Book Title: Aagam Sambandhi Saahitya 01 Aagamiy Sooktaavalyaadi
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Param Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
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[भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि
आगमीय सूक्तावलि [बृहत्कल्पसूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य)
श्री
बृहत्कल्पस्य
सूक्तानि
आगमीय- सूक्तावली
॥३८॥
REFERREEEV
जह तुरियं नागच्छा संग्गा गुरुए चउम्मासे ॥ २८८-१-१०३८ न वो पत्थ पमाणं न तवस्सितं सुयं न परिआओ। श्री ३० जह भमरमयरिगणो निवतंती कुसुमियंमि चूयवणे । अविय खीणंमि वेदे थीलिंगं सव्यहा रक्खं ॥ (३१५-१-४)
यहोर निघायच गेलण्णे फायचजणं ॥ २८८-१-१३ | ३९ सीहं पाले गुहा' अधिहाईतेण सा महिहीया । तस्स ३१ सोऊण ऊ गिलाणं जो उययारेण आगओ सुद्धो। पुण जोव्वर्णमि पओयणं किं गिरिगुहाए ? ॥ (३१६-१-१५)
जो उ उबेहं जा लगद गुरुए स वित्थारे ॥ (२८८२-१३)| द्वितीये संडे३२ पडिचरा(रया मि गिलाण गेलपणे वावडाण वा काई। ४० न य सो भायो बिजर अदोसवं जो अभिययस्स ॥ (२-२-१)
तिस्थाणुसजणा खलु भत्तीय कया हवइ एवं ॥ (२८८-२-१३) | ४१ जदया सहीणरयणे भवणे कासा पमायासेणं । ३३ वंधुजणविष्पओगे अमायपुत्तेवि वट्टमाणमि। तहवि | डझंति समादित्ते अपिच्छमाणस्सवि वसूणि ॥
गिलाणे सुविहिया वस्थंति वइत्तर्ण साह ॥ (३०३-२-१४)। इयं संदसणसंभासणेहि संदीविभो भयणपण्डी। A. ३४ सव्वजगजीवहियं साहुंन जहामु एस धम्मो मे । बंभादी गुणरयणे उज्झइऽणिच्छस्सवि पमाया ॥ (४-१-५) AL जति व जहागो साहुं जीवियसेत्तेण किं अम्ह ॥ (३०४-१-८) | ४२ पावस्स लोगे पटिहार पायो, कलाणकारिस्स य मा ३५ जर संजमो जइ तवो दढमित्तितं जप्तकारितं ।
साहुकारी॥
(११-१-१२) जर भं जा सोयं एपसु परं न अग्नेसु ॥ (३०४-२-१)|४३ वारियवामो बलियतरं वाहए मोहो॥ (१३-१-७) ३६ सच्चं तबो मसीलं अणहिक्खाओ अपगमेगस्स । ४४ मोहग्गिाहुइनिभाहिईयवायाहऽहियवायाहि । जा बंभ जइ सोयं एयासु परं न अन्नासु ॥
धंतपि घिइसमत्था चलंति किमु दुबलपिईआ॥ (१३-१-११) ३७ बाहिरजलपरिटढा सीलनुगन्धा तवोगुणविसुद्धा । ४५ संदसणेण पीई पीईओं रह रंड वीसभो।
धन्नाण फुरनुपम्ना एया अवि होज अम्हंपि ॥ (३१३-१-२)| बीसंभाओ पणओ पंचविहं बहुए पेम्मं ॥ (१६-१५)
॥३८॥
"आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1]
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