Book Title: Aagam Sambandhi Saahitya 01 Aagamiy Sooktaavalyaadi
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Param Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad

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Page 51
________________ श्री आगमीय - सुक्तावल ||३९|| [ भाग-1] श्री आगमीय सूक्तावलि आदि आगमीय सूक्तावलि [बृहत्कल्पसूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः आगमीय सूक्तावलि आदि (आगम-संबंधी - साहित्य) भा (४६-२-२) ४६ अपि संदेह द कंपंति जा ल्याओ व अबलाओ पगहालंगाड रक्खा अओ इत्थी ॥ ( २३-२-५) ४७ जइभागगया मत्ता रागादरीणं तहा चओ कम्मे । रागाइविरयाविड पायं वत्थूण विहरते ॥ ४८ मोहोदरण जाता जीवितेवि इत्थी देहमि दिट्ठा दोसपविती किं पुण सजिए भवे देहे ॥ ४९ कम्मं चिति सबसा तस्सुदयंमि उ परम्सा होंति । रुपखं दुरुह सबसो विगलइ स परव्यसो तत्तो ॥ (६९-२- १०) ५० कम्मवसा खलु जीवा जीवबसाई कहिंचि कम्माई । (५९-२-७) कत्थई घणओ बलवं धारणिओ कत्थई वलवं ॥ (६९-२-१४) ५१ जो जस्स उ उवसामह विजझवणं तस्स सेण कायव्यं । जो उ उदेह कुजा आवज मासियं लहुयं ॥ (७१-२-२) ५२ परपत्तिया न किरिया मोपतुरठं च जयसु आयडे । अविय उहाबुत्ता गुणोषि दोसो हव एवं ॥ ( ७२-२-१४) ५३ आयडे उघडता मा य परमि बावडा होह । हंदि परट्ठाउता आयडविणासगा होह ॥ (७२-१-९) ५४ ताघो मेओ अयसो हाणी दंसणचरितनाजाणं । साहुओसो संसारवणो साहिकरणस्स ॥ (७३-१-८) ५५ जह कोहारविबुडी तह हाणी होइ चरणेवि ॥ ( ७३-२--४) ५६ साहूण पदोसेण य संसारं सोवि बढे । (७३-२-१०) श्री ५७ जं अज्जियं समीखहरहि तवनियमवंभ्रमइयहिं । आ (७४-२-१) तं दाणि पच्छनाहिसि छतो सागपतेहिं ॥ (७४-१-८) ५८ जं अजियं चरितं देणापवि पुव्यकोडीए । तंपि कसाइयमितो हारेर नरो मुद्दतेणं ॥ ५९ आरंभनियत्ताणं अकिणंताणं अकारविंताणं । धम्मट्ठा दायव्वं गिहीहि धम्मे कयमणाणं ॥ (८८-२-४) ६० पगईपेलवसत्ता लोभिज्जर जेण तेण वा इत्थी । अविय टु मोहो दिप्पइ सइरं तासि सरीरेसुं ॥ (९०-१-३) प्र ६१ जहवियफासुगदव्वं कुंथुपणगाइ तहवि दुप्पस्सा | पच्चक्खनाणिणोऽबिहु राईभत्तं परिहरति ॥ (९८-१-६) भा ६२ दोसे चैव विमग्गर गुणदेखि सेण निच्चमुज्जुत्ता । (१३९-१-१५) गः ६३ संपुष्णमेव तु भवे गणित्तं, जं कंद्रियाणं पविति कखं । (१४३-२-२) ६४ भीरू य किच्चेऽवला चला य, आसंकितेगा समणी "आगम-संबंधी- साहित्य श्रेणी [भाग-1] ~51~ द्वा बृहत्कल्पस्य सूक्तानि ॥३९॥

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