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प्रस्तावना
था । एक बार जब वह अपने परिजनोंके साथ उपवनमें क्रीड़ा कर रही थी तब मनोवेग नामक एक विद्याधरने उसे देखा और वह उसके सौन्दर्य पर मोहित हो गया । उसने छिपकर चन्दनाफा अपहरण कर लिया। किन्तु अपनी पत्नो मनोवेगाके कोपसे भयभीत होकर उसने चन्दनाको इरावती नदीके दक्षिण तटवर्ती भूतरमण नामक वन में छोड़ दिया। वहां उसकी भेंट एक श्यामांक नामक भीलसे हुई। वह उसे सम्मानपूर्वक अपने सिंह नामक भीलराजके पास ले गया । भोलराजने उसे कौशाम्बीके एक धनी व्यापारी सेठ ऋषभसेनके कर्मचारी मित्रवीरको सौंप दी, और यह उसे अपने सेटके पास ले आया। सेठकी पत्नी भदाने ई-वश अपनी यन्दिनी दासी बनाकर रखा। इसी अवस्थामें एक दिन जब उस नगरमें भगवान् महावीरका आगमन हुआ, तब चन्दनाने बड़ी भक्तिसे उन्हें आहार कराया। इस प्रसंगसे कौशाम्बी नगरमें चन्दनाकी ख्याति हुई, और उसके विषयमें उसकी बड़ी बहन रानी मुगावतीको भी खबर लगी। वह अपने पुत्र राजघुमार उदयनके साथ सेठके घर आयी, और चन्दनाको अपने साथ ले गयी ! फिर चन्दनाने वैराग्य भावसे महावीर भगवानकी शरणमें जाकर दीक्षा ग्रहण कर ली, और अन्ततः वही भगवान के आयिका-संघकी अग्रणी हुई। __वैशालीनरेश चेटक तथा उनके गृह-परिवार व सम्पत्तिका इतना वर्णन जैनपुराणों में पाया जाता है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि वैशाली के नरेश चेटक महावीरके नाना थे, मगधनरेता श्रेणिक तथा कौशाम्बीके राजा शतानीक उनके मात-स्वसा-पति ( मौसिया ) थे, एवं कौशाम्बीनरेगा शतानीकके पुत्र उनके मातृस्त्रसापुत्र ( मौसयाते भाई ) थे।
(ख) मगध-नरेश श्रेणिक बिम्बिसार मगध देशके राजा थेणिकका भगवान् महावीरसे दीर्घकालीन और धनिष्ट सम्बन्ध पाया जाता है। बहुत-सी जैन पौराणिक परम्परा तो श्रेणिक के प्रश्न और महावीर अथवा उनके प्रमुख गणधर इन्द्रभूतिके उत्तरसे ही प्रारम्भ होती है। उनका बहुत-सा वृत्तान्त प्रस्तुत ग्रन्थ की सन्धि छहसे ग्यारह तक पाया जायेगा। इस नरेशकी ऐतिहासिकतामें कहीं कोई सन्देह नहीं है। जैन ग्रन्थों के अतिरिक्त बौद्ध साहित्यमें एवं वैदिक परम्पराके पुराणोंमें भी इनका वृत्तान्त व उल्लेख पाया जाता है । दिगम्बर जैन परम्परामें तो उनका उल्लेख केवल श्रेणिक नामसे पाया जाता है, किन्तु उन्हें भिम्भा अर्थात् भेरी बजानेकी भी अभिरुचि थी ( देखिए सन्धि ७,२ ) और इस कारण उनका नाम भिम्भसार अथवा भाभसार भी प्रसिद्ध हुआ पाया जाता है । श्वेताम्बर मन्यों में अधिकतर इसी नामसे इनका उल्लेख
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