Book Title: Aagam Sambandhi Saahitya 01 Aagamiy Sooktaavalyaadi
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Param Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
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[भाग-1] श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि
आगमीय सूक्तावलि [उत्तराध्ययनसूक्तानि] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: आगमीय-सूक्तावलि-आदि (आगम-संबंधी-साहित्य)
आगमीय
उत्तराध्यय
नस्य सूक्तानि
सूक्तावली ॥१५॥
३७ माणुसत्ते असारंमि, वाहीरोगाण आलए ।
__ एव धम्म चरिस्सामि, संजमेण तबेण य॥ .जरामरणपत्थंमि, खणंपि न रमामहं ॥
| ५६ जया मिगस्स आयंको महारण्णमि जायई । ३८ जम्म दुक्खं जरा दुक्खं, रोगा य मरणाणि य।
अच्छतं रुक्खमूलंमि, को गं ताहे चिगिच्छई। ॥ अहो दुक्खो हुसंसारो, जत्थ कीसंति जंतुणो॥ ४७ को वा से ओसह देश, को वा से पुच्छई सुई। ३९ खित्तं वत्थं हिरणं च, पुत्तदारं च बंधवा ।
को से भत्तं व पार्ण वा, आहरित्तु पणामई? ॥ चदत्ताण इमं देहे, गंतव्यमवसस्स मे ॥
४८ जया य से सुही होइ, तया गच्छर गोअरं । | ४० जह किंपागफलाणं, परिणामो न सुंदरो।
भत्तपाणस्स अट्ठाए, बल्लराणि सराणि य ॥ एवं भुत्ताण भोगाणं, परिणामो न सुंदरो॥ (४५४)
४९ खाइत्ता पाणियं पाउं, बल्लरेहिं सरेहि य । ४१ तं वितऽम्मापियरो, एवमेयं जहाफुडं।
मिगचारियं चरित्ताण, गच्छई मिगचारियं । इहलोगे निप्पिवासस्स, नस्थि किंचिवि दुकरं ॥
५० एवं समुट्ठिए भिक्ख, एवमेव अणेगए । ४२ सारीरमाणसाचेच, वेयणा उ भणंतसो।
मिगचरियं चरिताणं, उई पक्कमई दिसं ॥ मए सोदामों [*] भीमानो [], असई दुक्खभयाणि य॥ ५१ जहा मिए एग अणेगचारी, अणेगवासे धुवगोभरे भा एवं ४३ जरामरणकतारे, चाउरते भयागरे ।
मुणी गोयरियं पविटे, नो हीलए नोवि य खिंसइजा ॥ (४६२) मया सोढाणि भ.मार, जम्माई मरणाणि य॥ (४५८)/५२ सीहत्ता निक्खमिडं सीहत्ता चेव विहरसु पुत्ता। ४४ सो वितऽम्मापियरो! एवमेयं जहाफुडं।
जह नवरि धम्मकामा विरत्तकामा उ विहरति । l, परिकम्म को कुणई, अरने मिगपक्खिणं?॥
५३ नाणेण दंसपेण य चरित्ततवनियमसंजमगुणे हिं। ५ एगम्भूभो भरम्ने चा, जहा ऊ चरई मिगो।
संताप मुत्तीए होहि तुम यहमाणो उ (४६४)
"आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणी [भाग-1]
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