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सन्धि ८ श्रेणिक-धर्म-लाभ व तीर्थकर गोत्र-बन्ध
राजा श्रेणिकको आखेट-पात्रा मुनि-दर्शन व भाव-परिवर्तन
एक दिन राजा श्रेणिक अपने किंकरों सहित आखेटके लिए निकला। वनमें पहुँचते ही उसने आत्म और परको समदृष्टि से देखने वाले अवधिज्ञानधारी यशरबी परम मनीन्द्र यशोधरको कर्मोको नष्ट करनेवाले प्रतिमा योगमें स्थित देखा । उन्हें देखकर राजाने सोचा-अरे! कार्यविनाश करनेवाला यह अनिष्ट-अपशकुन मुझे कहाँसे दिख गया? इस प्रकार अत्यन्त क्रोधके वशीभूत होकर राजाने उन परमेश्वर मुनीन्द्रका वध करनेके लिए उनपर यमराजके समान भयंकर पाँच सौ श्वान छोड़े। किन्तु मुनिके माहात्म्यसे वे विनययुक्त हो गये और उनकी प्रदक्षिणा करके उनके सम्मुख बैठ गये। यह देख कर राजाने अपने हाथमें धनुप लेकर तीन बाण छोड़े। किन्तु बह बाणोंका समूह भी पुष्पपुंज बनकर मुनिराजके चरणोंमें जा पड़ा। तब राजाने एक मृत सर्प उठाकर तुरन्त उनके गले में डाल दिया जो कि अपने तपश्चरण द्वारा पापमलको दूर कर चुके थे । मुनिका वध करने की भावनाके कारण उसी समय राजाने सप्तम नरकमें उत्पन्न होनेका आयु-बन्ध किया। किन्तु उसी समय मुनिका उक्त आश्चर्य देखकर उनका मन उपशम भावसे व्याप्त हो गया और उन्होंने