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२.८. २२ ]
हिन्वी अनुवाद इस विशाल चतुर्विध संघसहित एवं नाना विभूतियों द्वारा देवोंको भी अनुराग उत्पन्न करते हुए भगवान्ने अनेक ग्रामों एवं नगरोंमें बिहार किया तथा भव्य जीवोंके बिशाल समुदायोंका सम्बोधन करके सम्यकदमरूपी जलसे उनके मिथ्यात्वरूपी मलको धो डाला। वे त्रिभूवननाथ वसुधापर बिहार करते हुए तथा काम-व्यसनको दूर करते हुए राजगृहके समीप विपुलाचल पर्वतपर पहुंचे। गौतम स्वामी राजा श्रेणिकसे कहते हैं कि हे श्रेणिक, तूने विपुलाचलपर आकर उन दुःखविनाशक तीर्थकर भगवान् महाबीरकी वन्दना की । तूने महापुराण सम्बन्धी प्रश्न भी किये जिनके उत्तरमें मैंने तुझे समस्त पुराण कह सुनाया। गौतम गणधरके उस भाषणको सुनकर समस्त भारतदेश आनन्दसे विभूषित हो गया तथा पुष्पदन्त कवि कहते हैं, नाग मनुष्य तथा योगेश्वर सभीका संबोधन हो गया ॥८॥
इति वीरजिनेन्द्र चरितमें केवलज्ञानोत्पत्ति विषयक
द्वितीय सन्धि समास । सघि २।।
( महापुराणु सन्धि ९७ से संकलित )