Book Title: Veerjinindachariu
Author(s): Pushpadant, Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith
View full book text
________________
संधि १२ तित्थंकर-देसणा
कय-पंजलि-यन एणमंत-सिस
भत्ति-हरिस-वियसिय-बयणु | संसार-दुक्ख-गिव्य उ
जोयवि मिलियउ भन्व-याणु ।। ता णिग्गंत-धीर-दिब्ब-झुणि
तोसिय-फणि-णरामरो। जीवाजीव-णाम-कय-भेयई
तञ्चई कहइ जिग्णवरो॥ साभवाभव जीव दुभेय होति । ते म-भव स-कम्में परिणमंति ।। चउरासी-जोणिहि परिभमंति । अण्णाग-देह-राएं रमंति।। वियलिंदिय सयलिंदिय अणेय । एकिंदिय भासिय पंच-भेय ।। आहार-सरीरिदिय मणाह। आणा-भासा-परमाणूयाहूँ ।। जं कारणु णिवत्तण समत्थु । तं पजत्ति-त्ति भागति एत्थु ।। तं कठिवह परमेसें पात्रत्त । अहमेण ठाइ अंतोमुहुत्तु ॥ जित पारणसु तिह सुर-वरेसु । दस-बरिस-सहासई वसइ तेसु ।। परमें ति-तीस सायर-समाई। मणुपसु तिषिण पलिओषमा ।।

Page Navigation
1 ... 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212