Book Title: Veerjinindachariu
Author(s): Pushpadant, Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 199
________________ [१२. ४. २३ पोरजिणिवचरिउ छट्टउ पुणु पमत्त-संजम-धरु । सत्तमु अ-प्पमत्तु गुण-सुंदरु ॥ अट्टमु होइ अउवु अऊवउ । अणित्तिल्लर णवमु अ-वन । दहमउ सुहम-राउ जाणिज्जइ । एयारहमुवसतु भणिज्जइ ॥ बारहमा पर-खीणकसायउ। तेरहमट स-जोइ-जिणु जायउ ।। उज्झिय-तिविह-सरीर-भरतरु । उवरिल्लज अजोइ परु अक्खरु ।। धत्ता--णारय चत्तारि चत्तारि जि पुणु सुर-पवर । तिरियंच वि पंच णीसेसम्मि चडति णर || कम्म-विहम्ममाण स-सरीरा । सासय करणुक्षय विवरेरा। दसण-गाण-सहाव-पहट्टा। होति जीव उकिट-णि किट्ठा ।

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