Book Title: Vyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Author(s): Ramashish Pandey
Publisher: Prabodh Sanskrit Prakashan

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Page 14
________________ (क) निर्वचन विवेचन I निर्वचन शब्द निर् +वच् परिभाषणे + ल्युट् प्रत्ययसे निष्पन्न होता है। इसके अनुसार निर्वचन शब्द निःशेष या निखिल वक्तव्य का वाचक है । शब्दों की प्रकृति के अनुसार संभावित अर्थो के अन्वेषण में प्रत्यक्ष, परोक्ष या अति परोक्ष वृत्तियों के द्वारा उपन्यस्त विचार निर्वचन के अन्तर्गत समाहित हैं । शब्दों में अर्थ की अनकेता कारण - वैविध्य को द्योतित करती है । मनुष्य के जो कुछ परिभाषण है, सभी प्रसंगानुकूल एवं अभिव्यक्ति सम्बद्ध हैं। परिस्थितियों एवं व्यवहार के विविध आयामों में प्रयुक्त शब्द प्रायः एक अर्थ पर स्थिर नहीं रहते । शब्दोंमें उस अर्थान्तरता का दर्शन प्रयोग के क्षेत्र में तो होता ही है, साहित्यके क्षेत्र में बाहुल्येन प्राप्त है । कालान्तर में एक ही शब्द अपने विविध अर्थों के साथ आकर मनुष्य की जिज्ञासा को तेज कर देता है । व्यक्ति वैसी परिस्थिति में, उन शब्दों के अर्थात्मक अनुसन्धान में संलग्न उसके सम्बन्ध में विविध सार्थक कल्पनाएं करता है, जो उन अर्थों की ओर स्पष्ट संकेत करती है। कल्पनाओं में सार्थकता की मात्र न्यूनाधिक हो सकती है। परिस्थितियों के सही आकलन के अभाव में कल्पनाएं निराधार भी हो सकती हैं लेकिन अर्थात्मक अनुसन्धान में ऐसी परिस्थितियां कम आती हैं । फलतः शब्द एकार्थक हों या अनेकार्थक सभी आख्येय हो जाते हैं । अर्थात्मक अनुसन्धान में उनका स्वरूप स्पष्ट हो जाता है। इन परिस्थितियों से सम्बद्ध शब्दों की व्याख्या ही निर्वचन है। निर्वचनमें प्रत्यक्ष वृत्तिकी अपेक्षा परोक्ष एवं अतिपरोक्ष वृत्ति में निहित अर्थोका प्रकाशन ही विशेष महत्त्व रखता है। प्रत्यक्ष वृत्ति भी निर्वचन का अंग है । शब्दोंमें अर्थकी स्पष्टता एवं ध्वन्यादि सम्बद्धता होने पर प्रत्यक्ष वृत्तिसे ही उसका अर्थ प्रकाशन होता है । शब्दोंकी अनेकार्थता एवं अर्थ संकुलता होने पर परोक्ष एवं अतिपरोक्ष वृत्तिका सहारा लेना पड़ता है। परोक्ष एवं अतिपरोक्ष वृत्ति में अन्तर्निहित शब्दोंके अर्थो का प्रकाशन निर्वचन का प्रधान उद्देश्य होता है। प्रत्यक्ष वृत्ति में अन्तर्निहित शब्दों का अर्थ प्रकाशन तो व्याकरण आदि की प्रक्रिया से भी हो जाता है । प्रत्यक्ष वृत्ति के अतिरिक्त अन्य वृत्तियों में अन्तर्भूत शब्दों के अर्थ प्रकाशन में

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