो य पजवनयस्स । (५०) २ देहप्फुरणं सहसोइयं च सिमिणो य कारवाईणि । "आगम-संबंधी- साहित्य' श्रेणी [भाग-1] ~21~ आवश्यक विशेषाव आ श्री इयकयोः सूक्तानि द्धा bho ॥ ९ ॥ Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [विशेषावश्यकसूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) श्री आगमीय विशेषावइयकस्य सूक्तानि आ सूक्तावली ॥१०॥ यो सगया निमित्ताई सुभासुभफलं निवेति ॥ (१३८)|१५ अह देवेणं भणिय जिणिडे घेप्पं सि रयणा ॥ (१२०) ३ एगपएस खेत सत्तपएसा य से फुसणा॥ (२४५)| १६ केषाश्चित् तीथिकानामयं प्रवादः 'पुण्यमेवैकमस्ति ४ दो बारे विजयाईसु गयस्स तिनऽच्चुए अहव ताई।। न पापम् । अन्ये त्याहु-पापमेवैकमस्ति न तु पुण्यम्। अइरेगं नरभवियं नाणाजीवाण सम्वद्ध.॥ (२४६) अपरे तु वदन्ति-'उभयमप्यन्योऽन्यानुविद्धस्वरूपं ५ जं वत्धुमत्थि लोए तं सवं सवपजायं ॥ (२६६) मेचकमणिकल्पं संमिश्रसुख-दुःखाख्यफलहेतुः ६ आसज्ज उ सामित्तं लोइय-लोउत्तरे भयणा । (२८३)| साधारणं पुण्यपापाख्यमेकं वस्तु' इति । अन्ये तु ७ जइ उवसंतकसाओ लहइ अर्थतं पुणोवि पहिवार्य प्रतिपादयन्ति स्वतन्त्रमुभयं विविक्तसुख-दुःखकारणं नहु मे बीससियव्वं थेबेवि कसायसेसम्मि ॥ 'होजत्ति' भवेदिति । अन्ये पुनराहुः-'मूलत: कर्मव ८ अण थोवं वण थोवं अग्गी थोवं कसाय थोवं च नास्ति स्वभावसिद्धः सवोऽप्ययं जगत्त्रपक्ष:। (७९२) नहु मे बीससियब्ध थेबंपि हुतं बहुं हो। (५६९)/१७ जे जत्तिया पगारा लोप भयहेभयो अविरयाणं । दासत्तं देइ अणं अइरा मरणं वणो विसप्पतो। ते चेव य बिरयाणं पसत्थभावाण मोक्खाय ॥ (१०२६) सब्यस्सदाहमग्गी विंति कसाया भवमर्णतं ॥ (५७०)|१८ अणुरसो भत्तिगओ अमुई अणुअत्तभोषिसेसग्नू (१२९३) १० सीसोवि पहाणयरो गंतेणाबियारियग्गाही (६१८) पियधम्मो ददधम्मो संविग्गोऽबज्जऽभीरु असढो य । ११ अविगलगोविक्केया ब जो बिमहक्खमो सुगंभीरो। (६१९) खंतो दंतो गुत्तो घिरध्वय जिंइदियो उज्जू ॥ १२ अधिणासियसुत्तत्था सीसा-यरिया विणिहिट्ठा। (६३९) असो तुलासमाणो समिओ तह साहुसंगहरओ य । १३ संभवइ, जं अगहिउँ परदोसं चिट्ठप कोई (६२०)। गुणसंपभोववोओ जुग्गो सेसो अजुग्गो व ॥ (१९९४)। १४ गरुया पिच्छंति परस्सन हु दोसं। (६२०) १९ नाणस्स होर भागी थिरतरओ दसणे चरिसे य । ॥१०॥ "आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~22~ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [विशेषावश्यक+दशवैकालिकसूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) आगमीयसूक्तावली विशेषावश्यकदशवैकालिकपिण्डनियुक्तीनां सूक्तानि ॥१ ॥ धन्ना आवकहाए गुरुकुलवासं न मुंचंति ॥ (१३०८)। अथ पिंडनियेक्तिमुक्तानि २० गीयावासोई धम्मे अणाययणवजणं। १ जयति जिनवर्धमानः परहितनिरतो विधूतकर्मरजाः । ___ निग्गहो य कसायाणं, एवं धीराण सासणं ॥ (१३०९) मुक्तिपथचरणपोषकनिरषचाहारविधिदेशी ॥ २१ किच्चाकिच्च गुरवो विदंति विणयपडिवत्तिहेउं च । |२ अवि नाम होज्ज सुलभो गोणाईणं तणाद आहारो। उस्सासाइ पमोत्तुं तदणापुच्छाई पडिसिद्धं ॥ ____हिच्छिकारहयाणं न हु सुलहो होइ सुणगाणं ॥ २२ विणओ सासणे मूलं, विणीओ संजओ भवे। |३ केलासभयणा एप, आगया गुज्झगा महि । चरति जक्खरूवेणं, पूयाऽपूया हियाऽहिया ॥ (१३१) २३ विणभोवयार माणस्स भंजणा पूयणा गुरुजणस्स । ४ भुंजंति चित्तकम्मठिया व कारुणिय दाणहरणो वा। तित्थयराण य आणा सुयधम्माराहणाऽकिरिया ॥ (१३१०) अबि कामगदहे सुवि न नस्सई किं पुण जासु ॥ (१३१) । - अथ दशवकालिकसूक्तानि ५ 'लोयाणुग्गहकारिसु भूमीदेवेसु बहुफलं दाणं । १ जयति विजितान्यतेजाः सुरासुराधीशसेवितः श्रीमान् । अवि नाम बंभवंधुसु किं पुण छकम्मनिरपसु ॥ व्याख्या-पिण्डपदानादिना लोकोपकारिषु भूमिदेवेषु विमलस्त्रासविरहितखिलोकचिन्तामणिवीरः॥ (१) ब्राह्मणेष्वपि नाम ब्रह्मचन्धुष्वपि-जातिमात्रब्राह्मणेष्वपि २ अन्नं पित्र से नाम कामा रोगत्ति पंडिया विति। दानं दीयमानं बहुफलं भवति, किं पुनर्यजनयाजनादिकामे पत्थेमाणे रोगे पत्थेद खलु जंतू ॥ (८६) रूपषट्कर्मनिरतेषु, तेषु विशेषतो बहुफलं भविष्य३ इंदियविसयकसाया परीसहा यणा य उवसग्गा। तीति भावः। पए अबराहपया जत्थ विसीयंति दुम्मेहा । (८८)|६ किवणेसु दुम्मणेसु य अबंधवायंकजुंगियंगेसुं च । ॥ शा "आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~23~ Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [पिंडनियुक्ति+उत्तराध्ययनसूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) श्री ISI आगमीयसूक्तावली ॥१२॥ श्री आ। गा पिण्डयुक्त्युत्तराध्यय नयोः सूक्तानि FE। पूयाहिज्जे लोए दाणपडाग हरा दितो॥ १३१२ भवपि थूलभहो तिक्खे चंकम्मिमो न उण छिन्नो। पाएण देह लोगो उवगारिमु परिचिएसु झुसिए वा । | अग्गिसिहाए चुत्थो चाउम्मासे न उण दहो ॥ (१०४) जो पुण अद्धांखिन्नं अतिहिं पूड तं दाणं ॥ (१३१)/३ माणुस्सं धम्मसुई सद्धा तब संजमंमि विरिअंच। ८ दीहरसीलं परिषालिऊण विसपमु वच्छ! मा रमम। | एए भावंगा खलु दुल्लभगा हुंति संसारे ॥ (१४४) को गोपमि बुट्टा उहि तरिऊण वाहाहिं ? ॥ १३७ | ४ माणुस्स खित्त जाई कुल रुपाऽऽरोग्ग आउयं युद्धी । ९ छउमस्थो मुथनाणी उवउसो उज्जुओ पयसे । सवणुग्गह सदा संजमो अलोगंमि दुलहाई॥ (१४५) भावन्नो पणवीसं सुयनाणपमाणो मुखो॥ (१४७)|५चुलग पासग धम्ने जूए रयणे असुमिण चके य । १० ओहो मुओबउत्तो मयनाणी जावि गिह अस। | चम्म जुगे परमाणू दस विहृता मणुभलमे ॥ (१४५) तं केवलीवि भंजा अपमाण सयं भवे बहरागा आलस्स मोहऽयन्ना थंभा कोहा पमाय किविणचा। १९ मुत्तस्स अप्पमाणे चरणाभावो तो य मोक्खस्स। । भय सोगा अज्ञाणा वक्खेव कुऊहला रमणा ॥ मोक्स्सऽविय अभावे दिक्खपवित्ती निरत्था उ ॥ (१४८) एएहिं कारणेहि लढूण सुदुल्लहंपि माणुस्सं । न लहइ सुई हिमकर संसारुसारिणिं जीवो ॥ (१५१) अथ उत्तराध्ययनसूक्तानि ७ मिच्छादिट्टी जीयो उबटुं पययणं न सहहह । १ क्वचित् सौच्या शैल्या कचिदधिकृतप्राकृतभुया, कथि | सहहद असम्भावं उयाटुं या अणुबा? ॥ चार्थापरया कचिदपि समारोपविधिना । कचिच्चाध्या- सम्महिट्ठी जीवो उदाह्र पथयणं तु सद्दहर। हारात् कचिदविकलप्रक्रमबलादियं व्याख्या ज्ञेया कचि- | सहहद असम्भा अणभोगा गुरुनिमोगा वा ॥ दपि तथाऽऽनायवशतः ॥ (७१)|९ खित्तं वत्थु हिरणं च, पसवो दास पोरुसं । ॥१२॥ "आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~240 Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [उत्तराध्ययनसूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) श्रीआगमीयसूक्तावला ॥१३॥ उत्तराध्यय नस्य सूक्तानि चत्तारि कामखंधाणि, तत्थ से उवबजा ॥ |१६ अहे वयह कोहेणं, माणेणं अहमा गई। १०मित्तवं नावं होइ, उच्चागोत्ते य वण्णवं । माया गइपडिग्घाओ, लोहाओ दुहओ भयं (३९८) __ अप्पायके महापन्ने, अभिजायजसोबले ॥ (१८७)|१७ एवं खलु जाया ! णिग्गंथे पावयणे सच्चे अणुत्तरे केव११ मुक्समग्गं पवन्नेसु, सासु बंभयारिसु । लिए एवं जहा पडिक्कमणे जाव सबदुक्खाण अंतं करेति, अहिथत्यं निवारितो, न दोसं वत्तुमरिहसि ॥ (३००) किंतु अहीव एगंतदिट्ठीए खुरो इव एगंतधाराए लोहमया वा १२ एकोऽहं न च मे कश्चित्राहमन्यस्य कस्यचित् । जवा चायव्वा वालुयाकवले इब निस्साए। (३२८) मतं पश्यामि यस्याहं,नासौ दृश्योऽस्ति यो मम ॥ (३०७) १८ धपणे सि तुमं देवाणुप्पिया! एवं सपुण्णोऽसि णं, कयत्वे, १३ यद् ब्रुमे महति पक्षिगणा विचित्राः, कृत्वाऽऽयं कयलक्खणे, जुलदे णं तब देवाणुपिया! माणुस्सए हि निशि यान्ति पुनः प्रभाते । तहजगत्यसकृदेव कुटुम्ब जम्मे जीवियफले। जीदाः, सर्वे समेत्य पुनरेव दिशो भजन्ते ॥ । १४ आरमार्थ सीदमानं स्वजनपरिजनो रीति हाहारवार्तों, १९ तए णं से अधारणि जमितिकट्ट करयलपरिग्गहियं जाव | भार्या चारमोपभोगं गृहविभवसुखं स्वं च यस्याश्च कार्यम्।। अंजलिं कटु णमोऽत्थु णं अरहताणं भगवंताणं जाव संपक्रन्दत्यन्योऽन्यमन्यस्त्विह हि बहुजनो लोकयात्रा निमित्तं, ताणं, नमोऽधुणं थेराणं भगवंताणं मम धम्मायरियाण यो याऽन्यस्तत्र किश्चिन्मृगयति हि गुणं रोदितीष्ठः स धम्मोबएसयाणं पुबिपि य णं मए थेराणं अतिते सब्वे तस्मै॥ (३०९) पाणाइवाए पच्चक्खाए जावज्जीचाए जाष सब्बे अकर१५ एकोऽहं न च मे कश्चित् , स्वपरो वाऽपि विद्यते। णिज्जे जोगे पच्चक्खाए, इयाणिपि तेसिं चेवणं भगवंताणं यदेको जायते जन्तुम्रियतेऽप्येक एव हि ॥ (३५०)। अतिते जाव सब्बं पाणातिवायं जाव सवं अकरणिज्ज REFERRENFEVEREST ॥१॥ "आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~25~ Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [उत्तराध्ययनसूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) श्री आगमीय सूक्तावली उत्तराध्यय नस्य सूक्तानि ॥१४॥ जोगं पथक्वामि, जंपिय मे इमं सरीरगं जाव पयंपि! विरत्तकामाण तबोधणाण, जंभिक्खुणं सीलगुणे रयाण(३८६)। चरिमेहिं ऊसासनीसासेहिं वोसिरामित्ति । (३३१) | २८ जाणमाणोऽपि ज धम्म, कामभोगेसु मुच्छिओ॥ (३९०) आ| २० दुलहे खलु माणुसे भवे, चिरकालेणवि सबपाणिणं । । | २९ सव्वं जगं जा तुहं, सव्वं यावि धणं भये। गाढा य विवागकम्मुणो, समयं गोयम मा पमायए । (३३५), सबंपि ते अपजतं, नेव ताणाय तं तव ॥ (४०८) | २१ भवसिद्धिया उ जीवा सम्महिट्ठी उजं अहिज्जति । ३० देवदाणवगंधवा, जक्खरक्खसकिन्नरा। तं सम्मसुपण सुर्य कम्मट्टविहस्स सोहिकरं ॥ बंभयारिं नमसंति, दुकर जे करति तं ॥ (४३०) २२ मिच्छहिट्ठी जीवा अभव्यसिद्धी य ज अहिजंति । ३१ नाणी संजमसहिओ नायब्बो भावो समणो। (४३२) तं मिच्छमएण सुयं कम्मादाणं च तं भणियं ॥ (३४३) ३२ अभयं तुझ नरवई ! जलबुचुअसंनिमे अ माणुस्से। २३ अह चोदसहि ठागेहि, वट्टमाणो उ संजए । किं हिंसाइ पसज्जासि जाणतो अप्पणो दृक्वं? (८४१) अविणीए बुधती सो उ, णिब्याण च ण गार ॥ (३४५) ३३ सम्वमिणं चदऊणं अवसरस जया य होइ गंतव्यं । २४ अह पन्नरसहिं ठाणेहि, मुवि गीएत्ति बुच्चइ । किं भोगेसु पसजसि? किंपागफलोचमनिमेसु ॥ (४४२) नीयाबित्ती अचवले, अमाई अकुऊहले ॥ ३४ अम्मताय ! मए भोगा, भुत्ता बिसफलोवमा । २५ भद्दएगेव होअब्वं, पाषर भद्दाणि भइओ। पच्छा कडुयविवागा, अणुबंधदुहावहा ॥ सचिसो हम्मए सपो, भेडो तत्थ मुच्चा ॥ ३५४ | ३५ एम सरीरं अणिचं, असुरं असुइसंभव। २६ सव्वं विलवियं गीर्य, सव्वं नर्से विडंबणा । ___असासयावासमिणं, दुक्खकेसाण भायणं ॥ सत्रे आभरणा भारा, सो कामा दुहावहा ॥ ३६ असासए सरीरंमि, सं नोबलभामहं।। २७ बालाभिरामेसु दुहावहेसु,न तं सुहं कामगुणेसु रायं! | पच्छा पुरा व चायब्बे, फेणबुबुयसंनिमे ॥ R0EEVSARSORRCISE ॥१४॥ “आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~26~ Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [उत्तराध्ययनसूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) आगमीय उत्तराध्यय नस्य सूक्तानि सूक्तावली ॥१५॥ ३७ माणुसत्ते असारंमि, वाहीरोगाण आलए । __ एव धम्म चरिस्सामि, संजमेण तबेण य॥ .जरामरणपत्थंमि, खणंपि न रमामहं ॥ | ५६ जया मिगस्स आयंको महारण्णमि जायई । ३८ जम्म दुक्खं जरा दुक्खं, रोगा य मरणाणि य। अच्छतं रुक्खमूलंमि, को गं ताहे चिगिच्छई। ॥ अहो दुक्खो हुसंसारो, जत्थ कीसंति जंतुणो॥ ४७ को वा से ओसह देश, को वा से पुच्छई सुई। ३९ खित्तं वत्थं हिरणं च, पुत्तदारं च बंधवा । को से भत्तं व पार्ण वा, आहरित्तु पणामई? ॥ चदत्ताण इमं देहे, गंतव्यमवसस्स मे ॥ ४८ जया य से सुही होइ, तया गच्छर गोअरं । | ४० जह किंपागफलाणं, परिणामो न सुंदरो। भत्तपाणस्स अट्ठाए, बल्लराणि सराणि य ॥ एवं भुत्ताण भोगाणं, परिणामो न सुंदरो॥ (४५४) ४९ खाइत्ता पाणियं पाउं, बल्लरेहिं सरेहि य । ४१ तं वितऽम्मापियरो, एवमेयं जहाफुडं। मिगचारियं चरित्ताण, गच्छई मिगचारियं । इहलोगे निप्पिवासस्स, नस्थि किंचिवि दुकरं ॥ ५० एवं समुट्ठिए भिक्ख, एवमेव अणेगए । ४२ सारीरमाणसाचेच, वेयणा उ भणंतसो। मिगचरियं चरिताणं, उई पक्कमई दिसं ॥ मए सोदामों [*] भीमानो [], असई दुक्खभयाणि य॥ ५१ जहा मिए एग अणेगचारी, अणेगवासे धुवगोभरे भा एवं ४३ जरामरणकतारे, चाउरते भयागरे । मुणी गोयरियं पविटे, नो हीलए नोवि य खिंसइजा ॥ (४६२) मया सोढाणि भ.मार, जम्माई मरणाणि य॥ (४५८)/५२ सीहत्ता निक्खमिडं सीहत्ता चेव विहरसु पुत्ता। ४४ सो वितऽम्मापियरो! एवमेयं जहाफुडं। जह नवरि धम्मकामा विरत्तकामा उ विहरति । l, परिकम्म को कुणई, अरने मिगपक्खिणं?॥ ५३ नाणेण दंसपेण य चरित्ततवनियमसंजमगुणे हिं। ५ एगम्भूभो भरम्ने चा, जहा ऊ चरई मिगो। संताप मुत्तीए होहि तुम यहमाणो उ (४६४) "आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~27~ Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [उत्तराध्ययनसूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) श्रीआगमीयसूक्तावली उत्तराध्यय नस्थ सूक्तानि ॥१६॥ ५४ पंचमहव्ययजुत्तो पंचसमिओ तिगुत्तिगुत्तो भ। | एसेच धम्मो विसभोववन्नो, हणार याल स्यायिवनो (४७७) सभितरवाहिरिए, तबोकम्ममि उज्जुभो ॥ ५८ दसमसगसामाणा जल्यकविच्छुयसमा य जे हुँति । निम्ममो निरहंकारो, निस्संगो चत्तगारवो । ते किर होंति खलंका तिक्खमिउचंडमहविया ॥ समो अ सवभूपसु, तसेसु थावरेसु अ॥ ५९ जे किर गुरुपडिणी सबला असमाहिकारगा पाया। लाभालामे सुहे दुक्खे, जीविए मरणे तहा। अहिगरणकारगप्पा जिणवयणे ते किर खलुका ॥ समो निंदापसंसासु, तहा माणावमाणओ ॥ ६० पिसुणा परोयताबी मिनरहस्सा परं परिभवति ।' गारवेसु कसाएसु, दंडसल्लभपसु अ। निविअणिज्जा य सदा जिणवयणे ते किर खलुका ॥ (५४२) नियत्तो हाससोगाओ, अनियाणो अबंधणो॥ ६१ नाणेण जाणाई भावे, संमत्तेण य सद्दहे। अणिस्सिभो इहलोए, परलोए अणिस्सिभो। चरित्तेण निगिण्हाइ, तवेण परिसुज्झई॥ वासीचंदणकप्पो अ, असणे अणसणे तहा॥ ६२ आहारमिच्छे मियमेसणिजं, सहायमिच्छे निउणस्थवुदि । अप्पसत्येहिं दारेहि, सचओ पिहियासवो। निकेयमिच्छिज विवेगजोगं, समाहिकामे समणे तवस्ती॥ अज्झप्पशाणजोगेहि, पसस्थदमसासणो॥ (४६४) | ६३ तस्सस मग्गों गुरुषिजसेवा, वियजणा बालजण ५५ अप्पा नई बेयरणी, अप्पा मे कूडसामली। सज्झायपगतनिसेवणा य, सुत्तत्थसंचिंतणया धिई य॥(६२२) गः अप्पा. कामदुहा घेणू, अप्पा मे नंदर्ण वर्ण । ६४ जहा य अंडप्पभवा बलागा, अंडं बलागप्पभवं जहा य । ५६ अप्पा कत्ता विकत्ता य, दुहाण य सुहाण य । एमेच मोहाययणं खु तण्हं, मोहं च तण्हाययणं वयंति। अप्पा मित्तममित्तं च, दुष्पट्ठियसुपट्टिओ॥ (४७६)| ६५ रागो य दोसोविय कम्मबीयं, कम्मं च मोहप्पभवं वयंति । ५७ विसं तु पीयं जह कालकूड, हणार सत्थं जह कुरगहीय। कम्मं च जाईमरणस्स मूलं, दुक्खं च जाईमरणं वयंति ॥ ॥१६॥ “आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~28~ Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [उत्तराध्ययनसूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) श्री आगमीयसूक्तावली उत्तराध्यय नस्य सूक्तानि ॥१७॥ ६६ दुक्खं हयं जस्स न होइ मोहो, मोहो हो जस्सन | इस्वीजणस्सारियाणजुग्गं, हियं सया बंभवए रयाणं ॥ होइ तण्हा । तण्हा हया जस्स न होहलोभो, लोमो |७३ कामं तु देवीहिं विभूसियाहिं, न चाश्या खोभाउ तिगुत्ता। हओ जस्सन किंचणाई ॥ (६२३) तहावि एगंतहियंति नचा, विवित्तवासो मुणिणं पसत्थो॥ ६७ रसा पगामं न हु सेबियच्या, पायं रसा दिसिकरा |७४ मुक्खाभिकंखिस्सवि माणवस्स, संसारभीरुस्स ठियस्स नराणं । दित्तं च कामा समभिवंति, दुमं जहा धम्मे । गेयारिस्सं दुत्तरमस्थि लोए, जहत्यिो बालसाउफलं व पक्खी ॥ | मणोहराओ॥ ६८ जहा दबग्गी पडरिंधमे बणे, समारुओ नोवसम | ७५ एए य संगा समइक्कमित्ता, सुहुत्तरा व हवंति सेसा । उवेह । एबिंदियग्गीवि पगामभोइणो, न बंभयारिस्स जहा महासागरमुत्तरित्ता, नई भवे अवि गंगासमाणा ॥ हियाय कस्सइ॥ ७६ कामाणुगिद्धिप्पभवं खु दुक्खं, सब्यस्स लोगस्स सदेव१९ विवित्तसिग्जाऽऽसणजंतियाणं, ओमासणाणं दमिदंदिया । ___ गस्स । जे काइयं माणसियं च किच्चि, तस्संतयं नरागसत्तू धरिसेद चित्तं, पराइयो बाहिरियोसहेहि ॥ - गच्छद बीयरागो॥ ७० जहा विरालायसहस्स मूले, न मूसगाणं पसहीपस- ७७ जहा य किंपागफला मणोरमा, रसेण बनेण व भुजमाणा। स्था । एमेव दस्थीनिलयस्स मज्झे, न बंभयारिस्स ते खुदए जीषिय पचमाणा, एओषमा कामगुणा विधागे (१२५) खमो निवासो ॥ ७८ न कामभोगा समयं उविति, न यावि भोगा विगई उचिंति । ७१ न रूबलावण्णबिलासहासं, न जंपिअंइंगिय पहियं वा।। जे तप्पभोसी य परिग्गही य, सो तेसु मोहा विगई उबेद ॥(६३५) इत्थीण चित्तंसि निबेसइत्ता, दट्ट, वयस्से समणे तवस्सी। |७९ अच्चणं रयणं चेच, बंदणं पूभणं तहा । ७२ असणं चेव अपत्थणं च, अचिंतणं चेव अकित्तणं च ।। बहीसकारसम्माण, मणसावि न पत्थए । ॥१७॥ "आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~29~ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ भाग-1] श्री आगमीय सूक्तावलि - आदि आगमीय सूक्तावलि [ उत्तराध्ययन+आचारांगसूक्तानि ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः आगमीय सूक्तावलि आदि (आगम-संबंधी - साहित्य) श्री आगमीय सूक्तावली आ ग ॥१८॥ मो 25 tho वा ८० जिणवयणे अणुरता जिणवयणं जे करेंति भावेणं । अमला असंकिलिट्टा ते हुति परित्तसंसारी ॥ ८१ बालमरणाणि बहुसो अकाममरणाणि चेव बहुयाणि । मरिहंति ते वराया जिणवयणं जे न याति ॥ ( ७०८) अचान १ एकं हि चरम सहजो विवेकस्तद्वद्भिरेव सह संवसतिर्द्वितीयम् । एतद् द्वयं भुवि न यस्य स तत्त्वतोऽन्धस्तस्यापमार्गचलने खलु कोऽपराधः १॥ (४१-११९) २ विजिओ कसायलोगो सेयं खु त नियत्ति हो । कामनयत्तमई खलु संसारा मुच्चई खिष्पं ॥ (८४) ३ पंचसु कामगुणेसु य सद्दष्फरिसरसरुवगंधेनुं । जस्स कसाया बर्हति मूलद्वाणं तु संसारे ॥ (८९) ४ दृश्यं वस्तु परं न पश्यति जगत्यन्धः पुरोऽवस्थितं, रागान्धस्तु यदस्ति तत्परिहरन् यन्नास्ति तत् पश्यति । कुन्देन्दीवरपूर्णचन्द्रकलशश्रीमल्लतापल्लवानारोप्याशुचिराशिषु प्रियतमागात्रेषु यन्मोदते ॥ ६ ५] जह सव्वपायवाणं भूमी पट्टियाई मूलाई । इय कम्मपायवाणं संसारपट्टिया मूला ॥ अहिकम्मरुखासन्धे ते मोहणिजमूलागा। कामगुणमूलगं वा तम्मूलगं च संसारो ॥ ७ संसारस्य उ मूलं कम्मं तस्सवि हुति य कसाया । ८ पुत्रा मे भ्राता मे स्वजना में गृहकलत्रवर्गो मे । इति कृतमेमेशब्द पशुमिव मृत्युजनं हरति ॥ पुत्रकलत्रपरिग्रहममत्वदोषैर्नरो वजति नाशम् । कृमिक इव कोशकारः परिग्रहाः खमाप्नोति ॥ १० संसारं हेतुमणो कम्मं उम्मूलऍ तदट्टाए । उम्मूलिज कसाया तम्हा उ चदज सयणाई ॥ ९ (१०१) ११ माया मेति पिया मे भगिणी भाया य पुत्तदारा मे अत्यंमि चेव गिद्धा जम्मणमरणाणि पार्वति ॥ १२ स्वतोऽन्यत इतस्ततोऽभिमुखधावमानापदामहो निपुणता नृणां क्षणमपीह यज्जीव्यते । मुखे फलमतिक्षुधा सर समस्यमायोजित, कियच्चिरमचर्वितं दशनसङ्कटे स्थास्यति ॥ १३ उच्छ्वासावधयः प्राणाः, स घोच्छ्वासः समीरणः । "आगम-संबंधी- साहित्य' श्रेणी [भाग-1] ~30~ (९०) (९१) श्री आ मो द्धा WWW the उत्तराध्यय नावारां गयोः सूक्तानि ॥१८॥ Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [आचारांगसूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) श्री आगमीयसूक्तावली आचारांगस्य सूक्तानि ॥१९॥ समीरणाच्चवलं नान्यत् , क्षणमप्यायुरद्भुतम् ॥ (१०३) च तत्र गुणोऽस्ति ते॥ १४ गात्रं सङ्कचितं गतिबिंगलिता दन्ताश्च नाशं गताः, दृष्टिभ्रं-२१ तज्ज्ञानमेव न भवति यस्मिन्नुविते विभाति रागगणः।। पति रूपमेव हसते वक्त्रं च लालायते । वाक्यं नैव करोति | तमसः कुतोऽस्ति शक्तिर्दिनकरकिरणाप्रतः स्थातुम् ॥ पान्धवजनः पत्नी न शुश्रूषते, धिकएं जरयाऽभिभूतपुरुष | २२ अज्ञानाम्धाश्चटुलवनितापाङ्गविक्षेपितास्ते, कामे सक्ति पुत्रोऽप्यवशायते॥ (१०६)| दधति विभवाभोगतुङ्गार्जने वा । बिच्चित्तं भवति १५ न विभूषणमस्य युज्यते, न च हास्यं कुत एच विभ्रमः।। | हि महन् मोक्षमार्गकतान, नास्पस्कन्धे विटपिनि कपअथ तेषु च वर्त्तते जनो, भूषमायाति परां विडम्बनाम् ॥ | त्यंशभित्ति गजेन्द्रः॥ (११२) १६ जे जं करेइ तं तं न सोहए जोवणे अतिकते। | २३ अशानं खलु कष्टं क्रोधादिभ्योऽपि सर्वपापेभ्यः । पुरिसस्स महिलिया इच एक धम्म पमुत्तूर्ण ॥ ___ अर्थ हितमहितं वा न वेत्ति येनावृतो लोकः ॥ १७ सम्प्राप्य मानुषत्वं संसारासारतां च विज्ञाय । २४ स्वेच्छाविरचितशास्त्रैः प्रव्रज्यावेषधारिभिः क्षुदैः । हे जीव! किं प्रमादान चेटसे शान्तये सततम् ॥ नानाविधैरुपायैरनाथवन्मुष्यते लोकः॥ १८ ननु पुनरिदमतिदुर्लभमगाधसंसारजलधिविभ्रष्टम् । २५ इन्द्रियाणि न गुप्तानि, लालितानि न चेच्छया । मानुष्यं खद्योतकतदिल्लताविलसितप्रतिमम् ॥ मानुष्यं दुर्लभ प्राप्य, न युक्तं नापि शोषितम् ॥ (१९३) १९ नहवेगसमं चवलं च जीवियं जोवणं च कुसुमसमं। |२६ धावेद रोहणं तरह सायरं भमइ गिरिणिगुंजेसुं। सोक्षं च अणिच्चं तिषिणवि तुरमाणभोज्जाई॥ (१०७)। माग बंधपि हु पुरिसो जो हो। धणलुदो ॥ २० सह कलेवर! दुःखमचिन्तयन् , स्ववशता हि पुनस्त- २७ अडा बहुं बहर भर सहइ छुहं पायमायर चिट्ठो। च दुर्लभा । बहुतरं च सहिष्यसि जीव हे !, परवशो न । कुलसीलजाइपच्चयधिदं च लोभद्दओ चयर ॥ (११४) ॥१९॥ "आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~31~ Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [आचारांगसूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) आगमीयसूक्तावली आचारांगस्य सूक्तानि ॥२०॥ २८ तिथिपर्वोत्सवाः सर्वे, त्यक्ता येन महात्मना । | ३६ जीबम्नेव मृतोऽन्धो यस्मात्सर्वक्रियासु परतन्त्रः । ___ अतिथि तं विजानीयाच्छेषमभ्यागतं विदुः ॥ नित्यास्तमितदिवाकरस्तमोऽन्धकारार्णवनिमग्नः ॥ २९ आराध्य भूपतिमवाप्य ततो धनानि, भोक्ष्यामहे किल | ३७ लोकद्वयव्यसनयतिविदीपितानमन्ध समीक्ष्य कृपणं वयं सततं सुखानि । इत्याशया धनविमोहितमानसानां, परयष्ठिनेयम् । को नोद्धिजेत भयकृजननादियोगात्, कालः प्रयाति मरणावधिरेव पुंसाम् ॥ कृष्णाहिनैकनिचितादिव चान्धगर्त्तात् ॥ (१२०) ३० एहि गच्छ पतोत्तिष्ठ, बद मौनं समाचार। ३८ धर्मश्रुतिश्रवणमङ्गलबर्जितो हि, लोकश्रुतिश्रवणसंव्यव इत्याद्याशाग्रहप्रस्तः, क्रीडन्ति धनिनोऽर्थिभिः ॥ (११५) वहारवाह्यः । किं जीवतीह बधिरो भुवि यस्य शब्दाः, ३१. सर्वसुखान्यपि बहुशः प्राप्ताम्यटता मयाऽत्र संसारे। ___ स्वप्नोपलब्धधननिष्फलतां प्रयान्ति ॥ उच्चैः स्थानानि तथा तेन न मे विस्मयस्तेषु ॥ ३९ स्वकलत्रयालपुत्रकमधुरवच श्रवणबाह्यकरणस्य । ३२ जर सोऽवि निजरमओ पदिसिद्धो अट्ठमाणमहणेहिं । | बधिरस्य जीवितं किं जीवन्मृतकाकृतिधरस्य ॥ अवसेस मयट्ठाणा परिहरिअम्बा पयत्तेणं । ४० दुःखकरमकीर्तिकर मूकत्वं सर्वलोकपरिभूतम् । ३३ अवमानात्परिभ्रंशाद्वधवग्धधनक्षयात् । प्रत्यादेश मूढाः कर्मकृतं किं न पश्यन्ति ॥ प्राप्ता रोगाच शोकाश्च, जात्यन्तरशतेष्वपि ॥ ४१ काणो निमग्नविषमोन्नतरप्टिरेकः, शाक्तो विरागजनने ३४ संते य अविम्हा असोइड पंडिपण य असंते । जननातुराणाम् । यो नैव कस्यचिदुपैति मनःप्रियत्ष___सक्का हु दुमोबमिभं हिलपण हि धरतेण ॥ मालेण्यकर्म लिखितोऽपि किमु स्वरूपः॥ (१२०) ३५ होऊण चकवट्टी पुहरबई विमलपंडरच्छत्तो। ४२ दाराः परिभवकारा बन्धुजनो बन्धनं विषं विषयाः । सो चेष नाम भुजो अणाहसालालो होइ ॥ (१९८)ी कोऽयं जनस्य मोहो? ये रिपवस्तेषु सुहदाशा ॥ ॥२०॥ “आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~32~ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [आचारांगसूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) श्री आगमीयसूक्तावली | आचारांगस्य सूक्तानि ॥२२॥ ४३ इणमेव नावकखंति, जे जणा धुवचारिणो । जाई मरणं परिमाय, चरे संकमणे दडे ॥ नस्थि कालस्स णागमो, सव्ये पाणा पियाउया, सुहसाया दुक्खपडिकूला अप्पियवहा पियजीविणो जीविउकामा, सब्बेसि जाषियं पियं, तं परिगिजा दुषवं चउप अभिजुजिया णं संसिंचिया णं तिविहेण जाऽवि से तत्थ मत्ता भवद अप्पा वा बहुया वा से तत्थ गहिए चिट्ठा भोषणाए, तो स एगया विविहं परिसिहूं संभूर्य महोबगरणं भवर, तपि से एगया दायाया वा विभयंति, अदत्तहारो वा से अवहरंति, रायाणो वा से विलपंति, नस्सइ वा से विणस्सा वा से, अगारदाहेण वा से उज्झा, इय से परस्सऽट्ठाए कूराई कम्माई वाले पकुब्वमाणे तेण दुक्खेण संमूढे विप्परियासमुबेद, मुणिणा हु पयं पवेश्य, अणोहंतरा पए नोय ओह तरित्तए, अतीरंगमा पप नो य तीरं गमित्तए, अपारंगमा पए नो य पारं गमित्तए, आयाणिजं व आयाय तंमि ठागे न चिटर, वितह पप्पऽखेयन्ने तंमि ठाणमि चिट्ठा। (१२१) |४४ सन्दिग्धेऽपि परे लोके, त्याज्यमेवाशुभं बुधैः। | यदि नास्ति ततः किं स्यादस्ति चेनास्तिको हतः ॥ |४५ शिशुमशिशुं कठोरमकठोरमपण्डितमपि च पण्डितं, धीरमधीरं मानिनममानिनमपगुणमपि च बहुगुणम् । यतिमयति प्रकाशमवलीनमचेतनमथ सचेतन, मिशिविष सेऽपि साम्भ्यसमयेऽपि विनश्य(नाशय)ति कोऽपि कथमपि ॥ |४६ रमा विहवी बिसेसे ठितिमित्तं थेववित्थरो महई।। मग्गा सरीरमहणो रोगी जीप च्चिय कयस्थो ॥ (१२२) |४७ रुमिकुलचित्तं लालाक्ति विगन्धि जुगुप्सितं, निरु पमरसप्रीत्या खादन्नरास्थिनिरामिषम् । सुरपतिमपि या पाश्र्वस्थं सशङ्कितमीक्षते, न हि गणयति क्षुद्रो लोकः परिग्रहफल्गुताम् ॥ | ४८ रागद्वेषाभिभूतत्वात्कार्याकार्यपराङ्मुखः। एष मूढ इति शेयो, विपरीतविधायकः ॥ (१२३) |४९ उत्तो या स्वत पब मोहसलिलो जन्माऽऽलवालोऽशुभो, | रागद्वेषकषायसन्ततिमहानिर्षिबीजस्त्वया । रोगरत RRRRRRRRRRREE EVRRIERIERR ॥२१॥ "आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~33. Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ भाग-1] श्री आगमीय सूक्तावलि आदि आगमीय सूक्तावति [आचारांगसुकतानि] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः आगमीय सूक्तावलि आदि (आगम-संबंधी - साहित्य) श्री आगमीय सूक्तावली आ ग ||२२|| मो द्धा र सं 5 ग्र हे भा रितो विपत्कुसुमितः कर्मद्रुमः साम्प्रतं, सोढा नो यदि सम्यगेव फलितो दुःखैरधोगामिभिः ॥ ५० पुनरपि सहनीयो दुःखपाकस्त्वयाऽयं न खलु भवति नाशः कर्मणां संचितानाम् । इति सह गणयित्वा यद्यदायाति सम्यग् सदसदिति विवेकोऽन्यत्र भूयः कुतस्त्यः ? ॥ (१२६) ५१ यलोके श्रीहियवं हिरण्यं पशवः स्त्रियः । नालमेकस्य तत्सर्वमिति मत्वा शर्म कुरु ॥ ५२ उपभोगोपायपरो वाच्छति यः शमयितुं विषयतृणाम् । धावत्याक्रमितुमसौ. पुरोऽपरान्हे निजच्छायाम् ॥ (१२८) ५३ जरामरणदौर्गत्यव्याधयस्तावदासताम् । (१३२) मन्ये जन्मैव धीरस्य भूयो भूयस्त्रपाकरम् ॥ ५४ लभ्यते लभ्यते साधुः, साधुरेव न लभ्यते । अलब्धे तपसो वृद्धिर्लब्धे तु प्राणधारम् ॥१॥ ५५ लज्जां गुणौधजननीं जननीमिवार्यामत्यन्तशुद्ध हृद्या मनुवर्त्तमानाः । तेजस्विनः सुखमसूनपि सम्स्यजन्ति, सत्यस्थितिव्यसनिनो न पुनः प्रतिशाम् ॥ (१३४) (१३५) ५६ मसरुिहिरण्ारुणडकल लयमेयमजासु । पुर्णमिचम्मकोसे दुग्गंधे असुरवीच्छे | ५७ संचारिमजंतगलंतवचमुत्तं तसे अपुण्णंमि । देहे हुआ किं रागकारणं असुइम्मि ? ॥ (१३७) ग ५८ दुःखार्त्तः सेवते कामान् सेवितास्ते च दुःखदाः । मो यदि ते न प्रियं दुःखं प्रसङ्गास्तेषु न क्षमः ॥ (१३९) डा ५९ दुःखदि सुखलिप्सु मोहान्धत्वादरष्टगुणदोषः । यां यां करोति चेष्टा तथा तथा दुःखमादत्ते ॥ (१४१) ६० विभव इति किं मदस्ते च्युतविभवः किं विषादमुपयासि ? । करनिहित कन्दुकसमाः पातोत्पाता मनुष्याणाम् ॥ (१४३) ६१ शिवमस्तु कुशास्त्राणां वैशेषिकपष्टितन्त्रवौद्धानाम् । येषां दुर्विहितत्वाद् भगवत्यनुरज्यते चेतः ॥ ६२ सीउण्डफासहहपरीस हकसायबेयसोय सहो । " तुज समणो सया उज्जुओ य तवसंजमोघसमे ॥ (१५१) ८ ६३ नातः परमहं मन्ये, जगतो दुःखकारणम् । यथाऽज्ञानमहारोगो, दुरन्तः सर्वदेहिनाम् । ६४ रक्तः शब्दे हरिणः स्पर्शे नागो रसे च वारिचरः । "आगम-संबंधी- साहित्य' श्रेणी [भाग-1] ~34~ (१५२) आचारांगस्य सूक्तानि ॥२२॥ Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [आचारांगसूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) आचारांगस्य श्रीआगमीयसूक्तावली सूक्तानि ॥२३॥ - कृपणपतङ्गो रूपे भुजगो गन्धे ननु यिनष्टः ॥ | न खलु नरः सुरौघसिद्धासुरकिन्नरनायकोऽपि य । सोऽपिः पञ्चसु रक्ताः पञ्च विनष्टा यत्रागृहीतपरमार्थाः । कृतान्तदन्तकुलिशाकमेण कृशितो न नश्यति ॥ (१८३) | एकः पञ्चसु रक्तः प्रयाति भस्मान्ततामबुधः॥ (१५३) | नश्यति नौति याति. वितनोति करोति रसायनक्रियाम् , ६५ रागद्वेषवशाविद्धं, मिथ्यादर्शनदुस्तरम् । चरति गुरुजतानि विवराण्यपि विशति विशेषकातरः । जन्मावते जगत् क्षिप्त, प्रमादाद् भ्राम्यते भृशम् ॥ (१५४) तपति तपांसि खादति मितानि करोति च मन्त्रसाधनं, ६६ यथेष्टविषयाः सातमनिष्टा इतरत्तय। . . तदपि कृतान्तदन्तयन्त्रक्रकचक्रमणैर्विदार्यते ॥ (१८४) अन्यत्रापि विदित्वैवं न कुर्यादप्रियं जने ॥ (१५९) ७१ संसार पवायमनर्थसारः कः कस्य कोऽत्र स्वजनः परो ६७ कुणमाणोऽपि निवित्तिं परिचयंतोऽबि सयणधणभोए । वा। सर्वे भ्रमन्तः स्वजनाः परे च, भवन्ति भूत्वा न दितोऽपि दुहस्स उरे मिच्छदिट्ठी न सिज्झइ उ.॥ भवन्ति भूयः ॥ | ६८ सम्मत्तुपत्ती सावए य विरए. अणंतकम्मसे। विचिन्त्यमेतद् भवताऽहमेको, न मेऽस्ति कश्चित् पुरतो दसणमोहक्खए उवसामन्ते य उबसंते ॥ न पश्चात् । स्वकर्मभिधान्तिरियं ममैव, अहं पुरखवए य खीणमोहे जिणे अं सेढी भवे असंहिज्जा । . स्तादहमेव पश्चात् ॥ तचिवरीओ कालो संखिजगुणाइ सेढीए । ...(१७७) सदैकोऽहं न मे कश्चित् , नाहमन्यस्य कस्यचित् । । ६९ आहारउवहिपूआइडीसु य गारवेसु कइतवियं । न तं पश्यामि यस्याहं, नासी भावीति यो मम ॥ एमेव वारसविहे तवंमिन हु कइतवे समणो ॥ (१७८)| एकः प्रकुरुते कर्म, भुनक्येकच तत्फलम् । ७० बदति यदीह कश्चिदनुसंततसुखपरिभोगलालितः। जायते म्रियते चैक, एको याति भवान्तरम् ॥ (१९१) प्रयत्नशतपरोऽपि विगतव्यथमायुरवाप्तवान्नरः । ।७२ क्षितितुलशयनं वा प्रान्तभैक्षाशनं वा, सहजपरिभवो ॥२३॥ "आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~35 Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय सूक्तावली ||२४|| [ भाग-1] श्री आगमीय सूक्तावलि आदि आगमीय सुक्तावति [आचारांगसूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः आगमीय सूक्तावलि आदि (आगम-संबंधी - साहित्य) आ ग डा र भा वा मीचदुर्भाषितं वा । महति फलविशेषे नित्यमभ्युचतानां न मनसि न शरीरे दुःखमुत्पादयन्ति ॥ - ७३ तणसंधारनिसण्णोऽवि मुणिवरो भट्टरागमय मोहो । जं पावर मुत्तिसुहं तं कत्तो चकवट्टीवि ? ॥ ( १९८) ७४ लोगंमि कुसमयसु य कामपरिग्गहकुमग्गलग्गेसुं । सारो हु नाणदंसणतवचरणगुणा हियडाए । (१९७) ७५ लोगस्स सार धम्मो धम्मंपि य नाणसारियं विति । नाणं संजमसारं संजमसारं च निव्वाणं ॥ ७६ पायोवर अपरिगहे अ गुरुकुलनिसेवर जुत्ते । उम्मग्गवजण रागदोसविरए य से दिहरे ॥ ७७ सुकृतपरिणतानां दुर्नयानां विपाकः पुनरपि सहनीयोऽन्यत्र ते निर्गुणस्य स्वयमनुभवतोऽसौ दुःखमोशाय सद्यो, भवशतगतिहेतुर्जायते ऽनिच्छतस्ते ॥ (२०६) ७८ जो चंदणेण बाहुं आलिंपर वासिणा व तच्छेति । (२०३) संथुण जो अ जिंदति महेसिणो तत्थ समभावा ॥ (२०९) ७९ सम्मार्गे तावदास्ते प्रभवति पुरुषस्तावदेवेन्द्रियाणां लज्जां तावद्विधत्तं विनयमपि समालम्बते तावदेव | चापाकृष्टमुक्ताः श्रवणपथजुषो नीलपक्ष्माण एते, याव लीलावतीनां न हृदि धृतिमुपो दृष्टिवाणाः पतन्ति ॥ (२१९) ८० किमिदमचिन्तितमसदृशमनिष्ठमतिकष्ठमनुपमं दुःखम् । सहसैवोपनतं मे नैरयिकस्येव सत्यस्य ? | (२३४) ८१ श्रवणलवनं नेत्रोदारं करक्रमपाटनं हृदयदहनं नासाच्छेदं प्रतिक्षणदारुणम् । कटविदहनं तीक्ष्णापातत्रिशूलवि- मो भेदनं, दहनवदनैः करैः समन्तविभक्षणम् ॥ तीक्ष्णैरसिभिर्दीतैः कुन्तैर्विपमैः परश्वधैश्वकैः । परशुत्रिशूलमुद्गरतोमरबासीमुपण्डीभिः ॥ सम्भिन्नतालुशिरसचिभुजा छिनकर्णनासौष्टाः । freeदयोदराय भिन्नाक्षिपुटाः सुदुःखार्त्ताः ॥ निपतन्त उत्पतन्तो विचेष्टमाना महीतले दीनाः । नेक्षन्ते त्रातारं नैरयिकाः कर्मपटलान्धाः ॥ छिद्यन्ते कृपणाः कृतान्तपरशोस्तीक्ष्णेन धारासिना, क्रन्दन्तो विपचिभिः परिवृताः संभक्षणव्यापृतैः । पाठ्यन्ते कचेन दारुवदसिना प्रच्छिनया हुद्वयाः, कुम्भीषु पुपानदग्धतनवो मूपासु चान्तर्गताः ॥ "आगम-संबंधी- साहित्य' श्रेणी [भाग-1] ~36~ श्रीसूक्तानि आ 영희의 쇠서 의회의 의 द्धा आचारांगस्य भा ॥२४. Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [आचारांगसूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) आचारांगस्य आगमीय सूक्तावला भूज्यन्ते ज्वलदम्बरीषरतभुगज्वालाभिराराविणो, दीमा- तितापितेषु । आर्या! नस्तदिह विचार्य संगिरन्तु, कारनिमेषु वज्रभवनेष्वङ्गारकेत्थिताः । दह्यन्ते विकृतो- यत् सौख्यं किमपि निवेदनीयमस्ति ॥ (२३७) बाहुबदनाः कन्दन्त भातरचनाः, पश्यन्त कृपणा ८३ दुर्बलान्यविनयवस्ति पेन्द्रियाणि, अचिन्त्या मोहशक्तिः, दिशो विशरणास्त्राणाय को नो भवेत् ॥ (२३६) विचित्रा कर्मपरिणतिः किं न कुर्यादिति, उक्तश्च८२ भुत्तुहहिमात्युष्णभयाहितानां, पराभियोगव्यसनातुराणाम् ।। कम्माणि गूणं घणचिकणाई गरुयाई बहरसाराई। अहो तिरश्चामतिदुःखितानां, सुखानुपङ्गाः किल वार्त्त । णाणट्टिअपि पुरिसं पंथाओ उप्पहं णिति ॥ (२४७) मेतत् ॥ (२३७) ८४ कह नाम सो तबोकम्मपंडिओ जो न निजुत्तष्पा । दुःखं स्त्रीकुक्षिमध्ये प्रथम मिह भवे गर्भवासे नराणां, | लहु वित्तीपरिक्षेत्रं वश्चद जेमंतओ चिव ? ॥ बालत्वे चापि दुःखं मललुलिततनु स्त्रीपयःपानमिश्रम् । ८५ आहारेण विरहिओ अप्पाहारो य संवरनिमित्त । तारुण्ये चापि दुःखं भवति विरह वृद्धभावोऽप्यसारः, हासंतो हासंतो एवाहारं निरुभिजा ॥ (२६४) संसारे रे मनुष्या ! वदत यदि सुखं स्वल्पमप्यस्ति ८६ पगे अहमंसि, न मे अस्थि कोई, न याहमवि कस्सवि। किश्चित् ॥ ८७ से भिक्खू वा भिक्खुणी वा असणं वा ४ आहारेमाणे बाल्यात्प्रभृति च रोगैर्दोऽभिभवश्व यावदिह मृत्युः। नो वामाओ हणुयाओ दाहिणं हणुयं संचारिजा शोकवियोगायोगैर्दुर्गतदापैश्च नेकविधैः॥ आसाएमाणे, दाहिणाोहणुयाओ चामं हणुयं नो क्षुत्तूइहिमोष्णानिलशीतदाहदारियशोकप्रियविप्रयोगः।। संचारिजा आसाएमाणे, से अणासायमाणे लावियं दोभाग्यमौर्यानभिजात्यदास्यबैरुप्यरोगादिभिरस्वतन्त्रः॥ आगमेमाणे तबे से अभिसमन्त्रागए भवद। (२८३) देवेषु च्यवनवियोगदुःखितेषु, क्रोधेमिदमदना- ८८ तिस्थयरो चउनाणी सुरमहिओ सिझियव्यय धुम्मि । “आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~37~ Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ भाग-1] श्री आगमीय सूक्तावलि आदि आगमीय सूक्तावति [आचारांगसुकतानि] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः आगमीय सूक्तावलि आदि (आगम-संबंधी - साहित्य) श्री आगमीय सूक्तावली आ ॥२६॥ २९७ अणिमूहियवलविरिओ तवोविहामि उज्जम || 'किं पुण अवसेसेहिं दुक्खक्खयकारणा सुविहिपहिं । होइ न उज्जमियब्वं सपच्चवायंमि माणुस्से || ८९ जह खलु महल वत्थं सुज्झर उदगारपहिं दव्येहिं । एवं भावुबहाणेण सुज्झए कम्ममविहं ॥ ९० नाणं भविस्सई एवमाश्या बायणाइयाओ य । सज्झा आउतो गुरुकुलवासीय इय नाणे ॥ ९१ आलंबणे य काले मग्गे जयणाइ चेव परिसुद्धं । भंगेहिं सोलसविहं जं परिमुदं पसत्यं तु ॥ ९२ जम्माभयनिखमणचरणनाणुप्पया य निव्वाणे । दियलोअभवणमंदरनंदीसरभोमनगरेषु ॥ अट्ठावयमुजिने गयग्गपयर य धम्मचक्रे य । पासरहावत्तनगं चमरुपायं च वंदामि ॥ ३४० ३७५ ९३ गणियं निमित्त जुत्ती संदिट्ठी अवितहं इमं नाणं । इय एतमुवगया गुणपच्चइया इमे अत्था | गुणमाहप्पं इसिनामकित्तणं सुरनरिंदपूया य । पोराण वेश्याणि य इव पसा दंसणे होइ ॥ ટ ४१९ ९४ साहुमहंसाधम्मो सच्चमदत्तविरई य वंभं च । साहु परिग्गहविरई साहु तो वारसंगो य ॥ ९५ बेरग्गमप्यमाओ एगत्ता ( ग्गे) भावणा य परिसंगं । इय चरणमणुगयाओ भणिया इतो तवो बुच्छं ॥ ९६ किह मे हविजऽवंशो दिवसो ? किंवा पतवं काउं ? | को इह दब्बे जोगो खित्ते काले समयभावे ? ॥ ९७ भावयितव्यमनित्यत्व १ मशरणत्वं २ तथेकता ३ ऽस्यत्ये ४ अशुचित्वं ५ संसारः ६ कर्माधव ७ संवर ८ विधिश्व ॥ निर्जरण ९ लोकबिस्तर १० धर्मस्वाख्याततत्त्वचिन्ता च ११ | योषेः सुदुर्लभत्वं च १२ भावना द्वादश विशुद्धाः ॥ ४२० अणिच्चे पव रुप्पे भुयगस्स तहा (या) महासमुदे य । भा एए खलु अहिगारा अज्झयणमी वित्तीय ॥ ४२९ गः ९८ ९९ बिऊ नए धम्मपर्य अणुत्तरं, विणीयतण्हस्स मुणिस्स झायओ। समाहियस्सऽग्निसिहा व तेयसा, तवो य पन्ना य जसो य यह ॥ ४३० "आगम-संबंधी- साहित्य' श्रेणी [भाग-1] ~38~ Wha आचारांगस्य सूक्तानि ।।२६।। Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [सूत्रकृत स्थान+भगवतीसूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) श्री आगमीयसूक्तावली सूत्रकृतांगस्थानांगभगवतीनां सूक्तानि ॥२७॥ अथ सूत्रकृतांगसूक्तानि तप्पज्जायविणासो दुक्खुप्पामो य संकिलेसोय। र उचसग्गभीरुणो थीवसस्स णरएसु होज उववाओ। एस वहो जिणभणिओ बजेयव्यो पयत्तेणं ॥ (२६) एष महप्पा वीरो जयमाह तहा जपजाह॥ ८)/४ छठाणाई सयजीवाणं णो सुलभाई भवंति, सं०-माणुस्सए आ| २ अचिय हुभारियकम्मा नियमा उक्करसनिरयटितिगामी। भवे । आयरिए खित्ते जम्म२ सुकुले पच्चायाती३ केथलिग| तेऽपि जिणोवदेसेण तेणेव भवेण सिझति ॥ (३०२) पन्नत्तस्स धम्मस्स सवणता सुयस्स या सद्दहणता५ सदहितस्स वा पत्तितस्स वा रोइतस्स वा सम्मं कारणं अथ स्थानांगसूक्तानि फासणया ६। १ श्रीवीरं जिननार्थ नत्या स्थानाङ्गकतिपयपदानाम् । ५ आहारत्यागिनो हि ब्रह्मचर्य सुरक्षितं स्यादिति। (३६०) प्रायोऽन्यशास्त्रदृष्ट करोम्यहं विवरणं किञ्चित् ॥ (१), अथ भगवतीसूक्तानि २ स्याद्वादाय नमस्तस्मै, यं विना सकलाः क्रियाः। लोकद्वितयभाविन्यो, नैव साङ्गत्यमियूति ॥ (१३) १ ममं धम्मायरिप धम्मोवदेसए गोसाले मखलिपुत्ते नयास्तव स्यात्पदसत्त्वलाञ्छिता, रसोपविद्धा इव लोह- । । उत्पन्ननाणदसणधरे जाव सम्वन्नू सब्वदरिसी। धातवः। भवन्त्यभिप्रेतफला यतस्ततो, भवन्तमार्याः २ आजाषिया थरा गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स अंबकूणप्रणता हितैषिणः ॥ (१३) गपडावणटुयाए पगंतमंते संगारं कुब्वंति। (६८१) ३ पञ्चेन्द्रियाणि विविध वलेच, उच्चासनिःश्वासमधा- |३ गोसाले मंखलिपुत्ते अपणो मरणं आभोपडआजीग्यदायुः । प्राणा दर्शते भगवद्भिरुक्तास्तेषां वियोजीकरणं । विए थेरे सद्दावर आ०२ एवं पयासी-तुज्झे गं तु हिंसा ॥ देवाणुप्पिया! मम कालगयं जाणेत्ता सुरभिणा IRANAAAAAA% ॥२७॥ "आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~39~ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय सूक्तावली ॥२८॥ [ भाग-1] श्री आगमीय सूक्तावलि आदि आगमीय सूक्तावलि [भगवतीसुक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः आगमीय सूक्तावलि आदि (आगम-संबंधी - साहित्य) 15_5Five श्री आ ग डा भा गंधोदपणं हा सु० २ पम्हलसुकुमालाए गंधकासार गायाई हेह गा० २ सरसेणं गोसीसचंदणेणं गाया अणुलिंपह स० २ महरिहं हंसलक्खणं पडसाडगं नियंसेह मह० २ सव्वालंकारविभूतियं करेह स० २ पुरिससहस्वाहिणि सीयं दूरुह पुरि० सावत्थीर नयरीए सिंघाडगजाबपहेसु महया महया संदेणं उग्घोसेमाणा एवं वदह' एवं खलु देवाणुपिया! गोसाले मंखलिपुत्ते जिणे जिणप्पलावी जाव जिणसहं पगासेमाणे विहरिता इमीसे ओसप्पिणी चवीसाए तित्थयराणं चरित्रे तित्थयरे सिद्धे जाव सञ्चदुक्खपहीणे, दहिसकारसमुदपणं मम सरीरगस्स णीहरणं करेह, तर णं ते भाजीविषा थेरा गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स एयम विणणं पढिसुर्णेति । (६८२ ) ४ अनउत्थिया णं भंते! एवमाक्खति जाव परूवैति एवं खलु समणा पंडिया समणोवासया बालपंडिया जस्स र्ण एगपाणापयि दंडे अणिविखते से णं गतवालेत्ति यत्तव्यं सिया । ५. अन्नउत्थिया णं भंते! एवमाशक्वंति जाव परूति एवं खलु पाणातिवाए मुसावाए जाव मिच्छादंसणसले वट्टमाणस्स असे जीवे अने जीवाया पाणावाय वेरमणे जाय परिग्गहवेरमणे कोहविवेगे जाव मिच्छासणस विवेगेवमाणस्स अने जीवे भन्ने जीवाया। (७२३) ६ शरीरस्य प्राणातिपातादिषु वर्तमानस्य दृश्यत्वाच्छ रीरमेव तत्कर्तृ न पुनरात्मेत्येके । ७ अन्ये त्वादुः- जीवतीति जीवो-मारकादि पर्यायः जीवात्मा तु सर्वभेदानुगामि जीवद्रव्यं द्रव्यपर्याययोश्चान्यत्वं तथाविधप्रतिभासभेदनिबंधनत्वात् घटपटादिवत् तथाहि द्रव्यमनुगताकारां बुद्धिं जनयति, पर्यायास्वननुगताकाराम् । अम्ये स्वाहु:-अन्यो जीवोऽन्यश्च जीवात्मा जीव स्पेव स्वरूपः । (७२४) ९ अन्नउस्थिया णं भंते! एवमाइक्संति जाव परुषेतिएवं खलु केवली अक्खापसेणं आतिडे समाणे आहथ ८ "आगम-संबंधी- साहित्य' श्रेणी [भाग-1] ~40~ आ ग दा भा गः भगवत्याः सूक्तानि ||२८|| Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [भगवतीसूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) श्री आगमीय सूक्तावली भगवत्याः सूक्कानि दो भासाओ भासति, त०-मोसं वा सचामोसं वा । (७४९) १० अन्नउस्थिया जेणेच भगवं गोयमे तेणेव उवागच्छस्ति उवागच्छइत्ता भगवं गोयम एवं बयासी-तुझे णं अज्जो ! तिविहंतिबिहेणं असंजया जाव एगंतवाला यावि भवह, तए णं भगवं.गोयमे अन्नउथिए, एवं बयासी-से केणं कारणेणं अज्जो! अम्हे तिविहंतिविहेणं अस्संजया जाब पगंतवाला याविभवामो,तएणं ते अन्नउस्थिया भगवं गोयमं एवं बयासी-तुज्ने णं अज्जो !रीयं रीयमाणा पागे पेवेह अभिहणह जाव उचइवेह, तए णं तुझे पाणे पेच्चमाणा जाय उबद्दवेमाणा तिविहतिविहेणं जाव एगंतवाला यावि भवह, तए ण भगवं गोयमे ते अन्नउस्थिए एवं बयासी नो खलु अज्जो! अम्हे रीयं रीयमाणा पाणे पेच्वेमो जाच उबद्दबेमो, अम्हे णं अज्जो! रीयं रीयमाणा कायं च जोयं च रीयं च पडच्च दिस्सार पदिस्सार वयामो तप णं अम्हे विस्सा दिस्सा षयमाणा पदिस्सा पदिस्सा बयमाणा णो पाणे पेच्वेमो जाब णो उवहवेमो, तए णं अम्हे पाणे अपेच्चे माणा जाय अणोद्दवेमाणा तिविहंतिविहेणं जाच पगंतपंडिया यावि भवामो, तुज्झे णं अज्जो ! अप्पणा चेव तिविहंतिविहेणं जाब एगंतवाला यावि भवह, तए णं ते अन्न उत्थिया भगवं गोयर्म एवं व० केणं कारणेणं अजो! अम्हे तिविहंतिविहेणं जाव भवामो ?, तए णं भगवं गोयमे ते अन्नउस्थिए एवं व० तुझे णं अज्जो! रीयं रीयमाणा पागे पेच्चेह जाव उवद्दबेह, तपणं तुझे पाणे पेच्चेमाणा जाव उवद्दथे. माणा तिविहं जाव एगंतबाला यावि भवह, तए णं भगवं गोयमे ते अन्नउस्थिप एवं पडिहणइ पडिहणित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे लेणेव उवाग०२ समणं भगवं महावीरं बंदति नमसति बंदित्ताणच्चासत्ने ज़ाब पज्जुवासति, गोयमादि ! समणे भगवं महाधीरे भगवं गोयमं एवं वयासी-सुट्टणं तुमं गो! ते अन्नउत्थिए एवं ब०, साहु णं तुमं गोषमा ते! अन्नउत्थिए एवं व०, अस्थि णं गो० ममं बहवे अंतेवासी समणा निग्गंधा छउमत्था जे णं नो पभू पयं बागरणं “आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~41~ Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री. आगमीय - सूक्तावली ॥३०॥ [ भाग-1] श्री आगमीय सूक्तावलि - आदि आगमीय सुक्तावलि [भगवती+ज्ञाताधर्मकथासूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः आगमीय सूक्तावलि आदि (आगम-संबंधी - साहित्य) 45FARM to 5 आ द्धा र प्र भा गः बागरेचप जहा गं तुमं तं सुट्ट गं तुमं गो० ते अन्नउत्थि एवं वयासी साह णं तुमं गो० ते अन्नउत्थिर एवं बयासी । (ভ4) अथ ज्ञाताधर्मकथा सूक्तानि १ उग्गतवसंजमवओ पगिट्ठफलसाहगस्सवि जियस्स । धम्मविवि सुमाथि होइ माया अणत्थाय ॥ जह महिस्स महाबलभवमि तित्थयरनामवं धेऽवि । तयविसय थेवमाया जाया जुवदत्त उति ॥ (१५५) २ जह रयणदीवदेवी तह एत्थं अविरई महापावा जह लाहस्थी बर्णिया तह सहकाया इहं जीवा ॥ जह तेहिं भीरहिं विट्टो आघायमंडले पुरिसो । संसारदुक्खभीया पासंति तहेव धम्मकहं ॥ जह तेण तेसि कहिया देवी दुक्खाण कारणं घोरं । ततो किय नित्थारो सेलगजखाओ नन्नन्तो ॥ तह धम्मकही भयाण साहए दिदुअविरहसहावो । मयलदुहेभूओ विसया विरयंति जीदाणं ॥ सत्ताणं दुहत्ताणं सरणं मरणं जिदिपक्षतं । आणंदरूयनिव्वाणसाहणं तहय देसेइ ॥ जह तेसि तरिय समुद्दो सहेब संसारो। जह तेसि सहिगमणं निव्वाणगमो तहा पत्थं ॥ जह सेलगपिट्टाओ भट्टो देवी मोहियमईओ । सावयसहस्रंमि सायरे पाविओ निहणं ॥ तह अविर नडिओ चरणचुओ दुक्खसावयाइष्णे । निवड अपारससारसायरे दारुणसरुवे ॥ जह देवी अखोही पत्तो सट्टा जीवियसुहाई । तह चरण ठिओ साह अक्खोही जाइ निव्वाणं ॥ ३. चंदोव्ब कालपक्खे परिहाई पर पर पमायपरो । तह उग्धरविग्धरनिरंगणोवि न य इच्छियं लहर ॥ १७१ जह चंदो तह साह राहुवरोहो जहा तह पमायो । बण्णाई गुणगणो जह तहा खमाई समणधम्मो ॥ पुण्णोवि पइदिणं जह हायंतो सव्वहा ससी नस्ले । तह पुण्णचरितोऽवि हु कुसीलसंसग्गिमाईहिं ॥ १६९ माओ साहू हायंतो पइदिणं खमाईहिं । जाय नचरितो ततो दुक्खा पावे ॥ "आगम-संबंधी- साहित्य' श्रेणी [भाग-1] ~42~ 2223455 ho भा गः भगवती ज्ञाताधर्म कथयोः सूक्तानि ||३०|| Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [जाताधर्मकथासूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) श्री आगमीय सूक्तावली ज्ञाताधर्मकथायाः सूक्तानि तथा-हीणगुणो बिहु होउं सुहगुरुजोग्गाजणियसंवेगो। सयणबि कोरत सहिज सपि पडिकलं ॥ (१७२) पुण्णसरुवो जाया विवहमाणो ससहरोष्य ॥ (१७१)/५ मिच्छत्तमोहियमणा पावपसत्ताधि पाणिणो विगुणा । ४ जह दावद्दवतरुवणमेवं साहू जहेव दीविच्चा। फरिहोदगं व गुणिणो हवंति वरगुरुपसायाओ ॥ (१७७) वाया तह समणाइय सपखवयणाई दुसहाई ॥ |६ तिरियाणं बारितं निवारियं अह य तो पुणो तेसि । जह सामुद्दयवाया तहऽषणतित्थाइकठ्यपयणाई। सुब्बा बयाणपि हु महय्ययारोहणं समण ॥ कुसुमाइसंपया जह सिवमग्गाराहणा तह उ॥ न महब्वयसम्भावेवि चरणपरिणामसम्भवो तेसि । जह कुसुमाइविणासो सिवमग्गविराहणा तहा नेया। न बहुगुणाणंपि जओ .बलसंभूइपरिणामो॥ (१८३) जहदीवबाउजोगे वह इड्डी ईसि य अणि ही॥ ७ संपन्नगुणोवि जओ सुसाहुसंसग्गिय जिओ पाये। तह साहम्मियवयणाण सहमाणाऽऽराहणा भवे बहुया। पावर गुणपरिहाणीं दद्दरजीयो प्य मणियारो॥ इयराणमसहणे पुण सिवमग्गविराहणा थोवा ॥ तित्थयरवंदणथं चलिओ भावेण पाच ए सगं । जह जलहिबाउजोगे थेविट्टी बहुयरा यऽणिड्डी य॥ जह दद्दरदेवेणं पत्तं वेमाणियसुरतं ॥ (१८४) तह परपक्वक्त्रमणे. आराहणमीसि बहु-इयरं ॥ ८ जाय न दुक्ख पत्ता माणभंसं च पाणिणो पायं। जह उभयवाउबिरहे सव्या तरुसंपया विणट्ठति ॥ ताब न धम्म गेण्हंति भावओ तेयलीसुडम ॥ (१९२) अनिमित्तोभयमच्छररुवे विराहणा तह य॥ ९ चंपा इव मणुयगती धणो व्य भयवं जिणोदएकरसो। जह उभयवाउजोगे सव्वसमिट्टी वणस्स संजाया ॥ अहिछत्तानयरिसमं इह निव्याणं मुणेयव्यं । तह उभयचयणसहणे सिवमग्गाराहणा बुत्ता ॥ घोसणया इव तित्थंकरस्स सिवमग्गदेसणमहन्छ । ता पुग्नसमणधम्माराहणचित्तो सया महासत्तो। चरगाइणोव्य इत्थं सिवसुहकामा जिया वहवे ॥ ॥३१॥ “आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~43~ Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [जाताधर्मकथासूक्तानि] आगमी ज्ञाताधर्मकथायाः सूक्तानि सूक्तावली ॥३२॥ नंदिफलाह व इहं सिवपहपडिवण्णागाण विसया उ। | तह धम्मपरिभा अधम्मपत्ता इहं जीथा ॥ तभक्खणाओं मरणं जह तह विसएहि संसारो॥ । पार्वेति कम्मनरवश्वसया संसारवाहयालीए । तब्वजणेण जह इट्टपुरगमो विसयवजणेण तहा। आसप्पमद्दपहि व नेरदयाइहिं दुक्खाई॥ (२३४) परमानंदनिबंधणसिवपुरगमणं मुणेयव्यं ॥ (१९५) | १३ जह सो चिलाइपुतो सुंसुमगिद्धो अकजपडिबद्धो । १० सुबहुंपि तवकिले सो नियाणदोसेण दृसिओ संतो। धणपारद्धो पत्तो महाडवि बसणसयकलियं ॥ न सिवाय दोवतीए जह किल सुकुमालियाजम्मे ॥ (२२७) तह जीवो विसयसुहे लुद्धो काऊण पावकिरियाओ। ११ अमणुन्नमभत्तीय पत्ते दाणं भवे अणस्थाय । कम्मबसेणं पावर भवाडवीए महादुक्खं ॥ जह कड़यतुंबदाणं नागसिरिभवमि दोवइए ॥ (२२७)| घणसेट्टीविव गुरुणो पुत्ता इय साहवो भवो अडवी । १२ जह सो कालियदीयो अणुवमसोक्खो तहेव जाधम्मो । सुयमंस मिचाहारो रायगिह इह सिवं नेयं ॥ जह आसा तह साह वणियबऽणुकूलकारिजणा ॥ जह अडबिनयरनिस्थरणपावणत्थं तपहिं सुयमंसं। जह सद्दाइअगिद्धा पत्ता नो पासबंधणं आसा। भुत्तं तहेह साहू गुरुण आणाएँ आहारं ॥ तह विसएस अगिद्धा यजति न कम्मणा साह॥ भवलंधणसिवपावणहेउं भुजंति ण उण गेहीए । जह सच्छदविहारो आसाणं तहय इह घरगुणीणं । वण्णबलरुवहेउं च भावियप्पा महासत्ता ॥ (२४२) जरमरणाई विवज्जिय संपत्ताऽऽर्णदनिव्वाणं ॥ १४ वाससहस्संपि जई काऊणं संजमं सुविउलंपि । जह सद्दाइसु गिद्धा बद्धा आसा तहेव विसयरया । अंते किलिट्ठभावो न बिसुज्झह कंडरीउ व ॥ पावति कम्मबंध परमामुहकारणं घोरं ॥ अप्पेणवि कालेणं केइ जहागहियसीलसामण्णा। जह ते कालियदीवा णीया अन्नत्थ दुहगणं पत्ता । साहिति निययकजं पुंडरीयमहारिसिव जहा ॥ (२४६) ॥३२॥ पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) "आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~44~ Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय मुक्ताती ॥३३॥ [ भाग-1] श्री आगमीय सूक्तावलि आदि आगमीय सूक्तावलि [ प्रश्नव्याकरणसूक्तानि पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः आगमीय सूक्तावलि आदि (आगम-संबंधी - साहित्य) अथ प्रश्नव्याकरणसूक्तानि १ पंचविहो पण्णत्तो जिहिं इह भण्हओ अणादीओ। हिंसामोसमदत्तं अभपरिग्गहं चैव ॥ २ जारिसओ अंनामा जह य कओ जारिसं फलं देति । जेबि व करेंति पावा पाणवहं तं निसामेह ॥ ३ नवि किंचि अणुभायं पडिसिद्धं वादि जिणवरिंदेहिं । मोतुं मेहुणमेगं न जं मिणा रागदोसेहिं ॥ ४ हरिहर हिरण्यगर्भप्रमुखे भुवने न कोऽप्यसी सूरः । कुसुमविशिखस्य विशिखान् अस्खलयत् यो जिनादन्यः ॥ ५ सन्मार्गे तावदास्ते प्रभवति पुरुषस्तावदेवेन्द्रियाणां लजां तावद्विधत्ते विनयमपि समालम्बते तावदेव । चापाकृष्टमुक्ताः श्रवणपथजुषो नीलपक्ष्माण एते, यावलीलावतीनां न हृदि धृतिमुपो दृष्टिवाणाः पतन्ति ॥ ६ किं किं ण कुणइ किं किं न भासए चिंतपऽविथ न किं किं ? पुरसो विसयासत्तो विहलंघलिडब्ब मज्जेण ॥ ७. जो सेब किं लहई (धामं हारेर दुम्बलो होइ। (४) (४) (६५) पावेद बेमणसं दुक्खाणि अ अत्तदोसेणं ॥ ८ कृशः काणः खञ्जः श्रवणरहितः पुच्छविकलः, क्षुधाक्षामो जीर्णः पिठरककपालार्पितगलः । प्रणैः पूयक्तिनैः कृमिकुलचितैरावृततनुः, शुनीमन्वेति श्वा हतमपि च हत्येव मदनः ॥ ९ तिब्वकसाओ बहुमोहपरिणओ रागदोससंजुत्तो । बंध चरितमो दुदिप चरितगुणधाई ॥ १० अरिहंतसिचे अतवसुअगुरुसाडुसंघपडणीओ । बंधति दंसणमोहं अनंतसंसारिभो जेणं ॥ ११ संजइचउत्थभंगे चेइयदव्बे य पवयथुङ्गाहे । रिसिघार य चउथे मूलग्गी बोहिलाभस्स ॥ १२ नामाऽपि स्त्रीति संहादि, विकरोत्येव मानसम् । किं पुनर्दर्शनं तस्या, बिलासोल्लासितभ्रुवः १ ॥ १३ सवेऽनर्था विधीयन्ते नरैरर्थैकलाल सेः । अर्थस्तु प्रार्थ्यते प्रायः, प्रेयसी प्रेमकामिभिः ॥ १४ काम ! जानामि ते रूपं, सङ्कल्यात्किल जायसे । न त्वां सङ्कल्पयिष्यामि ततो मे न भविष्यसि ॥ (३६) "आगम-संबंधी- साहित्य' श्रेणी [भाग-1] ~45~ प्रश्नव्याक रणस्य श्री सूक्तानि आ ॥३३॥ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ भाग-1] श्री आगमीय सूक्तावलि आदि आगमीय सूक्तावलि [ प्रश्नव्याकरणसूक्तानि पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः आगमीय सूक्तावलि आदि ( आगम-संबंधी-साहित्य) श्री आगमीय - सूक्तावली आ ग ||३४|| १५ यच्चेह लोकेऽधपरे नराणामुत्पद्यते दुःखम सह्यवेगम् । विकाशनीलोत्पलचारुनेत्रा, मुक्त्वा स्त्रियस्तत्र न हेतुरन्यः ॥ १६ रसा पगामं न निसेवियच्या पायं रसा दित्तिकरा हवंति । दित्तं च कामा समभिवंति, दुमं जहा साउफलं तु पक्खी ॥ १७ प्रशान्तवाहि चित्तस्य, संभवन्त्यखिलाः क्रियाः । मैथुनव्यतिरेकिण्यो, यद्विरागं न मैथुनम् ॥ १८ दृश्यं वस्तु परं न पश्यति जगत्यन्धः पुरोऽवस्थित, रागान्धस्तु यदस्ति तत्परिहरन् यच्चारित तत्पश्यति । कुन्देन्दीवर पूर्णचन्द्रकलशश्रीमतापल्या नाशेप्याशुचिराशिषु प्रियतमागात्रेषु यम्मोदते ॥ १९. निकडकडकडप्पहारनिभिन्नजोगसन्नाहा । महरिसिजोहा जुवईण अंति सेवं विगयमोहा ॥ २० ये रामरावणादीनां सङ्ग्रामा प्रस्तमानवाः । भूयन्ते खीनिमित्तेन तेषु कामो निबन्धनम् ॥ २१ दुःखात्मकेषु विषयेषु सुखाभिमानः, सौख्यात्मकेषु निय मादिषु दुःखबुद्धिः । उत्कीर्णवर्णपद पक्तिरियान्यरूपा सारूप्यमेति विपरीतगतिप्रयोगात् ॥ २२ जइ गणी [जर मोणी जद मुंडी वकली तबस्सी वा । पत्थतो अ अभं भावि न रोयर मज्नं ॥ २३ तो पढियं तो गुणियं तो मुणियं तो य चेइओ अप्पा | आयडियपेलिया मंतिओऽवि जर न कुणइ अकजं ॥] (६७) आ २४ परदारानिवृत्तानामिहा की तिविडम्बना । परत्र दुर्गतिप्राप्तिदर्भाग्यं पण्डता तथा ॥ २५ रसे - तीमनाssरनालादी जाता रसजाः । २६ भीयाणवि सरणं पक्खीणपिष गमणं तिसियाणंपिय सलिलं खुहियापिव असणं समुज्झेव पोतयहणं चप्पयार्णव आसमपयं दुहडियाणं च ओस हिचल अब विसत्थगमणं । (९९) "आगम-संबंधी- साहित्य श्रेणी [भाग-1] २७ सत्येनानिच्छीतो, गाधं दत्तेऽम्बु सत्यतः । नासिनिति सत्येन सत्याद्वज्जूयते फणी ॥ २८ प्रियं सत्यं वाक्यं हरति हृदयं कस्य न जने ?, गिरं सत्य लोकः प्रतिपदमिशमर्थयति च सुराः सत्या द्वाक्याद्ददति मुदिताः कामिकफलमतः सत्याद्वाक्यातमभिमतं नास्ति भुवने ॥ (११५) ~46~ (८६) मो (९०) 22555555 ग डा र सं भा प्रश्नव्याक रणस्य सूक्तानि ॥३४॥ Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ भाग-1] श्री आगमीय सूक्तावलि - आदि आगमीय सूक्तावलि प्रश्नव्याकरण+प्रज्ञापना+जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिसूक्तानि ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः आगमीय सूक्तावलि आदि (आगम-संबंधी - साहित्य) श्री आगमीय सूक्तावली आ ।।३५।। 25FFFFWho ग खा भा २९ व्रतानां ब्रह्मचर्यं हि निर्दिएं गुरुकं व्रतम् तज्जन्यपुण्यसंभारसंयोगाद् गुरुरुच्यते ॥ ३० एकतश्चतुरो वेदाः, बह्मचर्यं च एकतः । एकतः सर्वपापानि मयं मांस व एकतः ॥ ३१ नवि किंचि अणुज्ञायं पडिसिद्धं वादि जिणवरिंदेहिं । मोतुं मेहुण भावं ण तं विणा रागदोसेहिं ॥ (१३३) ३२ देवदानवगंधा, जपखरक्खरसकिंनरा | भचारिं नर्मसंति, दुकरं जं करिंति ते ॥ ३३ दानामध्येऽभयदान मित्र प्रपरमिदं तत्र दानानिज्ञानधर्मोपग्रहाभयदान भेदात् त्रीणि ॥ (१३४) (१३५) ३४ कलाकलाकलितोऽपि कविरपि पण्डितोऽपि हि प्रकटितसर्वशास्त्रतस्वोऽपि हि वेदविशारदोऽपि हि । मुनिरपि वियति विततनानाद्भुतविभ्रमदशकोऽपि हि स्फुटमिह जगति तदपि न स कोऽपि हि यदि नाक्षाणि रक्षति ॥ अथ प्रज्ञापनाकानि १ जिनवचनामृतजलधिं वन्दे विन्दुमात्रमादाय । अभवन्नूनं सरया जन्मजराव्याधिपरिहीणाः ॥ २ प्रणमत गुरुपदपङ्कजमधरीकृत कामधेनु कल्पलतम् । यदुपास्तिवशाभिरुपममनुवते ब्रह्म तनुभाजः ॥ ३ जयति नमदमरमुकुटप्रतिविम्यच्छ प्रविहितबहुरूपः । उद्धर्तुमिव समस्तं विश्वं भवतो वीरः ॥ अथ जंबूद्वीपप्रज्ञतिसुक्तानि १ सर्वशोकोपदेशेन यः सस्थानामनुग्रहम् । करोति दुःखतप्तानां स प्राप्नोत्यचिराच्छिवम् ॥ २ सम्यग्भावपरिज्ञानाद्विरका भवतो जनाः । क्रियासका विप्रेन, गच्छन्ति परमां गतिम् ॥ ३ वैरं कृत्वा हि तत्फलविपाके पुमाननुशेते । "आगम-संबंधी- साहित्य' श्रेणी [भाग 1] (2) ४ सध्यपाणिगतमप्यपसव्यप्रापणावधि न देवविलम्बः । न भुवत्वनियमः किल लक्ष्म्यास्तद्विलम्बनविधौ न विवेकः ॥ (१३७) ५ अविलम्बितदानगुणात् समुज्ज्वलं मानवो यशो लभते । ~47~ (३) (१२३) प्रश्नव्याकर णप्रज्ञापना आ जंबूद्वीपग प्रज्ञप्तीनां मो सूक्तानि 25555 श्री दा अ ॥३५ ।। Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति+बृहत्कल्पसूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) श्रीआगमीय सूक्तावली जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिबृहत्कल्पयो सूक्तानि ॥३६॥ FFERHWAREEVGARHI प्रथम प्रकाशदानाद्विशदः पक्षोऽपरः कृष्णः ॥ (१८७)| मग्गप्पभावणाए जाधम्मकहा अतो पढमं ॥ १८१-१-११ ६ यत्तु लोकधीटीकाकृता उभययोगीतिपदं व्याख्यानयता |५जहणा(व्हा उत्तिण्णगो बहुअतरं रेणुयं छुभर अंगे। एतानि नक्षत्राण्यभपयोगीनि चन्द्रस्योत्तरेण दक्षिणेन च । सद्रवि उज्जममाणो तह अण्णाणी मलं चिणा॥ १८९-२-१५ युज्यन्ते, कदाचिनेदमप्युपयान्तीति, तच वक्ष्यमाणज्ये- | सज्झायं जाणतो पंचेंदियसंघुडो तिगुत्तो य। ठास्त्रेण सह विरोधीति न प्रमाणम् । ४९ होदय एकग्गमणो घिणपण समाहिमो साह॥ १९२-१-१४ | ७ आषाढायमपि प्रमर्दयोगिनक्षत्रगणमध्ये कथं नोक्तमिति ७ आयहियमजाणतो मुज्झर मूढो समादिभति कम। बदतो निरासः, अनयोदक्षिणदिग्योगविशिष्टप्रमर्दयोगस्य | कम्मेण तेण जंतू परिति भवसागरमणतं ॥ १९२-१-८ सम्भवादिति । ४९८ | ८ नाणेण सव्वभावा नजंते जे जहिं जिणक्खाया। अथ वृहत्कल्पसूक्तानि नाणी चरित्तगुत्तो भावेण उ संवरो होइ॥ १९२-२-३ प्रथमे खंडे ९ जहर सुयमोगाहर अइसयरसपसरसंजुयमपुवं । १प्रमाणानि प्रमाणस्थै, रक्षणीयानि यत्नतः । तहर पल्हाद मुणी नवरसंबेगसद्धाओ॥ १९२-२-५ विषीदन्ति प्रमाणानि, प्रमाणस्थविसंस्थुलैः ॥ १६६-२-१० | १० जाणाणत्ती पुणो देसणतवनियमसंजमे लिया । २ नच्चा नरवइणो सत्तसारबुद्धी परिकमविसेसे। । विहर विसुज्झमाणो जावजीबंपि निकंपो॥ १९२-२-१० भाषेण परिक्ोतं तेण तमन्ने परिहरंति ॥ १८६-१-१२ | ११ वारसविहम्मिवि तवे सम्भितरवाहिरे कुसलदिडे। ३ संसारदुक्खमहणो विबोहो भवियपुंडरीयाणं। | नवि अस्थि नवि अ होही सज्झायसमं तपोकम्मं ॥ १९२-२-१३ | धम्मो जिणपनत्तो पगपजाणा कहेयव्यो॥ १८८-१-३ | १२ जं अन्नाणीकम्मं सवेद पहुयाहिं वासकोडीहिं । ४ तित्थाणुसजणाए आयहियाए परं समुद्धरति। । तं नाणी तिहिं गुत्तो खवेद ऊसासमित्तेण ॥ १९३-९-४ SHREEV “आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~48-~ Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय - सूक्तावली ॥३७॥ [ भाग-1] श्री आगमीय सूक्तावलि आदि आगमीय सूक्तावलि [बृहत्कल्पसूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः आगमीय सूक्तावलि आदि (आगम-संबंधी - साहित्य) 22555th 5 १३ धम्मोदरण रूवं करेंति रूबस्सिणोवि जइ धम्मं । गिज्झबओ य सुरुवो पसंसिमो रूपमेवं तु ॥ (१९८-१-१) १४ वासोदगस्स व जहा बन्नादी होंति भायणविलेसा । सवसिंपि सभासं जिणभासा परिणमे एवं ॥ (१९८-१-१४) १५ जम्मणनिक्खमसु य तित्थयराणं महाणुभावाणं । इत्थ फिर जिणवराणं आगाढं दंसणं होई ॥ (२०२-२-७) २६ को नाम सारहीणं स होइ जो भहवाइणो दमए । डेविड जो आसे दमेव तं आसियं विति ॥ (२०९ - २५) १७ होंति हु पमायखलिया पुण्वन्भासा यदुच्चया भंते । २०९-२-८ १८ जेण उ आयाणेहिं न विणा कलुसान होइ उप्पत्ती तो तज्जयम्मि वसिमो कलुसजयं चैव इच्छतो ॥ (२११-२-९) १९ एगत्तभावणाए न कामभोगे गणे सरीरे वा । सजह बेगओ फासे अणुत्तरं करणं । (२१९-१-१०) २० खामितस्स गुणा खलु निस्सल्लय विषयदीवणा मग्गे । लाघवियं एग अप्पटिबंधो अ जिणकध्ये ॥ (२२१-१-५) २१ अनियता बसहीओ भ्रमरकुलाणं च गोकुलाणं च । समणाणं सउणाणं सारहआणं व मेहाणं ॥ ( २२५-२-४) २२ रयणगिरिसिहर सरिसे जंबूणयपवरवेइयाकलिए । मुन्ताजालगपयरगखिखिपि वरसोभितविडंगे ॥ वेरुलियपय रविदुमखंभसहस्सो बसोभियमुदारे । साहूण वसहिदाणा लभती प्यारिसे भवणे ॥ (२४५-२-१) आ २३ एयोसविमुकं कडजोगिं नायसीलमायारं । गुरुभत्तिमं विणीयं वैयावच्वं तु कारिजा ॥ ( २४९-२-८) २४ जीवो पमायबहुलो परिवक्वं दुकरं वेडं जे। केतियमित्त वोज्झिति पच्छित्तं दुग्गयरिणीव ॥ (२५८-१-८) २५ एगाणिस्स दोसा साणे इत्थी तहेब पडिणीए । भिक्ख ऽविसोहि महत्यय तम्हा सविइज्जयं गमणं ॥ (२६५-२-९) २६ दातुरुन्नतचित्तस्य गुणयुक्तस्य चार्थिनः । २७ दुर्लभः खलु संयोगः, सुबीजक्षेत्रयोरिव ॥ (२७३-१-१२) जाईकुलरूयधणवलसंपन्ना इडिमं तनिकता । जयणाजुत्ता व जई समेच्च तित्थं पभावंति ॥ २१९-२-६ २८ सोऊण जो गिलाणं उम्मग्गं गच्छ परिवहं बाबि । मग्गाओ वा मग्गं संकमई आजमाईणि ॥ २८८-१-३ २९ सोऊण जो गिलाणं पंथे गामे य मिखवेलाए । "आगम-संबंधी- साहित्य' श्रेणी [भाग-1] ~ 49~ 외서 의회의 의 भा, बृहत्कल्पस्य दुकान ॥३७॥ Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [बृहत्कल्पसूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) श्री बृहत्कल्पस्य सूक्तानि आगमीय- सूक्तावली ॥३८॥ REFERREEEV जह तुरियं नागच्छा संग्गा गुरुए चउम्मासे ॥ २८८-१-१०३८ न वो पत्थ पमाणं न तवस्सितं सुयं न परिआओ। श्री ३० जह भमरमयरिगणो निवतंती कुसुमियंमि चूयवणे । अविय खीणंमि वेदे थीलिंगं सव्यहा रक्खं ॥ (३१५-१-४) यहोर निघायच गेलण्णे फायचजणं ॥ २८८-१-१३ | ३९ सीहं पाले गुहा' अधिहाईतेण सा महिहीया । तस्स ३१ सोऊण ऊ गिलाणं जो उययारेण आगओ सुद्धो। पुण जोव्वर्णमि पओयणं किं गिरिगुहाए ? ॥ (३१६-१-१५) जो उ उबेहं जा लगद गुरुए स वित्थारे ॥ (२८८२-१३)| द्वितीये संडे३२ पडिचरा(रया मि गिलाण गेलपणे वावडाण वा काई। ४० न य सो भायो बिजर अदोसवं जो अभिययस्स ॥ (२-२-१) तिस्थाणुसजणा खलु भत्तीय कया हवइ एवं ॥ (२८८-२-१३) | ४१ जदया सहीणरयणे भवणे कासा पमायासेणं । ३३ वंधुजणविष्पओगे अमायपुत्तेवि वट्टमाणमि। तहवि | डझंति समादित्ते अपिच्छमाणस्सवि वसूणि ॥ गिलाणे सुविहिया वस्थंति वइत्तर्ण साह ॥ (३०३-२-१४)। इयं संदसणसंभासणेहि संदीविभो भयणपण्डी। A. ३४ सव्वजगजीवहियं साहुंन जहामु एस धम्मो मे । बंभादी गुणरयणे उज्झइऽणिच्छस्सवि पमाया ॥ (४-१-५) AL जति व जहागो साहुं जीवियसेत्तेण किं अम्ह ॥ (३०४-१-८) | ४२ पावस्स लोगे पटिहार पायो, कलाणकारिस्स य मा ३५ जर संजमो जइ तवो दढमित्तितं जप्तकारितं । साहुकारी॥ (११-१-१२) जर भं जा सोयं एपसु परं न अग्नेसु ॥ (३०४-२-१)|४३ वारियवामो बलियतरं वाहए मोहो॥ (१३-१-७) ३६ सच्चं तबो मसीलं अणहिक्खाओ अपगमेगस्स । ४४ मोहग्गिाहुइनिभाहिईयवायाहऽहियवायाहि । जा बंभ जइ सोयं एयासु परं न अन्नासु ॥ धंतपि घिइसमत्था चलंति किमु दुबलपिईआ॥ (१३-१-११) ३७ बाहिरजलपरिटढा सीलनुगन्धा तवोगुणविसुद्धा । ४५ संदसणेण पीई पीईओं रह रंड वीसभो। धन्नाण फुरनुपम्ना एया अवि होज अम्हंपि ॥ (३१३-१-२)| बीसंभाओ पणओ पंचविहं बहुए पेम्मं ॥ (१६-१५) ॥३८॥ "आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~50 Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय - सुक्तावल ||३९|| [ भाग-1] श्री आगमीय सूक्तावलि आदि आगमीय सूक्तावलि [बृहत्कल्पसूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः आगमीय सूक्तावलि आदि (आगम-संबंधी - साहित्य) भा (४६-२-२) ४६ अपि संदेह द कंपंति जा ल्याओ व अबलाओ पगहालंगाड रक्खा अओ इत्थी ॥ ( २३-२-५) ४७ जइभागगया मत्ता रागादरीणं तहा चओ कम्मे । रागाइविरयाविड पायं वत्थूण विहरते ॥ ४८ मोहोदरण जाता जीवितेवि इत्थी देहमि दिट्ठा दोसपविती किं पुण सजिए भवे देहे ॥ ४९ कम्मं चिति सबसा तस्सुदयंमि उ परम्सा होंति । रुपखं दुरुह सबसो विगलइ स परव्यसो तत्तो ॥ (६९-२- १०) ५० कम्मवसा खलु जीवा जीवबसाई कहिंचि कम्माई । (५९-२-७) कत्थई घणओ बलवं धारणिओ कत्थई वलवं ॥ (६९-२-१४) ५१ जो जस्स उ उवसामह विजझवणं तस्स सेण कायव्यं । जो उ उदेह कुजा आवज मासियं लहुयं ॥ (७१-२-२) ५२ परपत्तिया न किरिया मोपतुरठं च जयसु आयडे । अविय उहाबुत्ता गुणोषि दोसो हव एवं ॥ ( ७२-२-१४) ५३ आयडे उघडता मा य परमि बावडा होह । हंदि परट्ठाउता आयडविणासगा होह ॥ (७२-१-९) ५४ ताघो मेओ अयसो हाणी दंसणचरितनाजाणं । साहुओसो संसारवणो साहिकरणस्स ॥ (७३-१-८) ५५ जह कोहारविबुडी तह हाणी होइ चरणेवि ॥ ( ७३-२--४) ५६ साहूण पदोसेण य संसारं सोवि बढे । (७३-२-१०) श्री ५७ जं अज्जियं समीखहरहि तवनियमवंभ्रमइयहिं । आ (७४-२-१) तं दाणि पच्छनाहिसि छतो सागपतेहिं ॥ (७४-१-८) ५८ जं अजियं चरितं देणापवि पुव्यकोडीए । तंपि कसाइयमितो हारेर नरो मुद्दतेणं ॥ ५९ आरंभनियत्ताणं अकिणंताणं अकारविंताणं । धम्मट्ठा दायव्वं गिहीहि धम्मे कयमणाणं ॥ (८८-२-४) ६० पगईपेलवसत्ता लोभिज्जर जेण तेण वा इत्थी । अविय टु मोहो दिप्पइ सइरं तासि सरीरेसुं ॥ (९०-१-३) प्र ६१ जहवियफासुगदव्वं कुंथुपणगाइ तहवि दुप्पस्सा | पच्चक्खनाणिणोऽबिहु राईभत्तं परिहरति ॥ (९८-१-६) भा ६२ दोसे चैव विमग्गर गुणदेखि सेण निच्चमुज्जुत्ता । (१३९-१-१५) गः ६३ संपुष्णमेव तु भवे गणित्तं, जं कंद्रियाणं पविति कखं । (१४३-२-२) ६४ भीरू य किच्चेऽवला चला य, आसंकितेगा समणी "आगम-संबंधी- साहित्य श्रेणी [भाग-1] ~51~ द्वा बृहत्कल्पस्य सूक्तानि ॥३९॥ Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [बृहत्कल्पसूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) श्री आगमीयसूक्तावली ॥४०॥ तु रायो । मा पुष्पभूयस्स भये विणासो, सीलस्स थोवाण | बीएहि विष्पमुको उपस्सओ एरिसो होइ ॥ (१५७-१-५) बृहत्कल्पस्य ण देति गंतुं ॥ (१४६-१-२)/७१ जह सुत्ते भणियं तहेवजह तं वियालणा नस्थि IN सूक्कानि |६५ गुत्से गुत्तदुवारे कुलपुत्ते इत्थिमज्झनिहेसे। किं कालियाणुओगो दिलो दिट्रिप्पहाणेहिं ॥ (१५९-२-१०) भीतपरिसमहविए अजासिज्जायरे भणिए ॥ (१४६-१-६)/ ७२ उस्सग्गसुयं किंची किंची अवयाइयं भवे सुत्तं ।। मो६६ अपुष्वपुंसे अवि देहमाणी वारेसि धूतादि जहेव भज्ज।। तदुभयसुत्तं किंची सुत्तस्स गमा मुणेयव्या ॥ (१५९-२-१४) तहाऽवराहेसु मर्मपि पेकले जीवो पमादी किमुजोऽवलाणं ॥ |७३ कत्थर देसरगहणं कत्थवि भण्णति मिरवसेसाई । | ६७ पायं सकळोगहणाऽलसे य, युद्धी परस्थेसु उजागरू- उकमकमजुत्ताई कारणवसओ मिउत्ताई ॥ (१६०-२-११) का । तमाउरो परसति णेहकत्ता, दोसं उदासीणजणो ७४ उस्सग्गेण निसिहाई आई दव्याई संथरे मुणिणो। (१४७-१-१) कारणजाते जाते सचाणिवि ताणि कप्पंति ॥ (१६१-१-२) ६८ कुलं विणासह सर्व पयाता, नदीव कूलं कुलटा उ मारी॥ | ७५ णवि किंचि अणुण्णायं पढिसिद्ध धाधि जिणवरिंदेहिं । (१४९-२-३) एसा तेसिं आणा कज्जे सच्चेण होयध्वं (१६२-३-३) भा६९ न चित्तकम्मरस विखेसमंधो संजाणते णावि मियंककति। ७६ दोसा जेण निरुज्झंति, जेण खिज्जंति पुवकम्माई। गः किं पीढसप्पी कह दूतकम्मं, अंधो कहिं कत्था देसियत् ॥ सो सो मोक्खोवाओ, रोगावस्थासु समर्ण व ॥ (१६२-१-८) का बुद्धी बलंहीणवला वयंति किं सत्सजुत्तस्स करेग बुद्धी। ७७ अगीयस्सन कप्पति तिविहं जयणं तु सो न जाणाइ । किसे कही णेष सुता कयाई, वसुंधरेयं जह वीरऽभोज्जा ॥ अणुण्णवणाऐं जयर्ण सपक्सपरपक्खजयणं च ॥ (१६२-१-१५) (१५०-१-४)|७८ ण सको सुत्तत्थो णिउणो खलु अपडियोहिमो णाडं। . ७० चलया कोट्ठागारा हेवाभूमी य होद रमणिज्जा । ॥४०॥ "आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~52~ Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [बृहत्कल्पसूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) श्री बृहत्कल्पस्य सूक्तानि आगमीय सूक्तावली ॥४शा M ALA ७९ साहणं पसहीए रति महिला न कप्पए पंती। (१६७-२-१) सुद्धपरिणामजुत्तो तस्स उ अणहकमो पाली । (२०६-२-५) ८० जागरह नरा णिच्चं जागरमाणस्स पहुए बुद्धी । जो |८४ तेलोकदेवमहिया तिस्थयरा नीरया गया सिद्धिथेरावि सुपति न सो धण्णो जो जग्गति सोसया धष्णो (१६७-२-४) गया केई चरणगुणपभाषया धीरा ॥ बंभी य सुंदरी या सीयंति सुवंताणं अत्था पुरिसाण लोगसारत्था । | अनाविय जाउ लोगजिट्ठाओ । ताओ चिय कालगया तम्हा जागरमाणा विधुणध पोराणयं कम्मं ॥ सुवति किं पुण सेसाउ अजाओ ॥ नहु होइ सोइयब्यो जो सुवंतस्स सुत्तं संकितखलियं भवे पमत्तस्स । जागर- कालगतो दढो चरित्तंमि । सो होइ सोइयव्यो जो संजममाणस्म सुत्तं चिरपरिचितमप्पमत्तस्स ॥ जागरिया दुबलो विहरे । लण माणुसत्तं संजमसारं च दुल. धम्मीणं, अहम्मीणं च सुत्तया सेया। (१६७-२)/ भं जीवा । आणाइ पमाएर्ण दोग्गहभयवहणा होति । सुबह य अयगरभूओ सुयं च से नासई अमयभूयं । (२१०-१-२) होहिर गोण भूभो नटुंमि सुग अमयभूए ॥ (१६८-१-३)/८५ संतविभवा जद तय करेंति अबउज्झिऊण हीमोसीयंत८१ ज देउलादी उ निवेसणस्सा, मझमि गुत्तं सुपुरोहर्ड च।। थिरीकरणं तित्वविवड्डी य वणो य। (२१२-२-११) अदुद्दगम्म णय दुट्ठमझे, अदूरगेहं तहियं बसंति ॥ |८६ सोऊण ऊ गिलाणि पंथे गामे य भिक्खदेखाए । जुधाणगा जे सविगारगा य, पुत्तादओ तुज्झ रहं वसंति। । जा तुरियं नागच्छा लग्गा गुरुए चउम्मासे ॥ (२१४-१-२) मा तेऽवि अम्हं रह संवयंतु, इच्छंति सत्ते य वसंति तत्थ ॥ ८७ गयो निम्मद्दयता निरवेक्खो निहयो निरंतरया। (१८१-२-८) भूताणं तुबधाओ कसिणे चम्ममि छद्दोसा ॥ (२२३-२-२)|८ ८२ अभंतरं य बझं हरति रयं तेण होइ रयहरणं । (२०३-१-३)/ ८८ बिरतो पुण जो जाणं कुणति गीयत्थो व अध्यनयो वा। ८३ संजममहातडागरस जाणवेरगसुपडिपुषणस्स। | तत्थवि अज्झत्यसमा संजापति णिज्जरामचओ (२३३-१-५)14 BRRRRRAI ॥४१॥ "आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~53. Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [बृहत्कल्पसूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) श्री सूक्तानि आगमीयसूक्तावली ॥४२॥ ८९,संजमहेतु जोगो पउजमाणो उ भदोमबं हो। २८ जहा तबस्सी धुणते तबेणं. कर्म तहा जाण तयो-... जह आरोग्गनिमित्तं गंडच्छेदो ब विजस्स ॥ (२३५-३-२) णुमन्ता ॥ ९० लक्षणहीणो उबही उवहणतीणाणदंसणचरित्ते। (२३५-२-१२) ९९ यस्तं क्षुल्लक सारयति शिक्षा ग्राहयति उभयं च संधा ९१ जोषि दुवस्थ तिवत्थो पगेण अचेलगो व संथरह। | कायिकीलक्षणं तदीयं यो नयति तस्यैव पाश्च तं कुर्षन्ति । णते खिसंति पर सव्येणवि तिन्नि घेत्तवा । (२३९-२-१३) खा ९२ गिण्हति गुरुविदिपणे पगास पडिलेहणे सत्त ॥ (२५०-३-२) १०० यस्य खेलः स्यन्दते तस्य मध्येऽवकाशः समायातः | ९३ जो उगुणो दोसकरो न सो गुणो दोसमेव तं जाण। । ततस्तेन विमुक्तऽय अगुणोऽवि होति उगुणो चिपिच्छो सुंदरो जस्स ॥ | यः, यः पित्तलः स प्रवाले स्थातुमभिलपति, यस्तु वातदः (२४-१-५)| स निवाते, एतयोः परस्परं संस्तारकपरावर्तः (२९२-२-११) ९४ न भूसर्ण भूसयते सरीरं, विभूसणं सीलहिरीव इत्थी। तृतीये खडे गिरा हि संखारजुयाषि सन्ती अपेसला होइ असा- १०१ जह ते अणुट्ठिहता हियसव्यस्सा उ दुक्खमाभागी। हुवाइणी ॥ (२५५-२-१२)। ता नाणे आयरियं अणुट्टिहंताण बोच्छेदो ॥ (४-१-१०) ९५ उदओवि खलु पसत्थो तित्थकराहारउदयादी । (२७०-२-६) १०२ उठाणसेज्जासणमासणेहिं, गुरुस्स जे होंति सयाणुकूला। ९६ मूर्खजने प्रकृतिरेषा यद् तथाविधिज्ञानविकलोऽपि एष | जाउं विणीए अहते गुरू ऊ संगिण्हई देह य तेसि सुत्तं ॥ औद्धत्यमुबहति। पजायजाई सुतीय बुढा, जच्चवष्णिया सीससमिद्धिमंता ९७ दुवियहबुद्धिमलणं सहा सेजायरेयराणं च । कुवंतऽवणं अह ते गणाओ, निज्जूहई णो य ददाइ तित्थविवहिपभावण असारियं चेव कहयंते । (२९१-२-५)। सुत्तं ॥ (४-२-१) ॥४२॥ "आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~54~ Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [बृहत्कल्पसूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) बृहत्कल्पस्य सूक्तानि श्रीआगमीयसुक्तावली ॥