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धौरजिणिवचरित देवायुको छोड़कर अन्य किसी भी गतिको आयु जिसने बाध ली है उसमें अतग्रहण करनेकी योग्यता नहीं रहती । किन्तु ऐसा जीव सम्यग्दर्शन धारण कर सकता है। मही कारण है कि तुम सम्यक्त्वी तो हो गये, किन्तु व्रत-पक्षण नहीं कर पा रहे।
सर्व निधाय तच्चित्ते श्रद्धाभून्महतो मते । जैने कुतस्तथापि स्याम्न मे प्रव-परिग्रहः ॥ इत्यनुणिकप्रश्नादबादीद् गणनायकः । भोग-संजननाद्वाड-मिथ्यात्वानुभवोदयात् ॥ दुश्चरित्रान्महारम्भारसंचित्यना निकाचितम् । नारकं बद्धवानामुस्त्वं प्रागेबात्र जन्मनि ॥ बद्धदेवायुषोऽन्यायुर्नाङ्गी स्वीकुरुते प्रतम् । श्रद्धानं तु समापत्ते तस्मात्वं नामहीनतम् ।।
( उत्तरपुराण ७४, ४३३-३३) इसी समय गौतम गणधर ने राजा श्रेणिक को यह भी बतला दिया कि भगवान महावीर के निर्वाण होने पर जब चतुर्थकाल की अवधि केवल तीन वर्ष आठ माह और पन्द्रह दिन शेष रह जायेगी तभी उसकी मृत्यु होगी। श्रेणिक इतना दृढ़ सम्यक्त्वी हो गया था कि सुरेन्द्रने भी उसकी प्रयांसा की। किन्तु इसपर एक देवको विश्वास नहीं हुआ और · वह राजाकी परीक्षा करने आया । जब राजा एक मार्गसे कहीं जा रहा था तब उस देवने मुनिका भेष बनाया और वह जाल हायमें लेकर मछलियां पकड़ने लगा। राजाने आफर मुनिकी बन्दना की, और प्रार्थना की कि मैं आपका दास उपस्थित हूँ तब आप क्यों यह अधर्मकार्य कर रहे हैं। यदि मछलियोंकी आवश्यकता ही है तो मैं मछलियां पकड़ देता हूँ 1 देवने कहा, नहीं-नहीं, अब मुझे इससे अधिक मछलियोंकी आवश्यकता नहीं । यह वृत्तान्त नगरमें फैल गया, और लोग जैन-धर्मकी निन्दा करने लगे। तब राजा श्वेणिकने एक दृष्टान्त उपस्थित किया। उन्होंने अपनी सभाके राजपुत्रोंको जीवनवृत्ति सम्बन्धी लेख अपनी मुद्रासे मुद्रित कर और उसे मलावलित कर प्रदान किया। उन्होंने बड़ी प्रसन्नता से इस लेखको अपने मस्तकपर चढ़ाकर स्वीकार किया। तब राजाने उनसे पूछा कि इन मलिन लेखों को तुमने अपने मस्तकपर क्यों चढ़ाया ? उन्होंने उत्तर दिया कि जिस प्रकार सचेतन जीव मलिन शरीरसे लिप्त होते हुए भी वन्दनीय है, उसी प्रकार आपका यह लेख मलिन होते हुए भी हमारे लिए पूज्य है । तब राजाने हंसकर उन्हें बतलाया कि