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२. ४. १६ ] हिन्दी अनुवार उपसर्ग ऐसे विफल हुए जैसे कृपण पुरुषके घर जाकर दीनजन विफल ही वापस हो जाते हैं। तब उन सात्यकी-पुत्र रुद्रने पार्वतीसे कहा-हे प्रफुल्ल-कमलमुखी गिरिवर-पुत्री पार्वती, देखो इस वीरकी वीरता लेशमात्र भी चलायमान नहीं होती । भला क्या सुमेरपर्वत कही इसकता है ? ऐसा कहकर वे दोनों भगवान्की वन्दना करके अपने वृषभपर आरूढ़ हो, रति-रसमें अनुरक्त होते हुए वहांसे चले गये। उधर चेतकराजाकी, लताके समान कोमल भुजाओंवाली कमलमुखी चन्दना नामको पुत्री जब अपने नगरके नन्दनवन में कोड़ा कर रही थी, तभी कामवासनासे प्रेरित होकर एक विद्याधरने उसका चुपचाप अपहरण कर लिया। इससे उसके माता-पिता तथा सखो-साथियोंको इसका कोई पता न चला। वह विद्याधर उसे ले तो गया किन्तु बोचमें ही अपनी गृहिणीके क्रोधकी आशंकासे भयभीत होकर उसने उसे वनमें ही छोड़ दिया ||३||
कौशाम्बोमें चन्दना कुमारी द्वारा भगवान्का वर्शन अपने बन्धु-वर्गसे बिछुड़कर और उस वनमें अपनेको अकेली पाकर चन्दनाको बड़ा दुःख हुआ। उसी समय उस हंसगामिनीको एक धनदत्त नामक व्याधने देख लिया। उसने उसे अपने साथ ले जाकर उस नगरके श्रेष्ठ धनी वृषभदत्त नामक वणिक्को सौंप दिया। वणिक्ने उस सतीको अपने घरमें रखा । किन्तु वह अपने सौन्दर्य से साक्षात् रति ही थी। अतएव उस वणिकको सुभद्रा नामक पत्नीने प्रतिकूल भावनाओंसे प्रेरित होकर विचार किया कि यदि मेरा पति इस कूमारीपर आसक्त हो गया तो फिर मेरे लिए यह घर दुष्कर हो जायेगा । अतएव अच्छा होगा कि में कुत्सित भोजन द्वारा इसके यौवनके साथ-साथ सुन्दर रूपको भी नष्ट कर दूं । ऐसा विचारकर वह स्त्री रोषके वशोभूत हो उसपर भीषण दुर्वचनरूपी कोड़ोंका प्रहार करने लगी। उसे वह नित्य ही एक कटोरे भर रस-विहीन कोदोंका भात कांजीके साथ खानेको दे देती थी।