४॥ १०३ परपक्षे य सपक्षे होइ अगम्मत्तणं च उहाणे । सुय- ! सो उ अगच्छो गच्छो संजमकामीण मोत्तव्यो। (७-१-६) पूयणा थिरतं पभावणा निजरा चेव ॥ (५-१-६)| १११ नाणादितिगं मोतुं कारणमिहलोगसाहर्ग होइ । अकारणा नथिह कजसिद्धी, न याणुवाएण वयंति पूयागारवहे णाणग्गहणेऽवि एमेव ॥ (१२-१-१) तपणा। उचाय कारणसंपउत्तो कजाणि साहेड |११२ सेडीअणट्ठिाणं कितिकम्मं वाहिराण भइयव्यं । पयत्तवं च ॥ सुत्तत्थजाणएणं कायव्वं आणुपुबीए॥ (१४-२-१) १०५ धम्मस्स मूलं विणयं वयंति, धम्मो य मूलं खलु १९३ निच्छयओ दुण्णेयं को भाये काम बट्टई समणो?। सोग्गईए । सा सोग्गई जत्थ अवाहयाऊ णिसवितब्बो बवहारओ य कीरइ जो पुन्य ठिओ चरित्तमि ॥ (१५-१-२) विणओ तदा ॥ (५-२-१)| ११४ ववहारोबिन बलवं जं छउमत्थंपि बंदए अरिहा । १०६ मंगल सद्धाजणणं पिरियायारोन हाविओ चेव । एएहिं | जा होइ अणाभिन्नो जाणतो धम्मयं एवं ॥ (१५-१-५) कारणेहिं अतरंतगिलाण उट्ठाणं (५-२-२)/११५ ते कित्तिया पएसा सव्यागासस्स मग्गणा होइ। १०७ आचार्य चंक्रमणं कुर्वाणं दृष्ट्वा नाभ्युत्तिष्ठति पंचक, ते जत्तिया पएसा अविभागतओ अर्णतगुणा ॥ (१५-१-५): प्रश्रवणभूम्या आगतं नाभ्युत्तिष्ठति भिनमासः॥ (६-१-६)| ११६ अच्छित्तिसंजमा पालंति जती जतिजणं तु । (१९-२-३) १०८ मणो उ वाया काओ य, तिबिहो जोगसंगहो । ते ११७ तुच्छमबलंवमाणो पडति निरालंबणो य दुग्गंमि ॥ (१९-२-१०) अजुत्तस्स दोसाय, जुत्तस्स उ गुणावहा ॥ (६-१-६) ११८ दसणनाणचरित्तं तवविणयं जत्थ जत्तियं पासे। १०९ जह गुत्तस्स रियाई न होंति दोसा तहेव समियस्स। | जिणपन्नत्तं भत्तीइ पूयए तं तहिं भावं ॥ (२३-१-३) गुतीट्ठियप्पमार्य संभइ समिई सचेस्स ॥ (६-२-१) | ११९ ठाणं च कालं च तहेव यत्) आसज्ज जे दोसकरे ११० जहि नस्थि सारणा वारणा य पदिचोयणा य गच्छंमि। | व ठाणे । तेणेव अण्णस्स अदोसवंते, भवंति रोगिस्स व ॥४३॥ "आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~55 Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय - सूक्तावली ॥४४॥ [ भाग-1] श्री आगमीय सूक्तावलि - आदि आगमीय सूक्तावलि [बृहत्कल्पसूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः आगमीय सूक्तावलि आदि (आगम-संबंधी - साहित्य) श्री आ ग दा भा गः भोसाई ॥ २४-२-७ किं जाणंति बराया हलं जहिताण जे उ पव्वइया । एवंविधो अवष्णो मा होहि सेण कथयति । २६-१-५ १२० जं इच्छसि अप्यणतो जं च न इच्छसि अप्पणतो । तं इच्छ परस्स वियारह, इत्तियगं जिणसासणयं ॥ २७-१-२ १२१ समारंभपरिग्गहनिक्यो सम्बभूयसमया य । एकग्गमणसमाहाणया य अह एत्तिओ मोक्खे ॥ (२७-१-४) १२२ सव्वभूय ऽप्यभूयस्स सम्मं भूयाई पासओ । पिहियासस्स दंतस पावं कम्मं न बंधर ॥ (२७-१-७) १२३ कयच्चा तच भयका विरागसंजुत्ता । जं कोकण मो वयं ॥ (२७-२-५) १२४ अपि ताव नेणं इष्ट परलोकेऽपहारिणामहियं । १२६ अणवजं निरुवहयं भुजंति य साहुणो भिक्खं ॥ ५२-१-९ १२७ अतिसेस देवतणिमित्तमादिवितहपवित्ति सोऊणं । परओ जालि किं पुण मण्णुव्यहरणेसु ॥ (३२-२-१) १२५ तरह धम्मं कार्ड मा हु पमायं खर्णपि कुवित्था । बहुविग्धो हु मुहतो मा अवरहं पढिच्छाहि ॥ णिग्गमण हो पुण्यं अणागते रुद्धवोच्छिष्णे ॥ ५४-१-१२) १२८ आराहणा उ कप्पे विराहणा होइ दप्येणं । ( ७२-१-१) १२९ कामं सव्यपदेसुवि उस्सग्गचवायता जुत्ता । मोतुं मेहुणभावं ण विणा सो रागदोसेहिं ॥ ( ७२-१-२) १३० गीयत्थो जयणाए कडजोगी कारणंमि निद्दोसो। ७२-१-११ १३१ तिव्वकसायपरिणतो तिव्वयरागाणि पावइ भयाणि । मयगस्स दंतभंजण सममरणं ढोकणुकिरणे ॥ ७८-१-७ १३२ अतिशयज्ञानी वा उपशान्तोऽयमिति मत्वा तस्यापि ( कषाय दुष्टस्यापि ) लिंगं दद्यात् । (७८-२-१) १३३ सम्धेहिवि घेतव्यं गहने व नियंतणे य जो उ बिही। भुंजती जयणार अजयणदोसा इमे हुति ॥ (७८-२-१) १३४ गुरुभत्तिमं जो हिययाणुकुलो, सो गिण्हती सिम गिरिसतो या तस्सेव सो गिन्हति जेयरेसिं, अलम्भमाणमिव थोवं थोवं ॥ ७९-१-१ (३८-२-८) | १३५ मुंचेश् य सावसेसं जाणइ उबयारभणियं च ॥ ( ७९-१-४) "आगम-संबंधी- साहित्य' श्रेणी [भाग-1] ~56~ 시의회의 의욕 भा बृहत्कल्पस्य सूक्तानि ॥४४॥ Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [बृहत्कल्पसूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) श्री आगमीयसूक्तावली बृहत्कल्पस्य सूक्तानि ॥४५॥ १३६ गुरुणो भत्तुवरियं बालादसती य मंडलिं जंति। पच्छा पडिकू लेणवि परलोगहिय? कायव्वा ॥ (बृहद्भाष्य) जं पुण सेसगहितं गिलाणमादीण तं देति ॥ (७९-३-७) (१२-२-५) १३७ परमवभापितलाभं मुक्वा स न मण्डल्या प्रक्षिष्यते, | १४५ संविग्गो महविओ अमुई अणुवत्तभो विसेसण्णू । किंतु ग्लानादीनामेव दीयते । (७९-१-११) उज्जुत्तमपरितंतो इच्छियमत्थं लहर साहू ॥ (९२.२-८) १३८ लिंगेण लिंगिणीए संपत्ति जो नियच्छद्र पावो। १४६ पुव्यावरसंजुत्तं रग्गकरं सततमविरुद्धं। सयजिणाणजाओ संघो आसाइओ तेणं ॥ (७९-२-७) पोराणमदमागहभासानिययं हवद सुत्तं (१०३-१-३) १३९ पाषाणं पावयरो दिट्ठिभासे न बद्दई कार्ड । १४७ इहरा व ताव थम्भइ अविणीओ लंभिओ किमु सुपणं?। जो जिण पुंगवमुई नमिऊण तमेव धरिसेइ ॥ (७९-२-११) मा नट्ठो नासिहिती खए व खारोबसेओ उ ॥ (१०५-१-५) १४० संसारमणवयम्गं जाति जरामरणवेवणापडरं। १४८ विणयाहीया विजा देइ फलं इह परे लोगमि । पाबपडलमलंगणा भमंति मुद्दाधरिसणेणं ॥ (७९-२-१२) नय फलद रिणयहीणा सस्साणिव तोयहीणाई ॥ (१०५-१-७) १४१ आणादणंतसंसारियत्त वोहीय दुल्लमत्तं च । | १४९ अतबो न होइ जोगो न य फलए इच्छियं फलं विजा । साहम्मियते पांमी पमत्तछलणाऽहिगरणं च ॥ (८८-२-१३)| अवि फलति विउलमगुणं साहणहीणा जहा विजा ॥ १४२ बिणयस्स उगाहणया कपणामोडगखडुचवेडाहिं ।। (१०५-२-२) सावक्स हत्थताल दलाति मम्माणि फेडितो ॥ (१२-१-३) | १५० ज तेहि अभिग्राहियं आमरणंताए तं न मुंचंति । १४३ कामं परपरितायो असायहेऊ जिणेहि पण्णत्तो। आय सम्मत्तंपि न लग्गति तेसि कत्तो उचरणगुणा ॥ (१०९-२-२) परहितकरो खलु इच्छिजा दुस्सले स पुण ॥ (१२-१-१०) | १५१ मोक्खपसाहणहेऊ णाणाई तप्पसाहणो देहो। १४४ इय भवरोगत्तस्सवि अणुकूलेणं तु सारणा पुब्धि। | देहट्ठा आहारो तेण तु कालो अणुण्णाओ ॥ (१११-१-१) ॥४ ॥ “आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~57 Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [बृहत्कल्पसूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) श्री आगमीयसूक्तावली बृहत्कल्पस्य सूक्कानि ॥४६॥ १५२ काले उ अणुण्णाए जावि हु लग्गिज तेहि दोसेहि। | १५९ दोसा हु अणुवसंते न मुज्झई तस्स सामाइयं ॥ (१५९-१-१५) मुखोऽवुवादितो लग्गति उ विषजयपरेणं ॥ (११७-१-१४) १६० नाणस्स होर भागी थिरयरओ दंसणे चरित्ते य । १५३ कालसरीरावेक्वं जगरसभावं जिणा वियाणित्ता। | धन्ना आवकहाए गुरुकुलवासं न मुंचंति ॥ (१७२-१-१५) तह तह दिसति धम्म खिजति कर्म जहा अखिलं ॥ १६१ भी(गी)यावासो र्य धम्मे, अणाययणवजणा। (१२८-१-८) निग्गहो य कसायाणं, एयं धीराण सासणं ॥ (१७२-२-३) १५४ भाचार्य उपाध्यायो वा तस्य स्वगणे सूत्रार्थविषये |१६२ जइमं साहुसंसगि म वि मोक्खसि विमोक्खसि । विस्मृते गच्छान्तरे संक्रमणं। (१२८-२-१) उज्जतो व तवे निच्चं तओऽवाहो न होहिसि ॥ १५५ पहिलेहि विभतुभट्टण निक्खिचभादाण विणय सज्झाए। | १६३ सच्छंदवत्तिया जेहिं, सरगुणेहि जढा जढा । अप्पणो से आलोग ठवण भत्तट्टभासपडलसेजराईसु ॥ गच्छसी- | परेसिं च, निच्च सुविहिया हिया ॥ जेसिं चायं गणे वासो, दनस्थानानि ॥ (१४०-२-१०)। सजाणाणुमओ मो। दुहा याऽऽराहियं सेहि, निचिकप्प१५६ जो जेण जंमि ठाणमि ठावियो दसणे व चरणे या। सुहं सुहं ॥ नवधम्मस्स हि पागण, धम्मे न रमती मती । सो तं चुभं तो तंमि चेव काउं भवे निरिणो ॥ (१४४-१-८) वहए सोऽवि संजुत्तो, गोरिवाऽविधुरं धुरं ॥ एगागि१५५७ सब्वेवि मरणधम्मा संसारी तेण कासि मा सोगं। | स्स हि चित्ताइ, विचित्ताई खणे खणे । उप्पज्जति वयंते जं चऽप्पणोऽवि होहिति किं तत्थ भयं परगयंमि?॥ | य, वसेवं सजंणे अणे ॥ (१४७-१-१३)/१६४ वसिजा बंभचेरसि भुज्जमाणी उकादि उ । तहावि तं BAI १५८ अबिओसियंमि लहुगा मिक्ल बियारे य वसहि गामे य। न पूइंति, थेरा अयसभीरुणो । तिव्यामिग्गहसंजुत्ता, गणसंकमणे भण्णति इहंपि तत्थेव वशाहि ॥ (१५४-१-८)। थाणमोणासणे रया । जहा सुझंति जयओ, पगाणेग ॥४६॥ "आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~58~ Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [बृहत्कल्पसूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) सूक्तानि आगमीयसूक्तावली ॥४७॥ विहारिणो ॥ लज्जं बंभ च तिथं च, रक्खंतीउ | १७० आलोएंतो वञ्चति धूभादीणि व कहेति वा धम्म । तवोरता । गच्छे चेव विसुझंती, तहा अणसणादिहिं॥ | परियट्टणाणुयेहण न यावि पंथंमि उपउत्तो॥ (चक्षुलोलः) जोवि दहिंधणो हुजा, इथिचिंधो हु केवली । वसते (२४८-१-१४) सोवि गच्छंमी, किमु त्थीवेदसिंधणा? ॥ अलायं घट्टियं १७१ इहपरलोयनिमित्तं अवि तित्थकरत्तचरमदेहत्तं । झाइ, फुफुगा हसहसायइ । कोवितो बहुती वाही, अणिदाणत्तं पसत्यं तु ॥ (२४८-२-१२) इत्थीवेपऽवि सो ममो ॥ _ (२००-२-१२) १७२ जा सालंबणसेवा तं वीयपयं वयंति गीयत्था। १६५ खामियवोसबियाई अहिगरणाई तु जे उईरती । आलं वणरहियं पुण निसेवणं दप्पियं बैंति ॥ (२५०-१-४) ते पावा णायचा तेसि व पावणा इणमो ॥ (२२२-१-८) १७३ संग अणिच्छमाणो इहपरलोए यमुच्चति अवस्सं ॥ १६६ रागहोसाणुगया जीवा कम्मस्स बंधगा होति। . .(२५०-२-८) रागादिविसेसेण य बंधबिसेसोवि अविगीओ ॥ (२३५-३-३) १७४ छण्हं जीवनिकायार्ण, अप्पज्झो उ बिराहओ। १६७ जो पिल्लिओ परेणं हेऊ वसणस्स होइ कायाणं । ___आलोइयपडिकंतो मूलच्छेज्जं तु कारए ॥ (२५८-१-११) तत्थ न दोसं इच्छसि लोगेण समं तहा तं च ॥ (२३५-२-३)| १७५ अप्पच्छित्ते य पच्छित्तं, पच्छित्ते अश्मत्तया । १६८ बिसस्स विसमेवेह ओसहं अग्गिमग्गिणो। धम्मस्साऽऽसायणा तिब्वा, मग्गस्स य विराहणा ॥ मंतस्स पडिमंतो उ, दुज्जणस्स विवजणं ॥ (२४०-१-१४) उस्सुत्तं च ववहरंतो, कम्मं बंधइ चिक्कणं । संसार १६९ य उपशमनालन्धिमान् तेनोपशमितव्यः कलहः, नोपेक्षा च पवती मोहणिज्जं च कुव्वती ॥ उम्मग्गदेसणाए विधेया (अन्यथा) स्वशक्तः नष्फल्यमुपेक्षानिमित्ता य, मग्गं विप्पडिवायए । परं मोहेण रजिते, महामोहं प्रायश्चित्तापात्तिश्च। (२४०-२-१५)। पकुवति । (२५८-२) ॥४७॥ "आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~59~ Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [बृहत्कल्प+व्यवहारसूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) बृहत्कल्प श्रीआगमीयसूक्तावली ॥४८॥ व्यवहारयोः सूक्तानि | १७६ जति दोसो त छिंदति असति दोसंमि णिज्जरं कुणति । । वन्तः आयुक्ता उपयुक्ता हिण्डंति-वाचनां च मुक्त्वा कुसलतिपिच्छरसायणमुषणीयमिदं पडिकमणं ।। (२५९-१-४) नास्त्यन्या परस्परं संकथा, चत्वारोऽनुपारिहारिकाः १७७ एवं ठियंमि मेरै अट्टियकप्पे य जो पमादेति । एकश्च कल्पस्थितस्तेषां पश्चानामप्येक एव संभोगः, सो वट्टति पासत्थे ठाणंमि तग विवज्जेजा ॥ (२६०-१-९)] यस्तु कल्पस्थितः स स्वयं न हिण्डते तस्य योग्यं भक्तसरिकप्पे सरिछंदे तुल्लचरिते विसिट्टतरए वा। पानमनुपारिहारिका आनयन्ति | साहहि संथवं कुम्जा नाणीहिं चरित्तगुत्तेहिं ॥ मध्यम अथ व्यवहारसूक्तानि तीर्थकृतां महाविदेहेषु च तीर्थषु नास्ति परिहार कल्पस्थितिः (२६१-१-११) तृतीयोद्देशके सं १७८ यावद्भिः पारिहारिकगण ऊनस्तावत्साधन उपसंप १ जाया पितिवसा नारी, दत्ता नारी पतीवसा । दर्थमागतानां मध्याद्गृहीत्वा गणः पूर्यते, ये शेषाः | बिहवा पुत्तबसानारी, नस्थि नारी सयंवसा॥ (३०४-१-४) ते पारिहारिकतपस्तुलनां कुर्वन्तस्तिष्ठन्ति, ते च |२ जायं पिय रक्खंती मात पिय सामु देवरा दिगणं । पारिहारिक साधं तिष्ठन्तोऽपि अविरुद्धाः ॥ (२६३-१-९)| पिति भाय पुत्त विहवं गुरु गणिणी य एवं अपि ॥ या एगाणि १८० यदि नव जनाः पूर्णाः ततः पृथग गणो भवति, अथापूर्णा- या य पुरिसा सकवार्ड घर परं तु नो पबिसे ॥ (३०४-१-९) स्ततः प्रतीक्षाप्यन्ते यावदन्ये उपसंपदर्थमागच्छति। ३ आयारे य९तो आयारपरूवणे असंकेओ। (२१३-१-१३)| भायारपरिष्भट्ठो सुद्धचरणदेसणे भइओ (३१४-१-१४) १८१ अनुपरिहारिकाः पारिहारिकाणां भिक्षादौ पर्यटतां | संघो गुणाण पाओ संघो य विमोयगो य कम्माणं । गोपालाइव "यो पृष्ठतः स्थिता नित्यमुक्ताःप्रयत्न- । रागहोसबिमुक्को होइ समो सयजीवाणं ।। (३१५-२-५) ॥४८॥ “आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~60~ Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [व्यवहारसूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) आगमीयसूक्तावली ॥४९॥ व्यवहारस्य सूक्तानि आगमीयसुभाषितानि मो या ५ परीणामियबुद्धीए उचवेओ होइ समणसंघाओ। ___ अणणाएँ जिणिदाणं जे ववहारं ववहरंति ॥ (३१७-१-१०) ____कजे निच्छयकारी सुपरिच्छिय कारगो संघो॥ (३१४-२-९)/१५ गते उ कजाकारी तगराए आसि तम्मि उ जुगम्मि। ६ आसासो वीसासो सीयघरसमो य होइ मा भाहि। जेहिं कया ववहारा अक्खोभा अन्नरज्जेसु ॥ ३१७-१-१५ अम्मापिलिसामाणो संघो सरणं तु सब्बेसि ॥ (३१५-१६)/१५ परिवार इहि धम्मकह वादि खमगे तहेवऽहमिहि । ७ सीसो पहिच्छओ वा कुल गण संघो न सोग्गति नेति । | विजा रायणियाए गारवा इत्ति भट्ठहा होइ॥ (३१८-२-३) जे सचकरणजोगा ते संसारं विमोएंति ॥ (३१५-१-१४)/१६ न हु गारवेण सका ववहरिलं संघमज्झयारम्मि । ४ सीसो पडिच्छतो था आयरिओ वा न सोग्गई नेय। | नासेड अगीयस्थो अप्पाणं चेव कजं तु॥ (३११-१-३) जे साधकरणजागात संसारा विमापति। (३१५-१-१) इत्यागमीयसूक्तानि ९ पिहिसंघाय जहिउं संयमसंघायगं उबगो णं। ___णाणचरणसंघायं संघायं तो हबद संघो। (३१५-२-७) 4 ---x---x---x---x --- १० नाणचरणसंघायं रागहोसेहिं जो विसंघाए। ___ अबुहो गिहिसंघायंमि अप्पाणं मेलिओन से संघो (३१५-२-७) ११ णाणचरणसंघायं रागहोसेहिं जो विकिसुए। सो भमिही संसारे चउरंगगतं अणवदग्गं ॥ (३१५-२-७) १२ तुक्षेण लहइ बोहिं बुद्धोबि य न लभते चरितं तु । उम्मग्गदेसणाए तित्थंकरासायणाए ये॥ (३१५-२) १३ इहलोए य अकित्ती परलोए दुग्गई धुवा तेसि । ॥४९॥ “आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~61 Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ~62 ~ Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि । आगमीय सुभाषित-वाक्यानि पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) आगमीय सुभाषित-वाक्यानि 44. अथागमीयसुभाषितवाक्यानि १सुधोतं शुद्ध निर्मलं जलानुगतं। विशे० ५७३) २ कि? 'विघ्नः' अन्तरायो निर्धातादिभिर्जायते ?, आदि शम्दाहिग्दाहादिपरिग्रहः, 'तस्य' इन्द्रस्य परमेश्वर्ययुक्तत्वेन विघ्नानुपपत्तेरिति भावना, अथ वर्षति ऋतुसमये गर्भसवात इति वाक्यशेषः। (द०-६६) ३ अशक्यप्रत्युपकाराम भगवन्तो धर्माचार्याः (ठा०-११७) ५ जलेसाई दबाई परियाइत्ता कालं करेइ तल्लेसेसु उपबजा। (भ०-१८८) ॥४९॥ ५ प्रणिपतितवत्सलाः प्रणम्रजनहितकारिणः खलु उत्तमपुरुषाः। (जं० २४७) ---x---x---x---x "आगम-संबंधी-साहित्य' श्रेणी [भाग-1] ~63~ Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३] आगमीय संग्रह-श्लोका: ~64~ Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय - [ भाग-1] श्री आगमीय सूक्तावलि आदि आगमीय संग्रह-श्लोकाः पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः आगमीय सूक्तावलि आदि (आगम-संबंधी - साहित्य) सूक्तावली आ ग ॥५०॥ दा भा गः अथागमयसंग्रह श्लोकाः १ २ पिंडे उग्गमडप्पायनेसणा [सं] जोयणा पमाणं च । इंगाल धूम कारण अट्ठविहा पिंडनिज्जुन्ती | (पि० १-१०) उभयमुहं रासिदुगं हिद्विलाणंतरेण भय पढमं । लहरासिविभन्ते तस्सुवरि गुणिन्तु संजोगा । (पि०२१-२२) ३ पयसमदुगअभासे माणं भंगाण तेसिमा रयणा । पतरियं लघुगुरुदुगुणा डुगुणा य वामेसु ॥ (पि० १५३-२० ) ४ उपक्रमोऽथ निक्षेषोऽनुगमश्च नयाः क्रमात् द्वाराण्येतानि भिद्यन्ते द्वेधा त्रेधा द्विधा द्विधा ॥ ' उपक्रम उपकान्तिर्दुरस्थनिकटक्रिया । निक्षेपणं तु निक्षेपो, नामादिन्यसनात्मकः ॥ सूत्रस्यानुगतिश्चित्राऽनुगमो नयनं नयः । अनन्तधर्मणोऽर्थस्यैकांशेनेति निरुक्तयः ॥ न्यासदेशागतं शास्त्रं न्यस्यते न्यस्तमेव तत् । अम्बीयतेऽन्विते नीतिस्तेनैतेषामयं क्रमः ॥ ( उत० ११-५) ५ शुद्धं द्रव्यं समाश्रित्य सङ्ग्रहस्तदशुद्धितः । नैगमव्यवहारौ स्तः, शेषाः पर्यायमाश्रिताः ॥ अन्यदेव हि सामान्यमभिन्नशानकारणम् । विशेषोऽप्यम्यमेवेति मन्यते नैगमो नयः ॥ सद्रूपतानतिक्रान्तस्वस्वभावमिदं जगत् । सत्तारूपतया सर्व सहन् सग्रहो मतः ॥ व्यवहारस्तु तामेव प्रतिवस्तुव्यवस्थिताम् । तथैव दृश्यमाणत्वाद्, व्यवहारयति देहिनः ॥ तत्रर्जुनीतिः स्यात्, शुद्धपर्यायसंस्थिता । नश्वरस्यैव भावस्य भावात्स्थितिवियोगतः ॥ अतीतानागताकारकालसंस्पर्शवर्जितम् । वर्त्तमानतया सर्वमृजुसूत्रेण सूयते ॥ विरोधिलिङ्गसण्यादिभेदाद्भिन्नस्वभावताम् । तस्यैव मन्यमानोऽयं शब्दः प्रत्यवतिष्ठते ॥ तथाविधस्य तस्यापि वस्तुनः क्षणवृत्तिनः । बूते समभिरुद्धस्तु संज्ञामेदेन भिन्नताम् ॥ "आगम-संबंधी - साहित्य" श्रेणी भाग-1] ~65~ 5555 आ ग भा गः आगमीय - सुभाषितानि संग्रहश्लोकाच ॥५०॥ Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सक्तावलि-आदि आगमीय संग्रह-श्लोका: पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) श्री ला आगमीय आगमीय संग्रह सूक्तावला श्लोकाः ॥५१॥ FEENAEEVावाखा एकस्यापि स्वर्वाच्यं, सदा तन्नोपद्यते। अणहए तवे चेब, वोदाणे अकिरिया सिद्धी (१४१-१) क्रियाभेदेन भिन्नत्वादेवभूतोऽभिमन्यते ॥ (ठा० ३९३-४)/१४ किमियं रायगिहंति य उझोए अंधयार समए य । ६ दुक्खाउए उदिने आहारे कम्मवन्नलेस्सा य । पासंतिवासिपुच्छा रातिदिय देवलोगा य ॥ (२४८-१४) समवेयणसमकिरिया समाउए थेव पोखब्वा ॥ (म०४१-४)/१५ मह वेदणे य वत्थे कद्दमखंजणमए य अहिगरणी। ७ आहाराईसु समा कम्मे बन्ने तहेव लेसाए । तणहत्ये य कवल्ले करण महावेदणा जीवा ॥ (२५२-१५) विषणाए किरियाए भाउयउववत्तिचउभंगी। (४३-१)|१६ तमुकाए कप्पपणए अगणी पुढवी य अगणिपुढवीसु । ८ कडचिया उबचिया उद्दीरिया देदिया य निजिन्ना। आऊतेऊवणसह कप्पुवरिमकण्हराईसु ॥ (भ० २७९-२) आदितिए चउमेदा तियभेदा पच्छिमा तिन्नि ॥ (५३-१०)|१७ संविनिष्ठेव सर्वाऽपि, विषयाणां व्यवस्थितिः । संवेदनं ९ तइएण उदीरेंति उवसामेति य पुणोवि बीएणं। च नामादिविकलं नानुभूयते ॥तथाहि-घटोऽयमिति नामवेइंति निजरंति य पढमचउत्थेहि सब्वेऽवि ॥ (५९-१३)। तत्, पृथुचुघ्नादि चाकृतिः। मृद्रव्यं भवनं भावो, घटे १० कर पयडी कह बंधा काहि व ठाणेहि बंधई पयडी। दएं चतुष्टयम् ॥ तत्रापि नाम नाकारमाकारो नाम नो कर वेदेइ य पयडी अणुभागो कइबिहो कस्स ! (६३-१) विना ती विना नाम नान्योऽन्यमुत्तरावपि संस्थिती॥ ११ पुढवि ट्ठिति ओगाहण सरीर संघयणमेव संठाणे। मयूराण्डरसे यद्वदर्णा नीलादयः स्थिताः। लस्सा दिट्ठी णाणे जोगुवओगे य दस ठाणा॥ (६८-४) सर्वेऽप्यन्योऽन्यमुन्मिश्रास्तद्वन्नामादयो घटे । (जं०१३-१) १२ वेयण कसायर मरणे३ वेउवियट तेयए५ य आहारे । इत्यागमीयसंग्रहश्लोकाः केवलिए. चेव भवे जीवमणुस्साण सत्तेच ॥ (१२९-२३) १३ सवणे णाणे य विपणाणे, पच्चक्खाणे य संजमे । इत्यागमीयमुक्तावलिश्सुभाषितरसंग्रहश्लोकाः३ ---x---x---x---x --- "आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] 466~ Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ~67 ~ Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४] आगमीय लोकोक्तयः ~68~ Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सक्तावलि-आदि आगमीय लोकोक्तय: [नन्दी+अनुयोग+आवश्यक-लोकोक्तय:] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) नन्द्यनुयोश्री/गद्वारावआश्यकानां ग लोकोक्तयः अधागमीयलोकोक्तयः आगमीयअथ नन्दीलोकोक्तयः तत्किमपीदं भवद्भिः कृतं यद्भयन्त एव । मणसा देवाणं वायाए पत्थियाणं । . (६३-१४) लोकोक्ती कुर्वन्ति नान्यः कश्चिदिति । (२१८-१०) अहिंसाव्यवस्थितः तपस्वी । (४७-१) ओसीसए सप्पो जोयणसए विजो कि लोके च पूर्वोक्तावस्थासु सर्वत्र प्रस्थकगापात्रमायान्ति सम्पदः । (८१-१४) करेहिति । (६४-११) ॥५२॥ व्यवहारो दृश्यतेऽतो व्यवहारनयोऽप्येवमोहस्ती हस्तिना प्रेर्यते । (१५०-२). मेव प्रतिपद्यत इति भावः । (२२३-२४) पि ते जीएणं एगपि तिलं न खामि । शानं प्रत्ययसारम् । (१६०-९) लोकेऽप्येव व्यवहतिदृश्यते, यथा कश्चि| हन्यतामेष दण्डेनाश्वः । (१६३-१८) दाह-मदीयदासेन खरः क्रीतः, तत्र जो करे सो पसंसिजद सव्वो(यो) कस्यापि दुरे शब्दः । (१७२-४) दासोऽपि मदीयः खरोऽपि मदीयः, लोगवयहारोत्ति । (११८-७) दूरे शब्दः श्रूयते । ( ९) दासस्य मदीयत्वात् तत्क्रीतः खरोऽपि गया करेर दडं । (१२७-१७) न वयं प्रत्यासन्ना अपि त्वदीयं वचः शृणुमदीय इत्यर्थः । (२३६-२) जितो भवान् (कषायैः) वर्धते भयम् मः पवनस्य प्रतिकूलमवस्थानात् । आकण्ठपूरिता अपि हि लोकरुया भूता (तेभ्यः )। (१५७-१६) - (१७२-१४) उच्यन्ते । (२३६-२९) अग्निकुमारा वदनः खलु अझिं प्रक्षिप्तअधानुयोगद्वारलोकोक्तयः चन्तः, तत एव निवन्धनालोके 'अग्निमुखा भभाषक एवाय द्रव्योऽसारवचनत्यात् अथावश्यकलोकोक्तयः वै देवाः' इति प्रसिद्धम् । (१६९-६) (१५३-१) नथा च लोके वक्तारो भयन्ति-अमुच मे श्रायका देयान अतिशयभक्त्या याचिप्रस्थकादिरय पुञ्जीकृतस्तिष्ठति । (१५३-१६ | गते मनः इति । (१३-९) । नयन्तः देवा अपि तेषां प्रचुरत्वात् महता ॥५२॥ "आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~69~ Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय लोकोक्तय: [आवश्यक-लोकोक्तय:] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) श्री आगमीय आवश्यकस्य ग (४५२-२०१३ मा लोकोक्तयः लोकोक्तौदा 8| यतेन याचनाभित्रुता आहुः-अहो याचका | उज्जोय करिस्सामि अंधकारतर कयं । । जत्तेण वजेद ॥ १ ॥ (४१३-१५) अहो याचका इति, तत एव हि याचका (३०२-१५) जले नटुं जले चेव लम्भइ । (४१४-११) रूढाः । (१६९-१६) पुरिसो वा पुथ्वं कामभोगे विप्पजहति, निवहियब्वा य पदण्णत्ति (४१४-३) अग्निं गृहित्वा स्वगृहेषु स्थापितवन्तः, कामभोगाचा पुज्वं पुरिसं विष्पजहयति । वीरभोजा पुहवी । (४३४-५) तेन कारणेन आहितामय इति । (३५७-१५) वस्तुतस्तुल्यबलयोर्विचारः श्रेयान् । अलं वा परबुद्धिमान्धप्रदर्शनेन । भोगा अवमाणमूलंति । (१७३-१०) . (३७७-३) फलं अस्थि मणविसुद्धीए । (५२५-२१) जाव तरुणभो चाहि ताव तिगिच्छामित्ति। अणुकंपाए नइसरिसा रायाणो। पुण्यफलो जिनगुणसङ्कल्पः । (५२६-११) (२२४-८) कलिणा कली घस्सउ । (५७७-२२) अनेन निमित्तेन-अनेन कारणेन मयेदं पासस्थाई अकल्लाणमित्ता । (३८५-१२) णाणायट्ठा दिक्खा । (६२८-१९) प्रारब्धम्, अनेन कार्येणेत्यर्थः ततश्च भव- साडियं रक्खेजासि । (३९४-२) जस्सन कप्पई दिक्खा । (६२८-२०) त्यनायाधकार्यम् । (२८०-१४) . न शक्यं त्वरमाणे प्राप्तुमर्थान् सुदुर्ल- माउटे बुज्य गुज्झया? । (६३३-४) लोकेऽपि गत्यागतिलक्षणं-रुवी य घडो भान् । भायाँ च रूपसम्पन्नां, शत्रूणां च जह मए गए देइ तो देर । (६९४-६) चूतो दुमोत्ति नीलोप्पलं च लोगंमि । पराजयम् ॥ (३९९-११) जो सूरोवीरो विश्वतो सो पुण रजं दिज्जा। जीवो सचेयणोत्ति य विगप्पनियमादओ डंभपहिं लोगो खज्जाइत्ति । (४१३-१) (७०३-८) भणिया॥१॥ (२८१-२२) सचं सुव्वा एयं-मेहनहसमा हति कओ मुहो ते वाओ वाह । (७१२-२) लोगो कामियकामियो । (२९४-१२) । रायाणो । भरियाई भरति दर्द रितं बंदामि निमित्तिगखमणति । (७१२-५) 104444445 (३७८-१८) H५३|| vRECE "आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~70~ Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय लोकोक्तय: [आवश्यक+विशेषावश्यक-लोकोक्तय:] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) श्री | आवश्यक आगमीयलोकोक्ती ॥५४॥ AAAAA पुण्णोण रज लभइ । (७१३-२) (२०६-१) कत्तिओ धम्ममासो। (८०३-२५) मुण्डितशिरसो दिनशुद्धिपर्यालोचनम् ।। लोकेऽपि सतामाकाशादीनां पर्यायविशे. जावजीवाए कत्तिओ। (८०४-२) पाऽऽधानापेक्षया करणस्य रूढत्वात् । सवारंभपवित्ता कहं लोग पत्तियाविति । शान्तिकरणप्रवृत्तस्य बेतालोत्थानम् । (२३७-५) विशेषाव(८१८-३) (७८-८) आकाशं कुरु, पृष्ट कुरु, पादौ कुरु। श्यकयोजाणतो सुह परिहरति । (८४७-७) चिन्तया वत्स! ते जातं शरीरकमिदं (२३७-६) मोलोकोतयः अर्द्ध कुकुट्याः पच्यते, अर्द्ध प्रसवाय कृशम् । (१३३-११) जो जहा वट्टए कालो तं तहा सेव वानरा। कल्प्य ते । (८५१-१) नय रूढी सचिया सव्वा । (१४१-१) ___(४१०-२०) लोकेऽपि हि यो विशेषः सोऽप्यपेक्षया तथा च वकारो भवन्ति 'अमुकेन नक्षत्रेण ___अथ विशेषावश्यकलोकोक्तयः सामान्यम् यत्सामान्य तदप्यपेक्षया अमुकेन प्रहेण चेत्थमित्थं च गच्छता बहुविग्धाई सेयाई । (१७-६) विशेष इति व्यवहियते । (१६९-१८). विनाशितः कालः' ।(४३६-४) न हि शुक्ल शुक्लीक्रियते, नापि स्निग्धं संशयादयोऽज्ञानम् निर्णयस्त्ववाधितो अरण्ये रोझानां लवणदानार्थम् । स्नेह्यते (१८-३) ज्ञानम् । (१८८-१५) (४३९-१३) अण-पिण्डी-पादलेपादिके लोकव्यवहारे बक्खाणओ विसेसोन हि संदेहादलक्ख- पाएण पुब्बसेवा परिमउई साहणम्मि भा ॥५४॥ उपयुज्येत ? । २९-१०) णया । (२०५-२) गुरुतरिया। (५३४-१) लोके सर्वत्र तुल्यनामधेयाः वाह्यः पृथु- वक्तारो भवन्ति-कटुकस्य, तीक्ष्णादेर्वा दासत्तं देइ अणं । (५७०-२) बुनोदराऽऽकारोऽथोऽपि घट उच्यते।। वस्तुनः संबन्धी अयं गन्धः' इति । । दिति कसाया भवमणंत । (५७०-२) NASA 495 #VICE "आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~71 Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय लोकोक्तय: [विशेषावश्यक+ओघनियुक्ति-लोकोक्तयः] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) आगमीयलोकोक्ता भी विशेषावश्य कौघ| नियुक्त्योमो लोकोक्तयः ग ॥ ५५॥ जाथं च अकारणो तमकारणओ चिय पडेजा । (५७८-८) | संघो जो नाणचरणसंघाओ । (५९१-९) तब जीवितं पिबामि (६०५-१८) प्रथमकोपे च यदुच्यते तत् क्रियमाणं न खलु परिणतौ सुखयति । (६१२-१०) अनुवर्तनीय गुरूणां वचनम् । (६१२-१०) जिणिउ घेपंति रयणाई। (६२०-२१) अमोहं देवाणं देसणं । (६२१-२५) पुट्ठावि न दुद्धया वंझा । (६२८-१०) पेयालिय गुण-दोसो जोग्गो जोग्गस्स भासेजा । (६३८-९) | "जातं तद् दधि' । (७४४-१२) | 'जीवितं विषम्' मृत कुसुम्भकम् । (७४४-१३) सारिसासरिसं सर्व । (७५७-१) C.लोके मरणं गतःप्राप्तः कालगत इत्युच्यते (८५३-१६) हत्थस्स । (१२९३-१) जावन्तो बयणपहा तावन्तो वा नया । 'जीवति पारदः' 'जीपति विषम्' 'जीवस्य (९२२-१४) भ्रकम्' 'जीवति लोहम् । (१३२१-१४) यथा बीरो महावीर इति । (९३३-८) असंजमजीवियमविरयाणं । (१३२२-१६) यथा भीमो भीमसेन इति । (९३३-१०) अथ ओपनियुक्तिलोकोक्तयः नाकारणंति कळ । (९४१-६) सर्वनयात्मकं हि भगवद्वचनम् । (९४२-३) महिड्डियं चरणं चारित्तरक्खणट्ठा जेणियरे प्रामो दग्धः, पटो दग्धः । (९४९-१६) तिग्नि अणुभोगा । (८-२६) बहुजणनाओऽवसिओ होही अगेज्क्षप- अल्पं गोब्राह्मणं नन्दति । (१८-८) क्खोत्ति । (९९३-९) मज्झबला साहू । (७१-१३) भावाओ कि वओ गुरुयं । (१०१८-४) ते स पिता भवति! येन रोदिषीति । शक्यमेव ानुष्ठान विधीयते नाशक्यम् । (७२-१९) (१०६७-९) जोगमि चट्टमाणे अमुगं बेल गमिस्सालोकव्यवहारे सांप्रतमल्पस्तन्दुला, प्रचुरो मो । (७३-१२) गोधूमः, संपन्नो यवः' इत्यादायनेकमप्येक- वेश्यासमीपे बसतां लोको भणति-अहो मुच्यते । (१९७९-४) तपोवनमिति । (८१-८) नहि दिजा आहरणं पलियत्तियकन्न । कम निव्वाहि होउ । (९८-३) HANUAAA4% H५५॥ PAK "आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~72~ Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय लोकोक्तय: [ओघनियुक्ति+दशवैकालिक-लोकोक्तय:] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) श्रीआगमीयलोकोक्तो ओघ ॥५६॥ RANA.ANमा प्रथमालिका) वा यो गतस्तस्य वा हस्ते कथं नु स राजा यो न रक्षति ? (८५-१०) संदिशन्ति (१०१-२५) । कथं नु स बयाकरणो योऽपशब्दान् तस्य हस्ते संदिशति । (१०२-१६) . प्रयुक्त। (८५-९०) रात्री दक्षिणाया दिश उत्तरायां दिशि न सा महं नोवि अहपि तीसे । (९३-१६) देवाः प्रयान्ति (इति) लोके श्रुतिः। पृथकर्मफलभुजो हि प्राणिनः । (९४-९) (१२५-९) | घुणक्खरमिव । (१११-१०) मोहनरसो भयेन हियते । (१५३-१७) घरभ्रमणकल्पम् । (११४-२५) वक्तारो लोके दृष्टाः, यदुत जीवोऽनेन हिं- शिष्टाचरितो मार्गः शिष्टरनुगन्तव्यः । सितो-विनाशितः, तथा घटोऽनेन हिंसि (१२७-४) तो-विनाशितः । (२२१-१०) पूर्व निरामयोऽहमासं संप्रति सामयोजातः, अथ दशवकालिकलोकोक्तयः सामयो वा निरामय इति । (१३१-१२) दद्यते गिरिगलति भाजनमनुदरा कन्या शास्त्राणि चादिमध्यावसानमङ्गलभाजि अलोमा एडकेति । (२०९-१) भवन्ति । (२-२०) घुणाक्षरन्यायः । (२१०-२७) एए उबसंता तवस्सिणो असञ्चं ण वयंति। अचक्खुओ व नेता, बुद्धिमन्ने उ ते गिरा। (१०-२२) (२१२-२८) | क्षेत्रे दानादि सफलम् । (५८-१८) | 'देहे दुःख महाफल, संचिस्य । (२३२-१०) ठिओ अ ठावई परं । (२५६-२५) गिहिजोग परिवजए जे स भिक्खू ।। (२६५-२६) आ| पुढविसमे मुणी हविज्जा । (२६७-३) नियुक्तिपुराणः पतित इति कृत्सित नामधेयम् ।। मो दशका (२७६-२६) अनुस्रोतःसुखो लोकः । (२७९-१७) | दा लिकयोविष मृत्युः दधि वपुषी प्रत्यक्षो ज्वरः । र लोकोक्तयः (२७२-२०) आयुघृतं तन्दुलान्वर्षति पर्जन्यः । (२७९-२२) विहारचरिआ इसिणं पसस्था । (२८०-२) असंकिलिटेहिं समं वसिज्जा । (२८०-७) अप्पाखलु सयय रक्खिअव्यो। (२८२-१३) जहा लोगे अमेहिं अणुगतं तम्भं अभंतरो भणद एवं सोवि कामभोगपिया "आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~734 Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सक्तावलि-आदि आगमीय लोकोक्तयः [दशवैकालिक+पिंडनियुक्ति+उत्तराध्यन-लोकोक्तय:] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) श्री ४ साए परिज्माणगतो परिज्शतो भण्णा ।। निवेद्यते । (१२२-२४) अथोत्तराध्ययनलोकोक्तयः दशबैका(द० चू०१४) दुःखसहायश्च स उच्यते यो दुःखप्रती लिकपिण्डश्री राजा योन रक्षति कर लोऽपि हस्तिन्यश्वे च द्वयोरपि राज्ञो श्री आगमीयकारसमर्थः । (१२२-२४) | नियुक्त्यु|आ वैयाकरणः शब्दं न जुयात् । (द चू. ३४) लोके चटुकारिण पते जन्मान्तरेऽप्यदत्त- रहिः । (३२-१९) लोकोक्तो HI अथ पिण्डनियुक्तिलोकोक्तयः दाना आहाराद्यर्थ श्वान इवात्मानं कचराध्य घृष्यतां कलिना कलिः । (५०-२०) दर्शयन्तीत्यवर्णवादः । (१३१-९) नचिट्टे गुरुणंतिए । (५४-२१) | यनानां ॥ ५७॥ दाम खल्यकामी मण्डनप्रियो भवति । । स च तेषां सर्वेषामपि प्रायो भगिनीपतिः। कियधिरमयमजनमोऽस्माभिरनुपाल लोकोक्तयः (१२-२६) (१३५-२) नीयः । (६३-१) भवति च तत्कार्यत्वात्तच्छन्देन व्यपदेशो पापाजीविनः पापेन-विद्यादिना परद्रोह- । कर्मकृतं लोकवैचित्र्यम् । (७५-४) यथा द्रम्मो भक्षितोऽनेनेत्यादौ । (३७-४) करणरूपेण जीवनशीला मायिनः-शठा . यत्कर्म कारयिष्यति तत्कारिष्यामः । मनोशाहारभोजन मिन्नदंष्ट्रतया । इति लोके जुगुप्सा । (१४२-५) लोके पर्व श्रुति:-यदि कुमारी ऋतुमती नेह वसति प्रोषितः (७९-६) |जो उ असझं साहर किलिस्सर न त भवेत् तर्हि याचन्तस्तस्या रुधिरबिन्दवो । असमाणो चरे मिक्स् । (१०७-१४) च साहेई । (८६-११) निपतन्ति तावतो वारान् तन्माता नरकं । न य वित्तासए परं । (१०८-२७) | न य महन्या उ गुणा । (८६-२१) अकोसेज परोमि । (१११-१६) दुल्लभयं खु सुयमुहं । (१२२-१०) जं संकियमावन्नो । (१४५-७) हओ ण संजले भिक्खू । (११४-४) ५७॥ यो दुःखसहायो भवति तस्मै दुःखं । पत्थं पुण रोगहरं । (१७९-२०) नत्थि जीवस्स नासुत्ति । (११४-११) AAAAAAAAAE (७५-४) ६२०१२ 0 4 4 4 4. "आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~74~ Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सक्तावलि-आदि आगमीय लोकोक्तयः [उत्तराध्यन-लोकोक्तय:] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) यनस्य नत्थि किंचि अजाय । (११६-१०) खे गुणे जाव सरीरभेए । (२२७-१९) । कई लधूण भक्मए । (२६८-२३) । |उत्तराध्यआगमीय गृहवासो बहुसावधः । (११७-३) मृत कुसुम्भकमरजक, मृतमन्नमव्या- निरवेक्खो परिवए । (२६९-६) में अणिजिउं कहं मम सहाय खाहिसि। नम् । (२२९-१७) गामे अनियओ चरे । (२६९-२१), लोकोक्तौ (११८-१०) स्वकृतकर्मफलभुजो हि जन्तवः । पगोश्य लभते लाभं । (२७८-१४) -लोकोक्तयः आ परस्स लाभो न गिपियव्यो । (११९-७) . (२४४-१३) दुल्लहा तस्स उम्मजा अद्धाए सुचिरा।। ५८॥ अदीणो ठाबए पपणं । (११९-१४) ण संतसंति मरणंते, सीलबंता बहु- दवि । (२८०-१६) | बेएज निजरापेही । (१२३-६) स्तुभा । (२५३-८) कम्मसच्चा हुपाणिणो । (२८१-१) खाजलं कारण धारप । (१२३-६) जावंतऽविजा पुरिसा सवे ते दुक्खसंभवा।। अहीणा जति देवयं । (२८२-१) | न तेसिं पीहए मुणी । (१२४-९) (२६२-१३) । जियमाणो न संविदे । (२८२-१२) जं मए गहियं तं सुगहियं । (१७९-१) अप्पणा सञ्चमेसेजा । (२६४-६) कुसग्गमित्ता इमे कामा । (२८३-१३) काका नीयते । (१८४-२१) मित्ति भूपहिं कप्पए । (२६४-६) इह कामानियट्टरस अत्तट्टे अबरज्झति । स पुश्वमेव ण लभेज पच्छा । (२२४-५) । अत्तट्ठा सञ्चमेसेज्जा । (२६५-१२) (२८४-४) विसीदति सिढिले आउयंमि । (२२४-६) ण कंखे पुष्वसंथवं । (२६४-१७) सुच्चा नेयाउभं मग्गं जं भुजो परिभस्सति। | खिप्पं न सकेद विवेगमे । (२२४-२४) अप्पमत्तो परिय्यए । (२६८-३) (२८४-५) भा आयाणरक्खी चरमप्पमत्तो। (२२४-२५) ॥५८॥ पुब्बकम्मक्खयट्ठाए इम देहमुदाहरे। । अहम्मिढे नरएसूववजा । (२८५-३) | रक्खेज कोहं विणएज माणं । (२२६-११) (२६८-१३) । धम्मिटे देवेसु उववजाइ । (२८५-४) मायं ण सेवेज पहिज लोहं । (२२६-११) कालखी परिव्यए । (२६८-२३) । | अवाले सेवए मुणी । (२८५-५) "आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~75~ Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय लोकोक्तौ ।। ५९ ।। [ भाग-1] श्री आगमीय सूक्तावलि आदि आगमीय लोकोक्तयः [उत्तराध्यन लोकोक्तयः] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः आगमीय सूक्तावलि आदि (आगम-संबंधी - साहित्य) ग मो इयरहाई तुझ आणाभोजा (२८८-१) पासमाणो न लिप्यई । (२९१-४) दुष्परिचया इमे कामा। ( २९२-३) दुप्पूरए हमे आया । (२९६-१९) खेति जहा व दासेहिं (२९७-११) इत्थी विष्पजहे अणगारे (२९७-२४) ' द्धा स्वस्वकर्मफलभुजो हि जन्तवः । (३१०-१२ ) पियं न विजई किंचि । (३१०-१५ ) जिणिता सुमेहति । (३१३-२२) अप्पाणमेव जुझाहि । ( ३१३-२२) ग्र सम्यमध्ये जिए जितं । (३१३-२३) हे कलं अग्वद सोलसिं । ( ३१५-२५) भा इच्छा हु आगाससमा अर्णतया । (३१६-२० ) पडिपुत्रं नालमेगस्स । (३१६-२१) संकप्पेण विहम्मसि । ( ३१७-१४) समर्थ गोयम ! मा पमायण (३३३-१२) आ 1} (३४५–१७) जीवित बहुपचवायर (२३५-३) दुल्लभया कारण फासया । ( ३३७-२) से सव्वसिणेहवजिए | (३३८-२४) मावंत पुणोवि आविए । ( ३३९-५) बुद्धे परिणि चरे (३४१-१२) संति मग्गं च वूहए (३४१-१२) मितिजमाणो वमति ।। सुयं लहूण मज्जइ । सुप्पियस्सावि मित्तरस रहे भासर पावर्ग (३४५-१८) अप्पियस्सावि मित्तरस रहे कहाण भासा । (३४५-२२) सहसा बहुमुंडिय जणे (३५४-१८) महापसाया इसिणो हर्षति । (३६७-२१) न हु मुणी कोपरा हवंति (३६७-२१) न दीसई जाइविसेस कोई (३६९-२२) कहं सुज कुसला घर्यति । (३७१-२) ~76~ रुन श्री आ ग सव्वं सुचिणं सफलं नराणं । (३८४-१६) कडाण कम्माण न मुक्खु अत्थि । (३८४-११) सुचीर्ण प्रोषितव्रतम् । (३८४-२२) पया हु दुखं । (३८५-२४) इको सर्व पथहोइ दुखं । (३८८-१८) मो कतारमेव अणुजाइ कम्मं । ( ३८८-१८) भोगा इमे संगकरा भवति । (३९०-७) न भिक्खुणो मग्गमणुव्वयामो। (३९१-२) नयावि भोगा पुरिसाण निच्चा । (३९१-९) सं खाणी अणत्थाण उ कामभोगा । "आगम-संबंधी - साहित्य" श्रेणी [ भाग-1] (३९९-१५) हे साहाहि रुक्खो लहर समाहिं । (४०७-६) दुक्खं खु भिक्खारिया बिहारो । भा (४०६-२१) ८ इको हु धम्मो नरदेव! ताणं । (४०८-८) उत्तराध्य यनस्य लोकोक्तयः ॥