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७. ३.२८ ]
हिन्दी अनुवाद
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लिये, किन्होंने घोड़े, हाथी व रत्न लिये, किन्होंने उत्तम गन्ध व ताम्बूल लिये, किन्होंने विचित्र-विचित्र उत्तम वादित्र लिये, और किन्होंने सुन्दर पुरुष ही ग्रहण किये ॥२॥
राजपुत्र श्रेणिक परीक्षा में सफल, किन्तु भ्रातृ-वैरकी आशंका से उसका निर्वासन
किन्तु राजकुमार श्रेणिक मणि-समूहों की किरणोंसे दीप्तिमान् सिंहासनपर अपने सुन्दर हाथ में भेरी लेकर जा बैठा । रसोइयोंने उन सब कुमारों को, जो कार्तिकेय के सदृश थे, क्रमशः बैठाया और राजाके आदेशानुसार उन्हें स्वर्णके थालोंमें स्वादिष्ट खीर परोस दी। ज्यों ही उन्होंने अपना भोजन प्रारम्भ किया त्यों ही सिह के समान जीभ लपलपाते हुए श्वान छोड़ दिये गये। सभी राजकुमार उन भयंकर श्वानोंकी आते देख सहसा भय से भाग उठे । किन्तु एकमात्र गम्भीर और धीर श्रेणिक कुमार भयकी भावनासे मुक्त होते हुए अपने आसनपर बैठे रहे। वे विनोदपूर्वक भेरी बजाते जाते थे और हंसते हुए थोड़ा-थोड़ा, भोजन कुत्तोंको भी देते जाते थे । इस प्रकार उस विशाल बुद्धिमान् राजकुमारने विश्वस्त भाव से अपना भोजन समाप्त किया । यह देख भूषालने अपने मनमें निश्चय कर लिया कि यही राजकुमार राज्य करने योग्य है। साथ ही उन्होंने यह भी विचार किया कि, जो राजकुमार अनन्त विद्याओंका धनी है, और राज्य करने योग्य है उसका समस्त प्रयत्नपूर्वक संरक्षण करना चाहिए। ऐसा चिन्तन कर उस नीतिज्ञ धराधीशने दायादों ( राज्यके भागीदार भ्राताओं) के बीच वैर के भयसे श्रेणिक कुमारको इस घोषणाके साथ नगरसे बाहर निकाल दिया कि इसने कुत्तोंके जूठे भोजन करनेका पाप किया है, अतएव जो कोई इसे अपने यहाँ ठहरनेको स्थान देगा, उसके समस्त धन और प्राणोंका भी में निश्चयरूपसे हरण कर लूँगा । ऐसे खल पुरुषोंके मनको प्रसन्न करनेवाली घोषणा कराकर राजाने तुरन्त ही श्रेणिक कुमारको नगरसे निकाल दिया । तब वह गजगामी राजकुमार भूख और प्यासरो त्रस्त होता हुआ नन्दग्राममें जाकर प्रविष्ट हुआ ||३॥
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