Book Title: Veerjinindachariu
Author(s): Pushpadant, Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 197
________________ १२८ धीरजिणिवचरिड काएं छठियह चवल-थिरेण वि | तिविह तिविह-जोपं वेएण वि ।। जलणिहि-विह वि कसाएं जाया । अट्ट-भेय णाणे विण्णाया ।। संजम-दंसपेण ति-चउ-विह। लेसा-परिमाणेण वि छ-विह। भव्वत्तेण विविह सम्मत्ते। सणिण असणी दो सण्णित्ते ।। आहार आहाय जे जे। चउसु वि गइसु परिट्टिय ते ते ॥ केवलि समुहय विगह-गड़ गया। अझह अजोइ सिद्ध परमप्पय ।। ते ग लेंति आहारु वियारिय। सेस जीव जाणहि आहारिय ।। मग्गण-ठाणई चौदह-भेयई। णिमुण हि गुणठाणाई मि एयई। मिच्छादिहि पहिल्लज गीयउ। सासणु बीयउ मीसु वि तोयउ ।। अबिरय-सम्माइटि चउत्थउ । पंचभु बिरयाविरउ पसत्थउ ।।

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