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१२. ५.३४ ]
हिन्दी अनुवाद
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प्रकार जीव निकृष्ट और उत्कृष्ट होते हैं । जीवोंकी जैसी चेष्टा अर्थात् मन, वचन और काय को क्रिया सम व असम अर्थात् शुभ और अशुभ होती हैं, उसी प्रकार उनमें शुभ और अशुभ कर्मोंक ग्रहण करनेके नाना भेद होते हैं । जिस प्रकार दीपकमें जलता हुआ लेल अग्निकी शिखारूप परिवर्तित होता रहता है, उसी प्रकार कर्मरूपी पुद्गल परमाणु भी जीवों द्वारा ग्रहण किये जाते और तीव्र कषायरूपी रसोंके बलसे उस जीव में प्रमत्तभाव उत्पन्न करते हैं। इस प्रकार कर्मके द्वारा ही कर्मका बन्धन उसी प्रकार हुआ करता है, जैसे अग्निमें पड़ा हुआ ईंधन अग्निभावको प्राप्त हो जाता है। अशुभभावसे अशुभकर्मका तथा शुभभावसे शुभकर्मका सन्धान होता है । परन्तु सिद्ध भगवान् किसी प्रकारका भी कर्मबन्ध नहीं करते। जिनेन्द्र मत के अनुसार अभव्य जीव एक नहीं हैं, वे अनन्त हैं । कर्म भी अनन्त रूप होते हैं, किन्तु विशेष रूपसे उन्हें आठ प्रकारका बतलाया गया है। पहला ज्ञानावरण कर्म है, जिसके पाँच भेद हैं - मतिज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण, अवधिज्ञानावरण, मनः पर्येय ज्ञानावरण और केवलज्ञानावरण | ये अपने- अपने नामानुसार पाँच प्रकार के ज्ञानोंका आवरण करते हैं, अर्थात् उन्हें ढक देते हैं। इन ज्ञानावरणोंसे सर्वथा विमुक्त तो अशरीरी सिद्ध भगवान् ही होते हैं। दर्शनावरण के नव भेद हैं - निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, स्त्यानगृद्धि, निद्रा और प्रचला तथा चक्षुदर्शनावरण, अचक्षुदर्शनावरण, अवधि- दर्शनावरण और केवलदर्शनावरण । इनसे स्पष्टतया उक्त निद्रा आदि शारीरिक दोष उत्पन्न होते हैं तथा चक्षु आदि दर्शनोंका आवरण होता है। तीसरा कर्म वेदनीय दो प्रकारका है - सातावेदनीय और असातावेदनीय । ये वेदनीय कर्मके दो प्रकार क्रमशः सुख व दुःखका अनुभवन कराते हैं। चौथा मोहनीय कर्म है और उसके मुख्यतया दो भेद हैं-दर्शन-मोहनीय और चारित्र मोहनीय | दर्शन - मोहनीयके मिध्यात्व, सम्यक्मिथ्यात्व और सम्यक्त्व ये तीन उपभेद हैं | चारित्र मोहके प्रथमतः कषाय और नोकषाय ये दो भेद हैं । कषायके पहले चार मुख्य भेद और फिर उन चारोंके क्रमशः चारम्वार भेद इस प्रकार सोलह भेद हैं । और नोकषायके नौ भेद हैं जिन्हें आगे बतलाया जायेगा। चार मुख्य कषाय बड़े भीषण होते हैं। वे जीवके भावों में दूषण उत्पन्न करके उसे सप्तम नरक तक ले जाते हैं । ये कषाय हैं- क्रोध, मान, माया और लोभ । अपने कठोर रूपमें ये इतने दुष्कर होते हैं कि उनके रहते जीव उपशम भावको प्राप्त नहीं होता, भले हो