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धौरणिणिवचरित
विवाह ज्ञातकुल-श्रेष्ठ राजा सिद्धार्थसे हुआ था। भगवान् महावीरको बैशालीसे सम्बद्ध करनेवाला एक और पुष्ट प्रमाण उपलब्ध है। अर्द्धमागधी आगमोंमें ( सूत्रकूतांग १, २, उत्तराध्ययन ६ आदि ) अनेक स्थानोंपर भगवान महावीरको बेसालीय--वैशालिक कहा गया है । यद्यपि कुछ टीकाकारोंने वैशालिकका विशाल-व्यक्तित्वशील, विशालामाताके पुत्र आदि रूपसे विविध प्रकार अर्थ किये हैं तथापि वे संतोषजनक नहीं हैं। वैशालिकका यही स्पष्ट अर्थ समझमें आता है कि वैशाली नगरके नागरिक थे। आगम में अनेक स्थानोंपर वैशाली धावकोंका भी उल्लेख भाता है। भगवान ऋषभदेव कौशल देशके थे, अतएन उन्हें 'अहा कोसलीये' अर्थात् कौशल देशके अरहन्त कहकर भी सम्बोधित किया गया है ( समवायांग सूत्र १४१, १६२ )। इस प्रकार यह सिद्ध हो जाता है कि महावीर वैशाली नगरम ही उत्पन्न हुए थे और कुण्डपुर उसी विशाल नगरका एक भाग रहा होगा।
अब प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि वैशाली की स्थिति कहाँ थी ? इसका स्पष्ट उत्तर वाल्मीकि कृत रामायण (१,४५ ) में पाया जाता है। राम और लक्ष्मण विश्वामित्र मुनिके साथ मिथिलामें राजा जनक द्वारा आयोजित धनुर्यज्ञमें जा रहे. हैं। जब वें गंगा-तटपर पहुंचे तब मुनिने उन्हें गंगा-अवतरणका आख्यान सुनाया। तत्पश्चात् उन्होंने गंगा पार की और वे उसके उत्तरीय तटपर जा पहुँचे । वहाँसे उन्होंने विशालापुरीको देखा :
उत्तरं तीरमासाद्य सम्पूज्यर्षिगणं ततः ।
गङ्गाकूले निविष्टास्ते विशालां ददृशुः पुरीम् ।।९।। ( रामा. ४५,९) और वे शीघ्र ही उस रम्य, दिव्य तथा स्वर्गापम नगरी में जा पहुंचे।
ततो मुनिवरस्तुणं जमाम सहराघवः । विशालां नारी रयां दिनां स्वोपमा तदा ।।
( रामा. १,४५, ९-१०) यहाँ उन्होंने एक रात्रि निवाम किया और दूसरे दिन वहाँस चलकर वे जनकपुरी मिथिलामें पहुंचे।
'उध्य तक निभामेका जग्मतुमिथिलां ततः।'
बौद्ध ग्रन्थों में भी वैशालो के अनेक उल्लेख आये हैं और वहाँ भी स्पष्टतः कहा गया पाया जाता है कि बुद्ध भगवान् गंगाकी पारकर उत्तरकी ओर वैशालोमें पहुँचे। वैशाला में उस समय लिच्छवि संवका राज्य था तथा गंगाके दक्षिण में मगधनरेश श्रेणिक बिम्बसार और उनके पश्चात् कुणिक अजातशत्रुका एकछत्र राज्य था। इन दोनों राज्यतन्त्रोंम मौलिक भेद था और उनमें शत्रुता भी बढ़