Book Title: Veerjinindachariu
Author(s): Pushpadant, Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 180
________________ १०. ४.४ 1 हिन्यो अनुवार देवों द्वारा वारिषेणको रक्षा । राजाके मनानेपर भी मुनि बीक्षा एवं पलासखेड प्राममें आहार ग्रहण राजाके आदेशानुसार उसके ने रोषपूर्वक पी. ५.९६-३.१४ छोड़े वे सभी वारिषेणके धर्मफलसे कमलपुष्प होकर धरातल पर गिरे। तब राज-पुरुषों ने उसके कण्ट पर खड्गसे प्रहार किया, जैसे मेधपर्वतकी उपकण्ठ भूमिपर बिजलीका प्रहार हुआ हो । किन्तु वह खड्ग भी सुखदायी पुष्पमाला बनकर उसके कण्ठपर ऐसा गिरा जैसे मानो तपरूपी वधने उनके गले में स्वयंवर-माला अपित की हो। उस अवसरपर आकाशमें दुन्दुभी बजी और देवोंने आकर उनके चरणोंकी पूजा की। इस अतिशयका वृत्तान्त सुनकर राजाको बहुत खेद हुआ और उसने स्वयं जाकर अपने पुत्रको मनाया । किन्तु इसपर भी वे कुलभूषण वारिषेण घरमें न रहे । वे क्रोधके विनाशक महाऋषि बन गये। ___ अपनी दीक्षाके व्रतोंका पालन करते हुए, एक दिन धारिषेण मुनि भिक्षाको लिए पलासखेड़ नामक ग्राममें गये। वहां उनका बालकपनका साथी पुष्पडाल नामक ब्राह्मण रहता था। उसने जब वारिषेणको गाँवमें आते देखा तो उन्हें आमन्त्रित किया और आहार कराया। वह मुनिवरके मुखसे कुछ बुलवाना चाहता था, अतएव अपनी भार्यासे पूछकर मुनिके साथ ग्रामसे चला गया। वह सैकड़ों रम्य प्रदेशोंका वर्णन करता जाता था। बहुत दूर तक चले जानेपर उसने मुनिके चरणोंमें प्रणाम किया, किन्तु इसपर भी उन संयमी मुनिने उसे लौट जानेको नहीं कहा, और वे दोनों जन उस स्थानपर पहुँच गये जहां ऋषि-आश्रम था। वहाँ किसी एकने व्यंगात्मक वाणीमें कहा, देखो, इस गुणरूपी मणियोंके खान बारिषेण मुनिका एक सहचर तपश्चरणकी दीक्षा लेने यहाँ आया है ॥३॥ पुष्पडाल ब्राह्मणको दीक्षा, मोहोत्पत्ति और उसका निवारण पूर्वोक्त बात सुनकर वह ब्राह्मण लज्जित हुआ और उसने प्रवज्या ग्रहण कर ली। तथापि उसे अपनी गृहस्थीके भोगविलासका स्मरण बना रहता था। उसने अपने मित्रके साथ बारह वर्ष तक विहार किया और

Loading...

Page Navigation
1 ... 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212