Book Title: Aagam Sambandhi Saahitya 01 Aagamiy Sooktaavalyaadi
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Param Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad

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Page 43
________________ [भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [जाताधर्मकथासूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य) श्री आगमीय सूक्तावली ज्ञाताधर्मकथायाः सूक्तानि तथा-हीणगुणो बिहु होउं सुहगुरुजोग्गाजणियसंवेगो। सयणबि कोरत सहिज सपि पडिकलं ॥ (१७२) पुण्णसरुवो जाया विवहमाणो ससहरोष्य ॥ (१७१)/५ मिच्छत्तमोहियमणा पावपसत्ताधि पाणिणो विगुणा । ४ जह दावद्दवतरुवणमेवं साहू जहेव दीविच्चा। फरिहोदगं व गुणिणो हवंति वरगुरुपसायाओ ॥ (१७७) वाया तह समणाइय सपखवयणाई दुसहाई ॥ |६ तिरियाणं बारितं निवारियं अह य तो पुणो तेसि । जह सामुद्दयवाया तहऽषणतित्थाइकठ्यपयणाई। सुब्बा बयाणपि हु महय्ययारोहणं समण ॥ कुसुमाइसंपया जह सिवमग्गाराहणा तह उ॥ न महब्वयसम्भावेवि चरणपरिणामसम्भवो तेसि । जह कुसुमाइविणासो सिवमग्गविराहणा तहा नेया। न बहुगुणाणंपि जओ .बलसंभूइपरिणामो॥ (१८३) जहदीवबाउजोगे वह इड्डी ईसि य अणि ही॥ ७ संपन्नगुणोवि जओ सुसाहुसंसग्गिय जिओ पाये। तह साहम्मियवयणाण सहमाणाऽऽराहणा भवे बहुया। पावर गुणपरिहाणीं दद्दरजीयो प्य मणियारो॥ इयराणमसहणे पुण सिवमग्गविराहणा थोवा ॥ तित्थयरवंदणथं चलिओ भावेण पाच ए सगं । जह जलहिबाउजोगे थेविट्टी बहुयरा यऽणिड्डी य॥ जह दद्दरदेवेणं पत्तं वेमाणियसुरतं ॥ (१८४) तह परपक्वक्त्रमणे. आराहणमीसि बहु-इयरं ॥ ८ जाय न दुक्ख पत्ता माणभंसं च पाणिणो पायं। जह उभयवाउबिरहे सव्या तरुसंपया विणट्ठति ॥ ताब न धम्म गेण्हंति भावओ तेयलीसुडम ॥ (१९२) अनिमित्तोभयमच्छररुवे विराहणा तह य॥ ९ चंपा इव मणुयगती धणो व्य भयवं जिणोदएकरसो। जह उभयवाउजोगे सव्वसमिट्टी वणस्स संजाया ॥ अहिछत्तानयरिसमं इह निव्याणं मुणेयव्यं । तह उभयचयणसहणे सिवमग्गाराहणा बुत्ता ॥ घोसणया इव तित्थंकरस्स सिवमग्गदेसणमहन्छ । ता पुग्नसमणधम्माराहणचित्तो सया महासत्तो। चरगाइणोव्य इत्थं सिवसुहकामा जिया वहवे ॥ ॥३१॥ “आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1] ~43~

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