Book Title: Aagam Sambandhi Saahitya 01 Aagamiy Sooktaavalyaadi
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Param Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad

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Page 22
________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [विशेषावश्यकसूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) श्री आगमीय विशेषावइयकस्य सूक्तानि आ सूक्तावली ॥१०॥ यो सगया निमित्ताई सुभासुभफलं निवेति ॥ (१३८)|१५ अह देवेणं भणिय जिणिडे घेप्पं सि रयणा ॥ (१२०) ३ एगपएस खेत सत्तपएसा य से फुसणा॥ (२४५)| १६ केषाश्चित् तीथिकानामयं प्रवादः 'पुण्यमेवैकमस्ति ४ दो बारे विजयाईसु गयस्स तिनऽच्चुए अहव ताई।। न पापम् । अन्ये त्याहु-पापमेवैकमस्ति न तु पुण्यम्। अइरेगं नरभवियं नाणाजीवाण सम्वद्ध.॥ (२४६) अपरे तु वदन्ति-'उभयमप्यन्योऽन्यानुविद्धस्वरूपं ५ जं वत्धुमत्थि लोए तं सवं सवपजायं ॥ (२६६) मेचकमणिकल्पं संमिश्रसुख-दुःखाख्यफलहेतुः ६ आसज्ज उ सामित्तं लोइय-लोउत्तरे भयणा । (२८३)| साधारणं पुण्यपापाख्यमेकं वस्तु' इति । अन्ये तु ७ जइ उवसंतकसाओ लहइ अर्थतं पुणोवि पहिवार्य प्रतिपादयन्ति स्वतन्त्रमुभयं विविक्तसुख-दुःखकारणं नहु मे बीससियव्वं थेबेवि कसायसेसम्मि ॥ 'होजत्ति' भवेदिति । अन्ये पुनराहुः-'मूलत: कर्मव ८ अण थोवं वण थोवं अग्गी थोवं कसाय थोवं च नास्ति स्वभावसिद्धः सवोऽप्ययं जगत्त्रपक्ष:। (७९२) नहु मे बीससियब्ध थेबंपि हुतं बहुं हो। (५६९)/१७ जे जत्तिया पगारा लोप भयहेभयो अविरयाणं । दासत्तं देइ अणं अइरा मरणं वणो विसप्पतो। ते चेव य बिरयाणं पसत्थभावाण मोक्खाय ॥ (१०२६) सब्यस्सदाहमग्गी विंति कसाया भवमर्णतं ॥ (५७०)|१८ अणुरसो भत्तिगओ अमुई अणुअत्तभोषिसेसग्नू (१२९३) १० सीसोवि पहाणयरो गंतेणाबियारियग्गाही (६१८) पियधम्मो ददधम्मो संविग्गोऽबज्जऽभीरु असढो य । ११ अविगलगोविक्केया ब जो बिमहक्खमो सुगंभीरो। (६१९) खंतो दंतो गुत्तो घिरध्वय जिंइदियो उज्जू ॥ १२ अधिणासियसुत्तत्था सीसा-यरिया विणिहिट्ठा। (६३९) असो तुलासमाणो समिओ तह साहुसंगहरओ य । १३ संभवइ, जं अगहिउँ परदोसं चिट्ठप कोई (६२०)। गुणसंपभोववोओ जुग्गो सेसो अजुग्गो व ॥ (१९९४)। १४ गरुया पिच्छंति परस्सन हु दोसं। (६२०) १९ नाणस्स होर भागी थिरतरओ दसणे चरिसे य । ॥१०॥ "आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~22~

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