५९॥ Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सक्तावलि-आदि आगमीय लोकोक्तयः [उत्तराध्यन-लोकोक्तय:] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) आगमीय लोकोक्तौ ॥६०॥ (४१६-१६) FFFFFEVE जातस्य हियो मुत्या । (४०८-२४) पियाणिया दुक्वविवाहणं धर्ण। रया खेविज पुराकडाई । (४८५-६)IC डग्झमाण न बुज्झामो, रागहोसग्गिणा, (४६६-२) 18| उत्तराध्य परीसहे आयगुत्ते सहिजा । (४८५-७)| जगं । (४०९-९). ममत्तबंध च महाभयावह । (४६६-२) निव्वाणमग्गं विरप उबेद । (४८५-८) श्री यनस्य संकमाणो तणु चरे । (४०९-१३) माणुस्सं खु सुदुल्लहं । (४७३-१५) विवित्तलयणाई भइज ताई। (४८५-१०) लोकोक्तयः जो विजाहिं न जीवई स भिक्खू । यत्राकृतिस्तत्र गुणा वसन्ति । (४७३-१७) | मांसेनैव मांसमुपचीयते । (४९०-२६) गुणवति धने ततः श्री श्रीमत्याशा ततो णेउरपंडियाक्वाणययं । (४९६-३) मो ठिओ उ ठावए परं । (४३०-३) राज्यम् । (४७३-१८) सबसस्तू जिणामहं । (५०४-११) किं नाम काहामि सुपणा । (४३२-२७) अप्पणा अणाहो संतो कहं नाहो भवि- नमो ते संसयाईय ! सब्बसुत्तमहोयही!। भुच्चा पिचा सुहं सुई । (४३३-७) स्ससि । (४७३-२२) (५११-९) अणिचे जीवलोगंमि किं हिंसाप पस- सीयंति पगे बहुकायरा नरा । (४७७-८) न वि मुंडिपण समणो, न ॐकारेण जसि?। (४४०-८) न वीरजायं अणुजाइ मग्गं । (४७७-२०) बंभणो । न मुणी रण्णवासेणं, कुसची| जीवियं चेव रूवं च विन्जुसंपायचंचलं । चरिज भिक्खू सुसमाहिइदिए । | रेण न तावसो ॥ २९ ॥ (५२५-४) (४४०-९) (४८४-२४) समयाए समणो होर, बभचेरेण बभणो। | असासए सरीरंमि ई नोबलभामहं । कालेण कालं विहरिज रतु । (४८४-२४) , नाणेण य मुणी होइ, तयेणं होद तायसो सीहो व सहेण न संतसिज्जा । (४८५-३) ॥ ३० ॥ (५२५-५) इहलोगे निप्पिवासस्स नत्थि किंचि बि | न सब्य सम्बत्थऽभिरोअइज्जा । (४८५-२) : कम्मुणा बंभणो होड़, कम्मुणा होई दुकरं । (५५८-१) अणेग छंदामिह माणवेहिं । (४८५-३) | खत्तिो । ५२८२%E F • For_ FFER "आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~77~ Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सक्तावलि-आदि आगमीय लोकोक्तय: [उत्तराध्यन+आचारांग-लोकोक्तय:] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) गयो आगमीयलोकोक्तौ ॥६१॥ PEER_FFEEPERFEve पास्सो कम्गुणा होर, हो हवा कम्मुणा | लक्षणं प्रपश्चचोच्यते । १३५-११) । आरंभमाणा विणयं वयंति । (७८-१९) उत्तराध्य॥ ३१ ॥ (५२५-६) . प्रामः समागतः। (७०१-१६) जे गुणे से मूलट्ठाणे । (९८-२३) २यनाचारांभासच्या इवग्गिणो। (५२६-१५) अथाचारांगलोकोक्तयः जे मूलट्ठाणे से गुणे । (९८-२३) भोगी भमइ संसारे । (५३०-७) कि किलास्य हसितेन हास्यास्पदस्येति । आलोकोक्तयः अभोगी विष्पमुच्चई । (५३०-७) अस्माकं यावज्जीवमनाकुट्टिः। (२१-१५) (१०६-२४)| | उवलेवो होइ भोगेसु । (५३०-७) वीरभोग्या वसुन्धरा । (२६-१९) न लजते भवान् न पश्यति आस्मानं अभोगी नोवलिप्पई । (५३०-७) दण्डभयाच सर्वा प्रजा बिभ्यति । नावलोकयति शिरः पलितभरमावगुण्डित इच्छं निओइउ भंते !,वेयावच्चे व सज्झाए । (२६-१९) मां दुहितभूतामेवं गुहितुमिच्छसीति । पणया वीरा महाबीहिं । ४३-२४) (१०६-२६) पूर्वस्मिन्नभश्चतुर्भागे आदित्ये समुत्थिते वीरेहिं पय अभिभूय दिटुं। (५३-१४) खणं जाणाहि पंडिए । (१०९-१९) इब समुत्थिते । (५३६-१३) जे पमत्ते गुणट्ठीप । (५३-२७) अरई आउट्टे से मेहावी । (१११-१८) वृथा वतमचिन्तितम् । (६२२-१३) साधारणास्वनन्ताः । (५८-१६) मंदा मोहेण पाउडा । (११२-२७) ब्राह्मणा आयाता वशिष्ठोऽप्यायातः । सम्यग्ज्ञानपूर्विका हि क्रिया फलवती।। मांसेन पुष्यते मांसम् । (११५-६) इणमेव नावखंति जे जणा धुवचारिणो। गः विवित्तवासो मुणिणं पसत्यो । (६२५-९) जे गुणे से आवढे जे आवडे से गुणे । (१२१-१७) कामाणुगिशिप्पभवं खु दुक्खं । (६२५-११) (६२-२२) । नथि कालस्स णागमो । (१२१-१८) ८ ।६१ त एव विधयः सुसंगृहीता भवन्ति येषां । संति पाणा पुढो सिया । (७१-२६) । सवे पाणा पियाउया । (१२१-१८) "आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~78~ Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सक्तावलि-आदि आगमीय लोकोक्तय: [आचारांग-लोकोक्तय:] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) गस्य | सबेसि जीवियं पियं । (१२१-१९) कामकामी खलु अयं पुरिसे (१३५-२३) । कम्मुणा उवाही जायद । (१५५-२०) । आयाणिजं च आयाय तंमि ठाणे न- धुणे कम्मसरीरगं । (१४३-११) संमत्तदंसी न करेद पाव । (१५८-२७)18| आचारांआगमीय- चिट्ठए । (१२२-१) वीरा संमत्तदसिणो । (१४३-१२) संसिच्चमाणा पुणरिति गम्भं । (१५२-२४) लोकोक्तौ वितह पप्पोयन्ने तमि ठाणंमि चिट्ठइ । क्रियमाणं कृतम् । (१४४-७) कामेसु गिद्धा निचय करंति । (१५९-१४)/ोनयः (१२२-१) जे अणंतदंसी से अणंतारामे । (१४५-७) | अलं बालस्स संगेण । (१५९-२३) ॥ ६२॥ ग आसंच छंदं च विगिंच धीरे!। (१२७-३) - केयं पुरिसे कं च नप? । (१४६-९) आयंकदसी न करेइ पार्य । (१६०-६) मोजेण सिया तेण नो सिया। (१२७-३) एसवीरे पसंसिए, जं बढे पडिमोयए । सञ्चमि धिई कुव्वहा । (१६२-२२) थीमि लोए पयहिए । (१२७-४) (१४६-१०) अणणं चर माहणे । (१६३-१४) | नाइवाइज कंचर्ण । (१२८-१७) कामा न सेबियब्वा । (१५१-२२) छिदिज सोय लहुभूयगामी । (१६४-७) थोवं लड़े न खिंसप । (१२८-१८) सया मुणिणो जागरति । (१५१-२७) आयगुत्ते सया वीरे । (१६६-२) | अदिस्समाणे कयविक्रयेसु । (१३१-१५) मूढे धम्म नाभिजाणइ । (१५४-२७) से न छिजान भिज्जइन उज्झइन हमर दुहओ छेत्ता नियाइ । (१३३-१४) आरंभजं दुक्खमिणति णया । (१५५-१६) कंचणं सबलोए । (१६६-३) | लाभुत्तिन मजिज्जा । (१३४-११) माई पमाई पुण पइ गम्भ । (१५५-१७) | अवरेण पुचि न सरंति एगे । (१६७-३) अलाभुत्ति न सोइजा । (१३४-१२) जे पज्जवजायसत्थस्स खेयपणे से अस- का अरई के आणंदे ? । (१६८-६) बहुपि लधु न निहे । (१३४-१२) स्थस्स खेयन्ने । (१५५-१८) इत्यपि अग्गहे चरे । (१६८-६) | कामा दुरतिकमा । (१३५-२३) अकम्मस्स यवहारोन विज्जा । तुममेव तुम मित्तं । (१६८-७) ८जीविय दुष्पडिवूहगं । (१३५-२३) (१५५-२०) | भात्मैवात्मनोऽप्रमत्तो मित्रम् । (१६८-२४) _A. 4 4 4 4 २१२-४ RAHA E.. ६५N A "आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~79~ Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सक्तावलि-आदि आगमीय लोकोक्तय: [आचारांग-लोकोक्तय:] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) जंजाणिजा उच्चालइयं तं जाविजा दूरा- उदिए नो पमायण । (२०४-१०) नममाणा बेगे जीवियं विष्परिणामति । लइयं । १६९-४) पमत्ते बहिया पास । (२०८-५) (२५१-१७) श्री II गस्य बामेहावी मारं तरह । (१६९-६) अप्पमत्तो परिव्यए । (२०८-५) पुट्ठावेगे नियति जीवियस्लेव कारणा। | आगमीय लोकोक्तयः | आ| सध्यो पमत्तस्स भयं । (१७२-३) जुद्धारिहं खलु दुलहं । (२११-६) (२५१-१७) आ लोकोको ग जे पगं नामे से बहुं नामे । (१७२-३) | निविपणचारी अरप पयासु । (२११-१० निक्वंतपि तेसिं दुन्निक्वंतं भवा। मोजे बहुं नामे से एग नामे । (१७२-५) एस से परमारामो जाओ लोगंमि बालवयणिज्जा हुते नर।। (२५१-१८) मो ॥६३॥ नावकंखति जीविय । (१७२-५) इत्थीओ । (२१८-१) ओए समियदंसणे । (२५४-१६) दिटेहिं निवेयं गच्छिज्जा । (१८०-११) पुर्व फासा पच्छा दंडा । (२१८-४) अबहिल्लेसे परिवए । (२५७-४) नाणागमो मच्चमुहस्स अस्थि । नहंता नवि घायए । (२२५-११) संक्खाय पेसलं धम्म दिट्ठिमं परिनिखुढे। र (१८३-८) ते पडुच पडिसंखाए । (२२६-३) | तुरणुचरो मग्गो वीराणं अनियगामीणं। | नियाण ते न लभंति मुक्खें । सुत्तत्थजाणएणं समाहिमरणं तु कायव्यं । (२३२-२५) | (२६२-७) जस्स नत्थि पुरा पच्छा मझे तस्स बहुदुक्खा हु जन्तवो । (२३८-६) जामा तिनि उदाहिया । (२६८-१६) कुओ सिया । (१९४-४) सत्ता कामेसु माणया । (२३८-६) जे णिवुया पावहिं कम्मेहिं अणियाणा मोहेण गम्भ मरणाइ पर । (१९९-१७) (ण य) ओहं तरए जणगाजेण विष्पजढा। ते बियाहिया । २३८-१७) । H६३॥ विद्या मंदस्स बालया। (२००-२१) (२३९-१७) जीवियं नामिकंखिज्जा । (२८१-१८) | दुष्करं च परगुणोत्कीर्तनम् । (२०२-१४) | चिचा सव्वं विसुत्तिय । (२४२-२१) । मरणं नोवि पत्थए । (२८९-१८) ETV ' FM REVE FVEGX "आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~80~ Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आगमीय लोकोक्तौ ॥ ६४ ॥ [भाग 1] श्री आगमीय सूक्तावलि आदि आगमीय लोकोक्तयः (आचारांग + सूत्रकृतांग+स्थानांग लोकोक्तयः ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः आगमीय सूक्तावलि आदि (आगम-संबंधी - साहित्य) दुषिन सजिया । (२८९-१९ ) मज्झत्थों निजरापेही, समाहिमणुपालय । (२९०-१८) ठावर तत्थ अप्प (२९४ - १८) न मे देहे परीसहा । (२९४-१८) भेडरेसु न रक्षिजा । (२९४-२०) इच्छा लोभं न सेविना । (२९४-२० ) दिव्यमायेन सह । ( २९४-२१) सोबहिए हु लुप्पई वाले (२०४७) अहाकडं न से सेवे। (३०५-१४) सव्यजगज्जीवहियं अरिहं ! तित्थं पवतेग्रहि । (४२२-२६) अल्सर सव्वसहे महामुनी । (४३०-८) अथ सूत्रकृतांग लोकोक्तयः अशो गुडमेव विषमिति मन्यते किं तस्य मारयितुकामेनापि बुद्धिमता गुढं एव श्री आ ग मो दा 5 र सं भा ८ दीयते । (१७-२५) सन्दुक्खा य, अभ सप्वे अहिंसिता । पयं खु नाणिनो सारं, जन्न हिंसर किंचण । (५१-८) अन्तहि खु दुहेण लम्भर (६९-६) गुरुणो छंदानुवत्तगा चिरया । ( ७०-४) पगस्स गती य आगती । ( ७५-१४) सव्वे सयकम्मकप्पिया, अवियतेण दुहेण पाणिणो हिंडंति भयाउला सदा । (७५-१५) तिविद्वेण वि पाण मा हणे (७६-१९ ) देवायत्ताः कार्यसिद्धयः । (२८९-७) किं परं मरणं सिया ? (९०-४) . जेणs ने णो विरुज्झेजा, तेण तं तं समायरे । (९४-३) सात सातेण विजती । ( ९६-२) जेहिं काले परिकंतं न पच्छा परितप्पए । ~81~ (९९-१८) । बहुमायाओ इथिओ (११२-८) आहंसु विज्ञाचरणं पमोक्खं । आ ग (२१९-२० ) स्वजनाथ न बान्धवा इति व्यवहारदर्श नात् । (२९४-११) सरागा अपि वीतरागा इव चेष्टन्ते । मो (३८४-१८) डा अथ स्थानांगलोकोक्तयः कण्टकशाखामर्दनम् (१-१६) न हि पुरुषार्थानुपयोगि भगवन्तो भाषन्ते । "आगम-संबंधी - साहित्य" श्रेणी [ भाग-1] (८-१४) प्र काकदन्तपरीक्षा । ( ८-१९) न कदाचिदनीदृशं जगत् । ( ७८-१३) गुडमिश्रं दधिन गुडतया नापि दधितया व्यपदिश्यते (१०७८) तन्दुलान् वर्षति पर्जन्यः । (१२९-५ ) आचारांग सूत्रकृतांग स्थनांगानां लोकोक्तयः भा ॥ ६४ ॥ काः Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सक्तावलि-आदि आगमीय लोकोक्तय: स्थानांग+समवायांग+भगवती-लोकोक्तय:] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) आगमीय-आ लोकोक्तौ | रसवती गुणनिका । (१९९-५) प्रत्युपेक्षणाकरणात् कालोऽपि प्रत्युपेक्ष णेति । (१९९-७) खंतिसूरा अरहता। तबसूरा अणगारा।। दाणसूरे बेसमणे। (२३७-१६) जुद्धसूरे वासुदेवे।। यथाऽसौ भटस्तं भर्ट सहते तस्मान्न भज्यत इति भावः । (२४७-२१) यथा शठं प्रति शठत्वं कुर्यात् । (२५९-२) पूयाहिज्जे लोए । (३४२-१४) केलासभवणा एप, गुज्झगा आगया महि । (३४२-२०) नवश्रोतःपरिश्रवा बौन्दी । (४५१-११) अथ समवायांगलोकोक्तयः पदार्थसार्थमभिदधता सक्रम पवासावभिधातव्य इति न्यायः । (५-१६) क्रियासारमेव ज्ञानम् । (१०९-१२) अथ भगवतीलोकोक्तयः (२२६-१०) स्था०सम० वक्तमत्तिष्ठते इति ततस्तद्वयवच्छेदा जीवदयादि पूर्व कृतमनेन तेनार्य दीर्घायुः श्री भगवतीनां योक्तमुत्ययेति । (१४-१०) संवृत्तः । (२२७-१०) आ लोकोक्तयः जे कडे पाये कम्मे नत्थि तस्स अबेह- आगमबलिया समणा निग्गंथा । (३८३-१६) यत्ता मोक्खो । (६५-३) . के पुवि गमणयाए के पच्छा गमण- मो अहाकम्मं अहानिकरणं जहा जहा ते याए? । (४६५-१५) भगवया दिटुं तहा तहा तं विष्परिण पुधि वा पच्छावा अवस्सविप्पजहियव्व।। मिस्सतीति । (६५-७) (४६५-२६) निन्दा हि किल द्वेषसम्भवा । (१००-१३) महासमुद्दे वा भुयाहिं दुत्तरो। (४६६-२६) अवये गर्हिते संयमो भवति । (१००-१५) तिक्खं कमियब्वं । (४६६-२६) जल्लसाई दवाई परियाइत्सा कालं करे गरुयं लंबेयव्वं । (४६६-२७) तल्लसेसु उववजद । (१८८-११) असिधारगं बतं चरियव्वं । (४६६-२७) मृतशब्दापेक्षया परलोकीभूतशब्दवत् । धीरस्स निच्छियस्स ववसियस्स नो (२२१-१२) खलु एत्थं किंचिपि दुकरं । (४६७-१०) नूनमनेन भवान्तरे किञ्चिदशुमं प्राणि- स्वामिना धौतमस्तकस्य हि दासत्वमघातादि वा सेवितमकल्प्य वा मुनिभ्यो पगच्छतीति लोकव्यवहारः । (५४३-२०) इ, येनाय भोग्यज्यल्पायुः संवृत्त इति।। मधुघटादिन्यायः । (६२३-१८) ६५॥ VEGECT "आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~82 Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सक्तावलि-आदि आगमीय लोकोक्तय: [भगवती ज्ञाताधर्मकथा+औपपातिक-लोकोक्तय:] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) आगमीयलोकोक्तौ भग० ज्ञाता. प्रश्न औप० जीवाजीवा-भिगमानां लोकोक्तयः GI श्रुतकुम्भादिन्यायः । (६२३-२१) पणियश्यवच्छला गं देवाणुणिया! उत्त- अथ जीवाजीवाभिगमलोकोक्तयः । खंतिखमा पुण अणगारा भगवंतो। ' मपुरिसा । (२१९-११) पञ्चालदेशनिवासिनः पुरुषाः पञ्चाला अपूईवयणा णं पिउत्था ! उत्तमपुरिसा सूक्ष्मो वायुः सूक्ष्मं मनः । (७६६-८) । इति । (१४४-२४) वासुदेवा बलदेवा चवट्टी । (२२५-१०) विकसितानि यानि शतपत्राणि पुण्डरी| न योदनमात्रायामतिमात्र व्यञ्जनं जोणं णवियाए माउयाए दर्ज पाउकामे काणि च द्वारादिषु प्रतिकृतित्वेन स्थियुक्तम् । (९५४-१९) से गं निग्गच्छउत्ति । (२३७-२०) तानि । (१७५-१९) अथ ज्ञाताधर्मकथालोकोक्तयः । अथ प्रश्नव्याकरणलोकोक्तयः । तैलेन हि पक्कोऽपूपः प्रायः परिपूर्णवृत्तो तव य मम य भिक्खामायणे भविस्सति।। यथाजातपशुभूताः-शिक्षारक्षणादिवर्जि- भवति न घृतपक इति तैलविशेषणम् । (१८५-२५) । तबलीवादिसरशाः । (६४-५) (१७७-२७) | भीयस्स खलु भो! पवजा सरणं अथौपपातिकलोकोक्तयः ससाटशब्दो युग्मवाची यथा साधुसबाट उर्फट्ठियस्स सहेसगमणं, छुहियस्स अन्न, | कपोतस्य हि पाषाणलवानपि जठराशि- इत्यत्र । (१८१-२२) तिसियस्स पार्ण, आउरस्स मेसज्ज, जरयतीति किल श्रुतिः । (१६-६) रयतीति किल श्रुतिः । (१६-६) तोरणेषु हि शोभाथै तारका निवध्यन्ते माइयस्स रहस्सं, अभिजुत्तस्स पञ्चय- सिंहस्य हि मैथुनानिवृत्तस्यात्याकर्षणात् इति लोकेऽपि प्रतीतमिति । (१९९-४) करणं, अद्धाणपरिस्संतस्स वाहणगमणं, कदाचिन्मेहनं शुध्यति पवं ये कचिदप यत्रागत्य मनुष्या आत्मानमन्दोलयन्ति तरिउकामस्स पवणं, किश्वं परं अभि- राधे राजपुरुषेस्रोटितमेहनाः क्रियन्ते ते ते अन्दोलका इति लोके प्रसिद्धाः । ओजितुकामस्स सहायकिञ्च । (१९१-६) सिंहपुच्छितका व्यपदिश्यन्त इति ।। (२००-६) मारामुके विव काए । (२०२-७) (८७-२१) | जालकानि यानि भवनभित्तिषु लोके ६६ "आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~834 Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग 1] श्री आगमीय सूक्तावलि आदि आगमीय लोकोक्तयः [ औपपातिक+प्रज्ञापना- लोकोक्तयः] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः आगमीय सूक्तावलि आदि (आगम-संबंधी - साहित्य) ।। ६७ ।। प्रतीतानि । ( २०९ - २७) तुल्येष्वपि सर्पशब्दो दृष्टो यथाऽनेन सर्व पीतं घृतमिति । (२४५-१६) यथा सुराष्ट्रेभ्यो मागध इति । (२६२-२३) संक्रान्तो मगधदेशं यथा तर्जन्या संस्पृष्टा ज्येष्ठाऽङ्गुलिज्येष्ठेबेति । (२६२-२३) कपोतस्य हि जाठराग्निः पाषाणलवानपि जरयतीति श्रुतिः । (२७७-२० ) यथा पञ्चालदेशनिवासिनः पञ्चालाः । (३८६-१६) न खलु पश्यति सूक्ष्मान् रूपविशेषान् भा मन्दलोचनः । (४६६-३८) स्थूलदर्शनमपि हिताय मध्यस्थानाम् । (४६६-२८) श्री- श्री आगमीय आ लोकोक्तौ ग मो डा अथ प्रज्ञापनालोकोक्तयः यथा 'पश्ञ्चालदेशनिवासिनः पञ्चाला इति । (७१-३) जालकानि तानि च भवनभित्तिषु लोके प्रतीतानि । ( ९९-१२) यत्र सुपिरं तत्र व्यन्तराः । (११८-१९ ) लोके व्यवहारः सकपायोऽयं कपायोदयवानित्यर्थः । (१३५-१८) हे साधो ! प्रतिक्रमणं कुरु स्थण्डिलानि प्रत्युपेक्षस्वेति (२४८-१६) यथा अमुका ब्राह्मणी साध्वी शुभं नक्षत्रमधेयमुकमङ्गं श्रुतस्कन्धं च पठेत्यादि । (२५१-१८) पुरुषः स्वभावाद् गम्भीराशयो भवति महत्यामपि चापदि न क्लीवतां भजत इत्यादि । ( २५१-२३) नपुंसकः स्वभावात् लीयो भवति, प्रवलमोहान ज्यालाकलापज्वलितश्च । (२५२-२४) समाऽपि काचिद् गम्भीराशया भवति धृत्या चातीय बलवती, पुरुषोऽपि च जीवाजीवाकश्चिच्छप्रकृतिरूपो लभ्यते स्तोकाया श्री भिगमप्रमपि चापदि क्लीवतां भजते, नपुंसकोऽपि आ ज्ञापनयो ~84~ N चिन्मन्दमोहनको दृढसत्त्वश्च । द्धा (२५१-२६) ग लोकोक्तयः कश्चित् कञ्चन त्वरयन् दिवसे वर्त्तमान मो एव बदति उतिष्ठ रात्रियांतेति, रात्रौ या वर्त्तमानायामुत्तिष्ठोद्गतः सूर्य इति । (२५९-८) प्रथमपौरुष्यामेव वर्त्तमानायां कश्चित् कञ्चन त्वरयन् एवं वदति चल मध्यादी भूतमिति । ( २५९-१० ) गिरिर्दद्यते गलति भाजनं अनुदरा कन्या अलोमिका एडका । (२५८-६) अहो मे निष्कारणः कोपो नैव (कोऽपिं) ग. विरुपं भाषते न च किञ्चिद्विनाशयति । (२९०-२१) भा H६७ ।। तथाविधमुहर्त्तवशाद्गुणदोषविचारणा "आगम-संबंधी - साहित्य" श्रेणी [ भाग-1] Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय लोकोक्तयः [प्रज्ञापना+जंबूद्वीप-लोकोक्तयः] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) दा शून्यः परवशीभूय कोपं कुरुते (२९१-२३) | सम्मुखीकृत' इत्यर्थः । (१०५-२४) । यात्रा महर्दिकजनैराकीर्णेति (१०२-१४) किश्चिद्दष्ट न परिभावितं सम्यगिति अथ जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिलोकोक्तयः चरणमालिकासंस्थानविशेषकृतं पादा प्रज्ञापनाआगमीय- श्री व्यवहारेदर्शनात् । (३११-७) चन्दाकर्षकमृगेन्द्रानुयायिनः शृगाल- भरणं लोके पागडां इति प्रसिद्धम् । श्री जंबूद्वीपयोलोकोक्ती वगतो देवदत्तः पत्तनं गतः, तथा वचन- स्येव । (२-२३) कपोतस्य हि जाठराग्निः पाषाणलवानपि मात्रेणाप्यसौ गतः कोपमिति । (३२८-९) आ लोकोक्तयः लोहशालाविकीर्णानां लोहसारकणानां जरयतीति लौकिकश्रुतिः । (११७-१४) ॥ ६८॥ भिन्नस्य हि वर्णप्रकर्षो भवति (३६३-८) चुम्बकाश्मप्रयोगेणैव । (२-२४) सर्व भाजनस्थं जल पीतम् । (२२५-२६) महीयांसो हि परमकरुणापरीतत्वात् अ- कण्टकशाखामर्दनः । (३-५) लौकिकैरुक्तं ब्रह्मणास्पमिदमण्डकं तत विशेषेण सर्वेषामनुग्रहाय प्रवर्त्तन्ते । , लौकिकी वागपि अमुकेन ग्रहेण नक्षत्रण इयं जगतः प्रसूतिरित्येवं सर्वत्र प्रवादो (४२५-२४) पुनस्तमनुधावतीति न्यायः । (४२९-१३) या इत्थमित्थं गच्छता विनाशितः काल ऽभूत्ततोऽपि च ब्रह्माण्डपुराणं नाम इति । (६-१०) | श्रूयते च जातिस्मरणादिना विज्ञाय पूर्व शाखमभूदिति प्रसङ्गाद्वोध्यमिति । मुण्डितशिरसो दिनशुद्धिपर्यालोचनम् । (२४७-३) देहमतिमोहात् ( केचित् ) सुरनदी प्रत्य (१२-१३) तोरणेषु हि शोभाथै तारिका निवध्यन्त | स्थिशकलानि नयन्तीति । (४४२-१) न ह्यन्यकरणेऽन्यस्य निवृत्तियुक्तिमती । इति प्रतीतं लोकेऽपि । (२९२-१८) मनुष्येषु सर्वभावसम्भवात् । (४५१-२६) (१२-१६) सिंहावलोकनन्यायः । (३८३-१) क्षत्रिया एवं मन्यते परविषयापहारोगजगात्रभिन्नभिन्नदेशसंस्पर्शने बहुविधतर्जन्या संसृष्टा ज्येष्ठाङ्गलिज्येष्ठेवेति । ।६८ ऽस्माकं म्यायो 'बीरभोग्या वसुन्धरा' विवादमुखरजात्यन्धवृन्दवत् । (१२-२१) (४२५-१०) इति न्यायात् । (४५६-१२) नाद्याग्येतस्य समयो वर्त्तते । (१३-२१) प्रकाशतमसोः सहावस्थायित्वविरोधः । तथा च लोके वक्तारः 'आवजितोऽयं मया, लोकेऽपि वक्तारो भवन्ति 'यदियं जन्य (४५७-११) FEENERNEVEL PHAAAA VER "आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~-85 Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय लोकोक्तयः [जंबूदवीप+निशीथ-लोकोक्तय:] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) ॐ जंबू० श्री श्री- आगमीयलोकोक्ती FFFFM R ॥६९॥ नहि सती जनप्रतीति वयमपलपामः।। जो जिग्गहसमत्थो न भवति तस्स किं । भणिता । (३२५-२-१३) (४५९-१७)। कहिपण( २६६-१-२) समलस्स य कओ धम्मो । (३४३-२-१) श्री निशीथयो। अथ निशीथचूर्णिलोकोक्तयः जो वहति सो तणं चरति (२६७-१-२) | जिणसासणं पवण्णेहिं मरणस्स न | आ लोकोक्तयः प्रथमखंडेः साधुं दृष्ट्वा ध्रुवा सिद्धिः (२७३-३-) मेयब्बं । (३४७-१-४) तवस्स मूलं धिती । (२७-१-९) जइ तुम्भे सव्वं लोग पवावेह किं करेमो एस भट्ठपडिपणो हतो मया । (३४२-२-४) (२७५-२-३) तुमं किं जाणासि कूवमंडुक्को। (३४-२-२) शस्त्रग्रहणाश्च संक्लिष्टतरं चित्तं । सरणागया णो पहरिजंति । (३५०-२-५) नडपढिपण वा किं तस्स णाणेण । (२८९-२-२) (१०४-२-१२) द्वितीयखंडे साधुता षा वणपासो । (१०८-२-७) कूवमंडुक्के दक्षिणावहो पहाणो । (२९५-१-१) णिस्सणिधिसंचया समणत्ति । (५१-३-२३) | सं रायरक्खियाय तवोहणा वणवासिणो । अणुवसंताणकउसंजमो कओ वा सज्झाओ अगीयस्थो चउरंग णासेइ । (५४-१-८) (१७४-२-१०) (२९६-१-१०) अहो दुदिट्ठधम्मा परतत्तिवाहिणो। क्रोधप्रहरणा ऋषयः (१७६-१-१२) रोषणो य गुरुसीसपाडिच्छयाणं दुरहि- (५९-१-५) दीहो राइहत्थो (१७७-१-२) गमो (२९९-१-५) परं पभायकाले दधिकूर सुणगावि खाइर्ड अहिरण्णसोयणिया समणा(१७८-१-१३) किं मज्झ घरं सुसाणकुडी (३२५-३-१२) णेच्छिहिंति । (८४-१-१२) । लुदिटुंतभाविता । (२०२-१-८) एगो वंडो दो जमदूआ चउरोणीहारी। कामी पस अजिइंदिओत्ति (८८-२-१२) | आतुरदृष्टांतसामर्थ्यात् । (२०२-२-१) ।६९॥ उविक्खितो वाही दुच्छेजो । (९०-१-१) (३२४-२-६) | जहा राया तहा पया (२४४-१-४) वेजसत्थो य जहवि भाषा ते इच्छा । दुलभो पुत्तजम्मो । (९३-२-११) FARMEENEEve EVIE "आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~86 Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग 1] श्री आगमीय सूक्तावलि आदि आगमीय लोकोक्तयः [निशीथ+बृहत्कल्प-लोकोक्तयः] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः आगमीय सूक्तावलि आदि (आगम-संबंधी - साहित्य) अप्पणो जहिच्छा पुण्णेहिं वलति । श्री(९४-१-१३) आगमीय श्री रुट्ठो कालं ण पडिक्खति त्ति (९७-१-१०) लोकोक्ती आत्मन: क्रियाचरितेन गुरोः क्रियाचरितं शापयति । (९७-२-७) आ ॥ ७० ॥ ग मो दा प्र जो मनोगत भावं जाणाति तस्स लोगो आउट्टति । ( ९९-१-११) विणपण व बहुफलं दाणं (१०३-१-५) बारववणिया थावच्चासुताहरणं कहियं । (१०४-२-९) सगेसु य घतं दातव्यं । (१०५-१-९) समत्थस्स किं दिजति । (११६-२-१०) गाणे भावे मूढो भवति । (१३५-२-६) मूढस्स य दंसणचरणा ण भवंति । भा (१३५-२-६) गः आदीप पडिसेहियाप सर्व्व पडिसेहियं । (१३५-२-१३) रजं विलुत्तसारं । (१३६-२-१२ ) लोडसरे जे धम्मा ते अणुधम्मा । (१४४-२-९) संसग्गीतो बहूदोसा अयुट्ठसंसग्गीतो य गुणा । (१६०-२-१२ ) वह महिलियाणं कृतकभाषा भवति पुत पतिपित्ति । (१७०-२-२ ) सभावेण च इत्थी अल्पसत्वा भवति । (१७२-२-१) तृतीयखंडे:रिसओ कोवपहरणा । (१-१-६) पते धम्मकंयुगपविट्ठा उगलेस्सा लोग मुसंति । (१४-१-३) रायकरभरेहिं भग्गाणं समणकारो बोटव्यो ति । (१४-१-४) अहो णिरणुकंपा मांतस्स वि ण देति । (१९-२-६) साधुपदोसे पियमा संसारो (२४-१-६) इत्थीओ सत्येण जेवण्या (३२-१-४) पातो सम्याफरिसिति । (४७-२-६) सीहावलोयणेण भणति । (५४-२-२) सल्लो न सिज्झति । (९१-१-१) उद्धरियो य सिझर (९१-१-९) णिग्भओ घाहं बंधति । (१३३-१-१०) निरासो अंगे मुयति मरति य । (१३३-१-१०) 1 ~87~ अथ बृहत्कल्पलोकोक्तयः प्रथमखंडे: दाभरो य विलुतो नगरद्दारे अवारिंतो । (११५-१-२) लोउत्तरया धम्मा (१६६-१-२) अणुगुरुणो धम्मा (१६६-१-८) नत्थि अनिदाणओ होइ उन्भवो तेण परिहर निदाण । (१७४-१-२) यतश्च दोषाः समुत्पद्यन्ते तत् प्रेक्षावतां नोपादातुमुचितम् । (१७५-२-१४) "आगम-संबंधी - साहित्य" श्रेणी [ भाग-1] निशीथ श्री हत्कल्पयोलोकोक्तयः आ ग भा गः VG ॥ ७० ॥ Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सक्तावलि-आदि आगमीय लोकोक्तय: [बृहत्कल्प-लोकोक्तयः] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) श्री श्री- आगमीयलोकोक्ती ॥ ७१ ॥ द्वा Wwto उपभोगफलाः शालयः । (२०१-२-१) । नच बहुगुणपरित्यागेन स्वल्पगुणोपादानं | सम्वेवि हु ते जिणाणाए । (२५०-३-६) | बहत्कसूत्र पुनरर्थकरणफलम् । (२०१-१-९) | विदुषां कर्तुमुचितम् । (२११-१-६) सावक्खो जेण गच्छो उ । (२५०-२-६) श्री ल्पस्य न खलु सद्विवेकसुधाधाराधीतचेतसः - कुसला सुपइट्टियारंभा । (२११-३-१२) यतीनां न कल्पते गृहिणः सपनादि कर्तुं आ लोकोक्तयः सन्तः कदाचनापि स्वगुणविकत्थने प्रवृत्ति- तं तु न विजद सज्झं जं घिदमतो न भवतश्च मुधा कुर्वतो बहुफलं । मातन्वते मिथ्याभिमानाण्यप्रबलतमस्ति- साहेइ । (२१९-२-२१) ... (२९७-२-५) रस्कृतसंज्ञानळोचनप्रसराणामितरजन्तू- वालाय लोकाः पराभवनीयतया दर्शनात् अहिरण्यकाः श्रमणाः (३००-२-६). नामेव तत्र प्रवृत्तिसम्भवात् । (२३२-२-१२) न वर्त्तते शिष्टानां यतिभ्यो हिरण्यादि . (२०४-२-११) मुक्छेसु महाभागा विजापुरिस्सा न नातिबलवन्तो न चातिदुर्वला: साधवः । दातुं (३००-२-७) (२४०-१-५) जो चरई सो तणं वहद । (३०९-२-८) भायति । १२५५ ॥ (२०५-१-१) पकरात्रमपि हि यस्य गेहे स्थीयते तमना- निष्फायगनिष्फना दोनिवि होति महितबिहजणे य निउणे विजापुरिसा वि- पृच्छय गच्छतां भवत्यौचित्यपरिहाणिः। हीया । (३१६-२-४) भायति । (२०५-१-१३) (२४०-२-१४) सीसोचिय सिक्खंतो आयरिओ होइनइय दिपंति गुणड्ढा मुक्खेसु हसिज्जमा जोगमि वट्टमाणे अमुगं बेलं गमिस्सामो अत्तो। (३१६-२-२) णावि ॥ १२५८ ॥ (२०५-२-२) (२४२-१-५) गच्छो उ भवे महड्डीओ । (३१६-२-५) प्रणिपातपर्यवसितप्रकोपा हि भवन्ति लोके हि यो यस्याश्रयदानादिना उप- रयणायरो उ गच्छो (३१७-१-१०) महात्मानः । (२०९-२-३) कारी स ततः स्निग्धदृष्ट्यवलोकनमधु ॥ ७१ ॥ परिणामसुन्दरं तदा पातकटुकमप्युपादे- रसम्भाषणादिका महतीं प्रतिपत्तिमर्हति । | रीढा संपत्तीविहु न खमा संदेहियंमि यम् (२०९-२-१२) (२४५-१-१३) । भत्थंमि (५-१-७) +%AAAAAAAA ॐRNA "आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~88 Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सक्तावलि-आदि आगमीय लोकोक्तय: [बृहत्कल्प-लोकोक्तयः] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) आगमीयकोकोक्ती ॥७२॥ FE FEEVEREves नायकप पुण अत्धे जा वि विपत्ती स | सेणा बह य सोभइ बलवइ गुत्ता तहः । अकसायं निवाण । (७६-२-१०) निदोसा। (५-१-७) जावि । (३७-२-२) दत्त्वा दानमनीश्वरः । (८६-२-१५) चूयफलदोसरिसी चूयच्छायपि वजेद। ऋषयो मन्युमहरणाः (४६-१-२) . कडगा य बह महिलियाण (८८-१-१) ल्पस्य (५-२-१०) खड्डामलो (वृद्धार्थे) पूर्वलिभाखाओ ण हु अस्सरीरो भवइ धम्मो (१०३-१-१३) लोकोक्तयः पासगएवि विवकखे बरर सपक्खं (वृद्धाथै) । ५९-१-८ पाणियसद्देण उवाहणाउ णाविन्भलो अवेक्खं तो। (६-१-७) साधुमप्रावृतं दृष्ट्वा गृहस्था आदर्शो दृष्ट मुयइ । (१३९-१-८) भोजिकामिवादिषु शरीरमात्रभिन्नेषु न | इत्यमंगलं मन्यते (६०-१-१३) पंच य सक्खीउ धमस्स । (१४४-१-१२) किमपि गोपनीयम् । (७-१-७) वंदामि उप्पलजं अकालपरिसडिय- अलं विरोहेण अपंडिपहिं । (१४९-१-१५) निग्गंधं नवि वायद । (११-२-१४) पेहुणकलावं । धम्म किहणुन काहिर किं सत्तजुसस्स करेइ बुद्धी-वसुंधरेय छाप व पभायं न वि सका (११-२-१४) कष्णा जस्सेत्तिया विद्धा ॥ (६१-१-३) जह वीरभोजा । (१५०-१-१७) वालाश्च वृद्धाश्च अजंगमाश्चेति लोकेऽपि गोसे चिय अदाए पेच्छताणं सुहं कत्तो कजे सच्चेण होयम्यं । (१६२-३-३) तावदेतेऽनुकम्पनीयाः । (२२-२-५) एते धर्मकंचुकाः प्रविष्टा लोकं मुष्णन्ति दुग्घासे खीरवती गावी पुस्सा कुडुंबभर अभ्रद्दधतः कलह उपजायते (६६-२-१२) एवमप्रीतिके चतुर्गुरवः । (१६५-१-७) णट्ठा मोत्तुं फलदं व रुक्खं को मंद अवच्छलत्ते य दसणे हाणी (७३-२-६) सउणीवि रक्सर गई । (१६५-१-५) ॥७२॥ फलफले पोसे । (२३-१-३) अकसायं खु चरितं । अम्हे ठितेल्लकश्चिय अपवत्तं वहह गः बहुसंगहिया अज्जा होइ थिरा ईदलट्ठीव।। कसायसहिओन संजओ होई । (७३-२-८) तुम्मे । (१६६-१-३) . (३७-२-५) । सीयघरसमो उ आयरिओ । (७६-२-६) | जो जग्गति सो सया धणो । FFEvk "आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~89~ Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग 1] श्री आगमीय सूक्तावलि आदि आगमीय लोकोक्तय: [बृहत्कल्प-लोकोक्तयः ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः आगमीय सूक्तावलि आदि (आगम-संबंधी - साहित्य) (१६७-२-४) नालस्सेण समं सुखं न विजा सह श्रीनिया न बेरगं ममतेणं नारंमेण दयाआगमीय आलुया । (१६७-२-१२) लोकोक्तौ गनापुजोया साह । (१७६-१-४) मो को दाणि हंसेण किजेज्ज कागे । ।। ७३ ।। (१७९-२-८) न सुत्तमरथं अतिरिश्च जाति (१९७-१-१) अत्थो जहा गच्छति पजवेसु सुतंऽपि अत्थाणुचरं पमाणं (१९७-१-५) तरिय व किं विसमदोसं । ( १९८-१-१५) णय बंधर दिट्टि दिट्ठीं । (२१४-२-१५) कायच्यो पुरिसकारी समादिसंघाणद्वाप । (२११-१-६) वलसfरसो चैव होर परिणामो । (२३४-१-१५) लक्खणमिच्छति गिट्टी (२३५-२-९) समणस्सवि पंचगं । (२६७-१-२) अकारणा नरिथह कज्जे सिद्धी । तृतीयखंडे: पूइंति पूइयं इत्थियाओ पापण ताओ लघुसत्ता । (६-१७) अपेण बहुं इच्छर । (१९-१) विसुद्धआवणो समणो । (२९-१) दम्मेति दारुणाविद्दु दंडेण जहावराहेण । ( २२-१-९) 1 दीहो हु रायहस्थो (३३-२-१) दत्त्वा दानमनीश्वरः ( ३५-१-२) सुणमाणावि न सुणीमो सम्झायाणनियमाउता (५९-२-७) सायचं सोऊण वि नहु लम्भा इक्वि जाणो । (५९-२-७) अतो न होइ जोगो । (१०५-२-२ ) ग विविक्तविवंभरसो हि कामः । णिस्संचया उ समणा (११५-२-३ ) भरिओ लोगो अवायाणं (११६-२-१३ ) कज्जं सज्जं तु साहए मतिमं । (११७-१-४) विसकुंभा ते मपहाणा (१२३-१-१३) मो नेव य संका विसे किरिया । (१२३-२-३ ) दुक्ख खु विमुचितं गुरुणो (१३३-१-१३) चरितवणा प्रतिसेवमानेन चारित्रं तदे स्थापितम् । (१३९-२-२) लजामपश्च पुरुषस्त्रियोरलश्कारः । 1 दा ~90~ "आगम-संबंधी - साहित्य" श्रेणी [ भाग-1] बृहत्क श्री ल्पस्य आ लोकोक्तयः भा (१६७-२-१५) हे भुंजामु ताथ भोप दीहो कालो तवगुणाणं । (१७२-१-१) स्त्रीणां च लज्जा विभूषणा । (१९६-२-११) घृतेन वर्धते मेधा (२०९-२ ) जिला पत्रवता सभा (२०९-२ ) ।। ७३ ।। Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [भाग-1] श्री आगमीय सूक्तावलि-आदि आगमीय लोकोक्तयः [बृहत्कल्प+व्यवहार पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः आगमीय सूक्तावलि - आदि (आगम-संबंधी- साहित्य) ॥ ७४ ॥ 3CXX श्री पृष्यतां कलिना कलिः । (२१८-२-२ ) मरणपयसानो जीवलोकः । (२३१-१-८) आगमीय श्री तपोधना अहिरण्यसुवर्णाः (२४४-२-१५) लोकोक्की आ अनियाणयं निष्याणं अनियाणया सेवा } (२४८-२-१०) गं मो द्धा भा | आकितिमतो हि नियमा सेसा हि हति लडीओ। (२८१-१-५) -जायं पितिवसा नारी दत्ता नारी पतिव्यसा । विहवा पुत्तचसा नारी नत्थि नारी सवसा ॥ (३०४-१-४) जायंपिय रक्खंती मातपिया सासुदेवरा दिष्णं । पितिभावपुत्तविहवं गुरु गणिणी य एव अपि ॥ (३०४-१-७) गाणिया अपुरिसा सकवाडं घर परं तु ( आगामी सूक्तावलि १ सुभाषित २ संग्रहश्लोक ३ लोकोक्तयः ४ ) अथ व्यवहारलोकोक्तयः तृतीयोदेश के :मोक्षायैव तत्ववेदिनां प्रवृत्तेः (२७९-२-८) 卐 卐 तो पविसे (३०४-१-१०) लोके बहुभिरकृत्ये सेवितेऽयं न्याय: शतमध्यं सहस्रमदण्डयं । (३१२-१-१०) भवसय सहस्वलई जिणवयणं भावभो अहंत जस्स न जाये दुक्खं न तस्स दुक्ख परे दुहिते ॥ (३१४-१-११) वृपसागारिकं नीरसमपरो वृषभश्चर्षयति । (३१६-२-१२) इत्यागमयलोकोकमः ~91~ 卐 मुनिश्री दीपरत्नसागरेण पुन: संपादितः “आगम-सूक्तावलि-आदि" परिसमाप्ताः बृह० श्री व्यवहारयोलोकोक्तयः आ ॥ ७४ ॥ Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य आनंद-क्षमा-ललित - सुशील-सुधर्मसागर गुरुभ्यो नमः भाग-1 पूज्य आगमोध्धारक आचार्य श्री सागरानंदसूरीश्वरेण संशोधित: संपादितश्च श्री आगमसूक्तावल्यादि (किंचित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह ) मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः “आगम-सूक्तावलि-आदि" नाम्ना परिसमाप्तः आगम-संबंधी - साहित्य' श्रेणि, भाग -१ ~92~ Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ਰੂਸ ਨੂੰ ਜਾਨ ਸ ਮ ਸ ਸ ਸ ਸ ਸ ਤੇ ਸ ਰਸ ਬਾਲ ਨੂੰ ਆਤਸ਼ ਨੂੰ ਸਮਝ ਨੂੰ ਤਰਸ ਗੁਰਸ਼ ਕਰਕੇ 3 ਗ ਲ ਵੀ ਹਰ . आगम वाचना शताब्दी वर्ष ਇਕ ਕ ਲ ਹ ਬਲ - 93 Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बारा आजा आज नमो नमो निम्मलदसणस्स आगम_संबंधी साहित्य मूल संशोधक अभिनव.संकलनकर्ता PRASTRA RSHAN । Dainmens Prasidieo पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्य श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराज आगम दिवाकर मुनिश्री दीपरत्नसागरजी M.Com., M.Ed., Ph.D., श्रुतमहर्षि] प्रत प्राप्ति और पेज सेटिंग कर्ता: के चेरमन श्री प्रवीणभाई शाह, अमेरिका मुद्रक : नवप्रभात प्रिन्टींग प्रेस अमदाबाद Mo 9825598855/9825306275 Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ईस प्रोजेक्ट के संपूर्ण-अनुदान-दाता सच्चारित्र चूडामणि स्वर्गस्थ पूज्यपाद गच्छाधिपति आचार्यदेव श्री देवेन्द्रसागर सूरीश्वरजी महाराज साहेब श्री परम आनंद श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ वीतराग सोसायटी, प्रभूदास ठक्कर कोलेज रोड, पालडी, अमदावाद करीब पचास साल पहेले परम पूज्य स्व र्गस्थ गच्छाधिप आचार्य देव श्रीमद् देवेन्द्रसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब द्वारा संस्थापित इस संघ में श्री शीतलनाथ भगवंत का जिनालय भी है, जिन के प्रतिष्ठाचार्य भी पूज्य देवेन्द्रसागरसूरीश्वरजी म० ही है । इस संघमें पूज्य साधू -भगवंत एवं साध्वी - महाराज के लिए उपाश्रय भी है, जहां हर साल चातुर्मास करवा के श्रावक-श्राविकाओ को धर्म-आराधन से लाभान्वित करवाया जाता है । इस संघमें आयंबिलभवन, उबाला हुआ पानी, ज्ञान-भण्डार एवं पाठशाला बहोत अच्छी सुविधा प्रदान हो रही है । ऐसे सम्यग् -मार्गी संघ की सद्भावना और प्रभावक आचार्य पूज्य श्री हर्षसागरसूरिजी म० की प्रेरणा से इस शास्त्र के लिए अनुदान प्राप्त हुआ है । 95 Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आग आ मल संशोधक याजमान आज - पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्य श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराजसाहेब गम आगम आगम आगम आगम आगमीय-सूक्तावलि-आदिः आजम आज अभिनव-संकलनकर्ता आजम / आगम दिवाकर मुनिश्री दीपरत्नसागरजी आगम [M.Com., M.Ed., Ph.D., श्रुतमहर्षि] आजम आगम आजम आजम - ~96~ आजम आजम आजमा ~964