Book Title: Veerjinindachariu
Author(s): Pushpadant, Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 185
________________ बोरजिणिवरित [ ११.२.१ एकहि वासरि बीरु जिणेसा। आगउ गउ तं नवहुँ नरेसरु ।। आयन्नेवि धम्मु वित्थार। लइय दिक्ख तहिं तेण कुमार ।। संचरंतु आगने तिस्थयरहो। गउ कलिंग-बिसयहो दंतिउरहो ।। पच्छिम-दिसिह दिगंवर-सार । गयकुमारु गिरि-सिहरे भडार उ ।। थिउ आयावणे जोय-निरोह । पणविउ गंपिणु भन्न-नरोह ॥ तन्नयराहियेण पर-सीह । विसम-बहरि-दाणव-नरसीह ।। तिव्वायउ विसहंतु नियन्छि । बुद्धदासु मिय-मंति पपुच्छिउ ।। संघहि काई एउ एमच्छइ । ता पन्चुत्तर पिसुणु पयच्छह ।। धत्ता-एहु अणाहु समीरे सुट्ट कत्थियः । तेणत्यच्छह सामि तिब्बायवे थियड ॥२।। पुच्छिउ पुणु वि गरिंदै आयहो। फिट्ट केम पहजणु कायहो। भणिउ अमचे एत्तिउ किजइ । एयहो सिल तावेपिणु दिजइ ।। ता पुहईसे सो जे पउत्त। कारावहि पडियार निरुत्तउ ।। तेण वि पाविय-रायापसें । सिल लावावेवि मुक्क विसेसें ।। एत्तहे चरिय करेवि नियत्तज | तत्थारूदउ चारु-चरित्तः ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212