Book Title: Veerjinindachariu
Author(s): Pushpadant, Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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धोरजिणिवरिउ
[ १२. १०. १.
गंधु वण्णु रसु फासु स-सहल । सुहमु थूल वजरइ स-सद्दछ ।। थूलु-सुहमु जोण्हा-छायाइन। थूलु सलिलु वीरेण णिवेइउ || थूलु-लु पुष्णु धरणी-मंडल | सम्ग विमाण-पडलु मणि-णिम्मलु ।। सुहमई कम्माइयई स-गामई। मण-भासा-वम्गण-परिणामई ।। वण्णाइयहि रसेहिं अणेयहि । परिणमंति संजोय-विओयहि ॥ पूरण-गलण-सहाय-णिउत्तई। पोग्गलाई विविहार पउप्स हैं। भासिञ्जतउ परम-जिणिः । णिसुणिवि धम्मु सुधम्माणदें ॥ वसहसेणु सुहमा लइयऊ। पुरिमतालापुरवा पावश्यउ ॥
इष वीर-जिणिद-चरिए जिण-देसणा णाम
दोदहमो संधि ॥ १२॥
इय बोर-जिणिंद-चरिउ संपुषणउ ।
{ पुष्पदन्त-कृत महापुराणु सन्धि १०-१२ से संकलित )

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