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-१. १०.४]
हिन्यो अनुवाद
तीर्थंकर महावीरका गर्भागकरण, जन्म तणा
मन्दराचलपर अभिषेक विभ्रम और विलाससे युक्त बालहंसचारिणी, कंकन, हार, डोर, कटिसूत्र, कुण्डल और मुकुट धारण किये हुए चन्द्र और सूर्यके सदृश . कान्तियुक्त तथा कोर्तिसम्पन्न कमलनयना परमेश्वरी श्री, ह्री, लक्ष्मी, धृति, कीति और बुद्धि, इन देवियोंने स्वयं आकर महारानोके गर्भको शद्धि की। आषाढ़ मासके चन्द्रसे प्रकाशमान व अन्धकार-समहको दूर करनेवाले शुक्लपक्षमें छठी तिथि के दिन जब दिशाएं निर्मल थीं, तब संसारके सेतुभत भगवान महावीर, माताके गर्भ में आकर स्थित हए । .. तबसे नव मास तक धरणेन्द्र यक्ष आनन्ददायी स्वर्णको वृष्टि करता रहा। जब चित्रा नक्षत्र घुक्ल चैत्रमासका आगमन हुआ तब शुक्लपक्षकी त्रयोदशोके दिन उस सतीने स्वर्णको आभासे युक्त शरीरवान् भुवननाथ जिनेन्द्रको जन्म दिया। जब पापरूपी अन्धकारको नष्ट करने के लिए चन्द्रके सदश लक्ष्मीनाथ श्रीपार्श्वनाथ जिनेन्द्रको निर्वाण प्राप्त किये .. दो सौ पचास वर्ष व्यतीत हुए थे तभी उन शरीरकान्तिसे युक्त जन्मजरा-मरण-अतीत, व्याधियोका अन्त करनेवाले, जगतके तिलकभूत श्री वर्धमान जिनेन्द्र अपनी आयु बाँधकर उत्पन्न हुए । तत्पश्चात् सुरेन्द्रोंने जिनेन्द्रको मन्दर पर्वतके शिखरपर ले जाकर पूर्ण चन्द्रको कान्तिको जीतनेवाले कलशों द्वारा क्षीरोदधिके जलसे उनका अभिषेक किया। :.
भगवानका नामकरण, स्वभाव-वर्णन, बाल-क्रीड़ा
तथा देव द्वारा परीक्षा भगवान्का अभिषेक करनेके पश्चात् उन देवेन्द्रोंने मणिमय मालाओं द्वारा उनकी पूजा की, जो त्रैलोक्य द्वारा पूजित थे। उन्हें आभूषणोंसे विभूषित किया, जो स्वयं भुवन-भषण थे, तथा नाना प्रकारके क्रियाकलापों