Book Title: Veerjinindachariu
Author(s): Pushpadant, Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 156
________________ ७. २. २२] हिन्दी अनुवाद बह यमदण्ड नामक किरात दुष्टोंके लिए यम-निवासके समान उस राजाको नमस्कार करके उसे अपने घर ले गया और राजाका खूब सम्मान किया। किरातराजकी सुन्दर यौवनवती पुत्रीको देखकर राजा उसपर मोहित हो गया। तब किरातराजने राजाके साथ यह शपथबन्ध किया कि जो उसकी पुत्रीका पुत्र होगा उसे ही राज्य दिया जाये। ऐसा पक्का निबन्धन करके उसने अपनी मनोहर पीनपयोधर चन्द्रमुखी पुत्री-तिलकावतीका विवाह राजाके माथ कर दिया तथा उसके साथ सुखीभूत शत्रुविजयी राजाको उनके नगरको प्रेषित कर दिया ॥११॥ किरात कन्यासे बिसातपुत्रका जन्म । राजा द्वार राजकुमारोंको परीक्षा अपनी राजधानी राजगृहमें पहुंचकर राजा उपश्रेणिक अपनी इस नयी पत्नीके साथ रतिसुखका अनुभव करते हुए रहने लगा। बहुत समयके पश्चात् उनके मदनके समान सून्दर पुत्र उत्पन्न हुआ। पिताने अपने इस पुत्रका नाम चिलातपुत्र रखा । यथा समय कुमार अपनी तरुणावस्थाको प्राप्त हुआ। एक दिन उस इन्द्रके समान राजाने एक नैमित्तिकसे पूछा कि यह बतलाओ कि मेरे इन अनेक पुत्रोंके बीच कौन मेरे पश्चात् राज्यका भार सँभालने में समर्थ हो सकेगा। समस्त बातोंको जाननेवाले उस नैमित्तिक ने कहा---हे राजन्, जो राजपुत्र, राजसिंहासनके ऊपर बैठकर भेरी बजाता हुआ तथा श्वानोंको भी कुछ खानेको देता हुआ पायस ( खीर) का भोजन करेगा वहीं अपनी श्रेष्ठ बुद्धिको प्रकाशित करनेवाला, भयंकर शत्रुओंको त्रस्त करनेवाला, तुम्हारे राज्यको संभालने योग्य पुत्र होगा, इसमें सन्देह नहीं। यह सुनकर राजाने एक शुभ दिन, शुभकरण और शुभ लग्नमें परीक्षाके हेतु अपने सभी पाँच सौ पुत्रोंको बुलवाया । वे आकर राजाको प्रणाम कर बैठ गये । तब नरेन्द्रने उनसे कहा कि तुम्हें जो-जो वस्तु पसन्द हो, उस-उसको निःशंक होकर ले लो। राजाको यह बात सुनकर उन राजकुमारोंने प्रसन्नमुख होते हुए किन्हींने आभूषण

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