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सन्धि ९ श्रेणिक - धर्म - परीक्षा
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श्रेणिक के सम्यक्त्वकी परीक्षा हेतु वेबका धीवररूप धारण
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कवि कहते हैं कि अब मैं यहाँ उपगूहन गुणके दृष्टान्त स्वरूप राजा श्रेणिक विषयक आख्यान कहता हूँ, जो सम्यक्त्वमें उत्पन्न होते हुए दोषों का निवारण कराता है। एक बार श्रुतज्ञान और अवधिज्ञानका सामर्थ्य रखनेवाले तथा मिध्याधर्मरूपी गजेन्द्र के लिए मृगेन्द्रके समान सुरेन्द्रने चतुविध देव-निकायों के मध्य बैठे हुए सभासदोंके मनोरंजनार्थ धर्मकथा कही और प्रश्नकर्ताओंकी भ्रान्तियोंको दूर किया । इस सम्बन्ध में उन्होंने पृथ्वीत्तलपर वर्तमान राजा श्रेणिकको दृढ सम्यक्त्वधारी कहकर उसकी प्रशंसा की। उसे सुनकर एक देवको उसके सच होने का विश्वास नहीं हुआ । अतएव इसकी परीक्षा करने हेतु अपने विमानको आकाशमें चलाता हुआ वह देव वहाँ आया। उसने देखा कि राजा श्रेणिक अपनी सेना सहित कहीं गमन कर रहा है । अतएव वह देव चामरव नामक विख्यात ऋषिका रूप धारण कर तथा अपने हाथ में जाल लेकर राजाके मार्गवर्ती एक सरोवर में मछलियां पकड़ने लगा। जब मगवेश्वर वहाँ पहुँचे तब उन्होंने देखा कि एक ऋषि जाल फेंककर मछलियोंको पकड़ रहे हैं और उन्हें एक भारवाही अजिकाको देते जा रहे हैं। यह देख राजाने उन्हें प्रणाम किया और विनयपूर्वक कहा कि हे मुनिराज, मुझ दास के होते हुए, आपको स्वयं यह अधर्म कार्य करना उचित नहीं है। यदि आपको मत्स्योंसे काम है तो आप एक तरफ हो जाइए और मैं आपका यह मत्स्यबधका कार्य सम्पादित कर देता हूँ ॥ १ ॥