Book Title: Veerjinindachariu
Author(s): Pushpadant, Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 212
________________ 12. 10. 16 / हिन्दी अनुवार पुद्गल द्रव्यके गुण / उपदेश सुनकर अनेक नरेशोंकी प्रव्रज्या पुद्गल द्रव्य गन्ध, वर्ण, रस, स्पर्श और शब्द ये पंचगुणात्मक हैं / उसके सूक्ष्म, स्थूल, स्थूलसूक्ष्म और स्थूलस्थूल ये चार प्रकार पाये जाते हैं / प्रकाश और छाया ये पुद्गल द्रव्य स्थूलसूक्ष्मके उदाहरण हैं / स्थूलका उदाहरण जाल है, स्थूलस्थूलका यह धरणीमण्डल, एवं मणियोंके समान स्वर्ग-विमानपटल / सूक्ष्मपुद्गल अपने-अपने नामोंवाले नाना कर्मोके रूपमें पाया जाता है, तथा मन और भाषा रूप वर्गणाएँ भी उसीके परिणमन हैं। ऐसा भगवान्ने दयापूर्वक कहा है। यह पुद्गल द्रव्य अनेक वर्णों, अनेक रसों आदि रूप परिणमन करता है और उसका संयोग अर्थात् जोड़ और वियोग अर्थात् विभाजन भी होता है। इस प्रकार जो नानाविध पुद्गलोंका वर्णन किया गया, वह पुद्गल शब्दकी इस नियुक्ति अर्थात् व्युत्पत्ति व शब्द-साधनाके अनुरूप है। जिस द्रव्यका स्वभाव पूरण और गलन रूप हो वह पद्गल है। जब आदिदेव भगवान् ऋषभदेव तीर्थकरने धर्मका यह व्याख्यान किया, तब सद्धर्मसे आनन्दित होकर तथा शुभ भावनाओंसे प्रेरित हो परिमताल नगरके स्वामी वृषभसेन प्रवजित हो गये / सोमप्रभ ब श्रेयांस नरेश्वरने भी अपने मानरूपी स्वरका विनाश कर प्रव्रज्या ग्रहण कर ली। इस प्रकार अपने विषादको छोड़ चौरासी. राजा ऋषभ तीर्थंकरके गणधर हो गये // 10 // इति तीर्थकर धर्मोपदेश विषयक बारहवीं सम्धि समाप्त // सन्धि 12 // इति बीर-जिनेन्द्र-चरित समाप्त

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