Book Title: Veerjinindachariu
Author(s): Pushpadant, Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 178
________________ १०९ १०. २. १८ । . हिन्दी अनुवाद ऊपर कोई क्रोध नहीं है। किन्तु उद्यानवनमें मैंने चेलनादेवीके गले में महाकान्तिवान् और मुहावना हार देखा है, जिससे मुझे उसे पानेका ही उन्माद हो उठा है और अन्य भोग व धनके लाभकी कोई इच्छा नहीं रही है। हे प्रिय, उसी उद्वेगसे सब कुछ छोड़कर बैठी हूँ। अपनी प्रेयसीको यह बात सुनकर लोगोंको दुःख देनेवाले उस चोरने अपनी उस प्रियाको धैर्य बँधाया। उसने कहा-हे देवी, उठो-उठो, अपना शृंगार करो और चिन्ताको छोड़ो। उस एक हारकी तो बात ही क्या है, और भी जो बस्तु तुम कहो उसे लाकर दे सकता हूँ ॥१॥ विद्यच्चर चोर द्वारा रानोके हारका अपहरण तथा राजपुरुषों द्वारा पीछा किये जानेपर ध्यानस्थ धारिषेणके पास हार फेंककर पलायन । राजा द्वारा वारिषेणको मार डालनेका आदेश अपनी उस हंसगामिनी भामिनीके चित्तको इस प्रकार प्रसन्न करके विद्युच्चर चोर अर्द्धरात्रिके समय धनके लोभसे राजमहलमें जा घुसा और रानीका हार लेकर वहाँसे निकल भागा। उसके पैरोंकी आहट सुनकर राजाके योद्धा सेवक क्रोधपूर्वक यमराजके समान उसके पीछे दौड़ पड़े। वे चोरके हाथमें जो हार था, उसके तेजके मार्गसे ही उसके पीछे लगे थे। वे हाँक लगा रहे थे और बाणजाल छोड़ रहे थे। जब वह चोर श्मशान में पहुँचा, तब उसने वहाँ कायोत्सर्ग मुद्रामें स्थित अपने में अपनी आत्माका ध्यान करते हए वारिषेणको देखा। वह पापी चोर श्येन पक्षीके समान वारिषेणके चरणोंमें, अपने उस चन्द्रहास हारको फेंककर, किसी सिद्ध हुए क्लेशके समान अदृश्य होकर ठहर गया। राजसेवकोंने हारको देखा और उसे लेकर वे राजाके पास गये। उन्होंने राजाको सत्र वृत्तान्त सुना दिया। उनकी बात सुनकर राजाने अपना सिर हिलाया और अपने भटोंको यह कहकर भेजा, कि तुम जाकर वारिषेणका सिर काट डालो। दुष्ट पुत्रसे क्या लाभ ? कुत्सित शास्त्रके मुननेसे क्या हित होता है ? राजाकी वाणी सुनकर वे किंकर हाथमें खड्ग लेकर तत्काल उस स्थानपर पहुँचे जहाँ शुद्ध भावनाओंसे युक्त बारिषेण ध्यानमग्न था। भटोंने उसे चारों ओरसे घेरकर ऐसा झकझोरा जैसे समुद्र तटपर जलकी कल्लोलोंसे पर्वत ॥२॥

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