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हिन्दी अनुवाद
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विलातपुत्रको राज्य प्राমি
इसी बीच प्रद्योतने गौर उरगपुरके स्वामीको रण में बाँध लिया। उसके बन्धनकी बात सुनकर मगध नरेशके विजय नामक पुत्रने सार्थवाहका वेश धारण करके छलपूर्वक उसे छुड़ा लिया और राजगृह ले आया। इस बातपर रुष्ट होकर प्रद्योतने अपने दल-बल सहित मगध देशपर आक्रमण कर दिया । यह बात सुनकर मगध नरेन्द्रको चिन्ता उत्पन्न हुई और उन्होंने राजधानीमें भेरी बजवायी कि जो कोई मेरे बैरीको पकड़कर मुझे दिखलायेगा वह जो कुछ मांगेगा वही दूँगा । तब चिलातपुत्रने उसपर घात लगायी और जब वह जलक्रीडा कर रहा था तभी उस उज्जयिनीपति प्रद्योतको पकड़ लिया और बाँधकर राजगृह ले आया ।
राजाने सन्तुष्ट होकर अपने पुत्रका सम्मान किया । मगधराजने प्रसन्नता पूर्वक चिलातपुत्रको मन सोना दान तथा नगर में स्वच्छन्द विहारका उपहार दिया 1
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इसके बहुत काल पश्चात् जब राजा प्रश्रेणिक बहुत सयाने हो गये तब उन्होंने घर, पुर और परिजनों का त्याग कर सैकड़ों भवों ( जन्मों) के पापका हरण करनेवाला तपश्चरण स्वीकार कर लिया और राज्यपर चिलातपुत्रको प्रतिष्ठित कर दिया ||२||
चिलातपुत्रका राज्यसे निष्कासन व वनवास तथा श्रेणिकका राज्याभिषेक
राज्य करते-करते चिलातपुत्रपर एक आपत्ति आ गयी, क्योंकि उससे प्रजा सन्तप्त हो उठी थी । उसका अन्याय देखकर नीतिवान् मन्त्रियों और सामन्तों का चित्त उससे हट गया था। उन्होंने मन्त्रणा की जो सभी मनको भा गयी। उन्होंने कांचीपुर से श्रेणिकको बुला लिया ।
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