Book Title: Yoga
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ ध्यान और अध्यात्म का मौलिक मार्ग प्रदान करने की कोशिश की। अनुपश्यना और विपश्यना के नाम से महावीर और बुद्ध ध्यान के उपदेष्टा हुए, लेकिन दोनों ने पहले योग-विज्ञान को जीने का प्रयत्न किया। बुद्ध ने स्वयं स्वीकार किया है कि प्रारम्भिक अवस्था में उन्होंने जैन मुनियों के साधना-मार्ग को अपनाया और वैदिक परम्परा के आचार्यों द्वारा बताए गए योग-मार्ग को भी जीने का अभ्यास किया। यह दूसरी बात है कि आगे चलकर उनके लिए विपश्यना का मार्ग सरल बना। विपश्यना एक तरह से सचेतनता की साधना है जिसमें व्यक्ति श्वास,शरीर,शरीर की संवेदना, चित्त की प्रकृति और संस्कारों का अधिक-से-अधिक साक्षी होने का प्रयत्न करता है। आश्चर्य की बात है कि हज़ारों वर्ष पूर्व पतंजलि ने आदि स्रोत के रूप में, आदि प्रवर्तक के रूप में योग को स्थापित किया, योग का सुव्यवस्थित मार्ग देने में सफलता प्राप्त की। पतंजलि योग के शिखर-पुरुष हैं। उन्होंने हज़ारों साल पहले योग को प्रकाशित किया, उसे एक व्यवस्था दी और मानव-समाज के साथ जोड़ा। योग जो कभी ऋषि-मुनियों तक ही सीमित था उसे उन्होंने जन-सामान्य के लिए भी उपयोगी बनाया। हजारों वर्षों से लोग इसे अपना कर स्वस्थ, सहज और तनावमुक्त जीवन जीने की कोशिश कर रहे हैं । इस दरमियान अनेकानेक मुनियों और प्रबुद्ध महानुभावों के चिंतन में बहुत-सी पगडंडियाँ बनीं, बहुत से रास्ते बने, लेकिन कोई भी पतंजलि को दरकिनार न कर सका। सभी महानुभाव ससम्मान उनके योगविज्ञान को अपने साधना-पथ के साथ जोड़ते हैं। आध्यात्मिक पथ की ओर अग्रसर मुमुक्षुओं और साधकों के लिए पतंजलि का योग-विज्ञान एक ध्रुव नक्षत्र है, दीपशिखा है, दिन में सूरज का प्रकाश है तो रात में चन्दा की चाँदनी है। जैसे किसी कक्ष में दीपक जला दिया जाए तो कक्ष का कायाकल्प हो जाता है ऐसे ही जीवन में योग को घोल लिया जाए तो जीवन भी बेहतर बन जाता है। योग प्रथम है, मुक्ति अंतिम। ___ मैं पतंजलि का प्रशंसक हूँ। मैंने भी पतंजलि के योग-सूत्रों से अपने साधना पथ को प्रकाशित किया है। पतंजलि मनोवैज्ञानिक हैं। उन्होंने मनुष्य के मन को समझा और मन की उठापटक से मुक्त होने के लिए मार्ग दिया। उन्होंने अपने योगशास्त्र का प्रारम्भ ही- योग: चित्तवृत्ति निरोधः- से किया है। चित्त की वृत्तियों का निरोध ही योग है। उन्होंने योग को सर्व प्रथम व्यक्ति के चित्त और उसके संस्कारों के साथ जोड़ा है। वे एक वैज्ञानिक भी हैं तभी तो योग का सुव्यवस्थित मार्ग हमें दिया। वे अध्यात्मवेत्ता भी हैं इसीलिए उन्होंने आत्मा की गहराइयों को छूने का प्रयत्न किया - शब्द, अभिव्यक्ति और लेखन के ज़रिए। यह अलग बात है कि मैंने 12 | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 194