Book Title: Veerjinindachariu
Author(s): Pushpadant, Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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वीरजिनिवरिउ [ १२. ३. ५पंचिंदिय सण्णि असणिण दोगिण । मण-वजिय जे ते ध्व असगिण | सिक्खालावाढू ण लेति पाव । अण्णाण-गूढ-दढ-मूढ-भाव ॥ असु णव जि समत्तिउ पंच ताहूँ। वज्जर जिणिंदु असणियाहँ ।। लहिं पजनिहिं पजत्तएहि । संफासण-लोयण सोत्तरहि ।। मण-बयाण-काय-रस-घाणहि । आणापागाउ अ प्राणहिं ।। दहहि मि जियंति सपिणय तिरिख । अक्वमि णाणा विह टु-णिरिक्ख ।। जलयर ससाइ पंच-प्पयार । कच्छच मयरोहर सुंसुथार ॥ यहयर समुग्ग फुड-वियङ पक्ख | अण्णक चम्म-घा-लोम-पक्ख ।। थलयर च उपय चउबिह' अमेय । एक-खुर दु-खुर करि-गुणह-पाय ।। उरसाप महोरय अजगराइ। किं ताह. गइंदु वि कवलु होई ।। भुय-सप्प वि बक्खाणिय सभेय |
सरदुंदुर-गोधा-णामधेय ॥ पत्ता--जलयर जलेसु खग तरु-गिरिसु.
थलयर गाम-पुरंसु वणे | . दीवायहि मंडल-मज्झि तर्हि
पढमु दीवु भासंति जणे ।।३।।
संसारिय जीब चउ-विह च-गइ भिगा जिह । इंदिन्य-भाषण पंच-पयार पउत्त तिह ।।

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